Jane mahadev ke aaradhayadev kaun?
Jane mahadev ke Aaradhayadev kaun -देवों के महादेव किनकी आराधना करते है। महादेव के आराध्य देव कौन है?आइए जानते है देवों के देव महा देव किनकी अराधना करते है —-
Jane mahadev ke aaradhyadev kaun
तुम्ह पुनि राम राम दिन राती।सादर जपहुं अनंग आराती। रामु सु अवध नृपति सुत सोई। की अज अगुन अलख गति कोई।माता पार्वती भगवान शंकर जी से पूछ रही हैं, कि हे कामदेव के शत्रु! आप भी दिन रात राम राम जपा करते हैं – ये राम वहीं अयोध्या के राजा के पुत्र है? या अजन्मे निर्गुण और अगोचर कोई और राम हैं?।।
शंकरजी को जप करते देख पार्वती जी को आश्चर्य हुआ कि देवों के देव, महादेव भला किसका जप कर रहे हैं। पूछने पर महादेव ने कहा, विष्णु शहस्त्र नाम का।पार्वती ने कहा- महादेव इन हजार नामों को भला साधारण मनुष्य कैसे जपेंगे?
कोई एक नाम आप बनाएं,जो अकेले सहस्र नामों के बराबर हो। जो जपा जा सके। महादेव ने कहा-राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे,सहस्त्रनाम तत्तुल्यम रामनाम वरानने।
यानी राम नाम शहस्त्र नामों के बराबर है। भगवान शिव, विष्णु , ब्रह्मा,शक्ति,राम और कृष्ण सभी एकही हैं। केवल नाम रूप का भेद है। तत्व में कोई अन्तर नहीं है। किसी भी नाम से उस परमात्मा की आराधना की जाय, वह उसी सच्चिदानंद की उपासना है ।
इस तत्व को नहीं जानने के कारण भक्तों में आपसी मतभेद हो जाता है। परमात्मा के किसी एक नाम रुप को अपना इष्ट मानकर, एकाग्रता से उनकी भक्ति करते हुए अन्य देवों का उच्चित सम्मान व उन्हें पूर्ण श्रद्धा रखनी चाहिए।
किसी भी अन्य देव की उपेक्षा करना या उनके प्रति उदासीन रहना स्वयं अपने इष्ट देव से उदासीन रहने के समान है। ‘शिव पुराण’ में कहा गया है कि, ब्रह्मा विष्णु एवं शिव एक दुसरे से उत्पन्न हुए हैं। एक दुसरे को धारण करते है, एक दूसरे के अनुकुल रहते हैं। इस कारण भक्त सोच में पड़ जाते हैं।
किसी को कहीं ऊंच्चा बताया जाता हैं,तो कहीं किसी को। विष्णु शिव दोनों एक दूसरे के हृदय में रहते है। दोनों अपने दर्शन का फल एक ही मानते है। कृष्ण भगवान शंकर से कहते हैं, मुझे आप से प्यारा कोई नहीं। आप मुझे अपनी आत्मा से भी अधिक प्रिय है।
संसार में निरंतर तीन प्रकार के कार्य चलते रहते हैं- * उत्पत्ति * पालन * और संघार। इन तीनों कार्यों के नाम हैं, ब्रह्मा, विष्णु और महेश। ब्रह्मा रजोगुणी मुर्ति, विष्णु सतमुर्ति और शिव तामसमुर्ति हैं।
शिव तामसी गुणों के अधिष्ठिता हैं।बिना ध्यान दिए उसे धारण कर शिव उसे भी शुभ बना देते हैं। समुन्दर मंथन के समय विष को पीकर नीलकण्ठ कहाये। किसी भी अन्य रत्नों को देखा तक नहीं, जिससे जीव की मृत्यु होती है। इसी लिए तो मृत्युंजय कहलाए।
शिव का वैराग्य जीवन सभी सुखों में सर्वोपरि है।उत्पत्ति के बाद जीव पालन पोषण करता हुआ थक जाता है और तमोगुणी हो जाता है। तम ही मृत्यु है,तम ही काल है।
जिस प्रकार व्याकुल व्यक्ति को विश्राम की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार जब जब पाप बढ़ता है तब तब ईश्वर विश्राम देने के लिए विश्व का संघार करते हैं।
जीवों को मुक्ति देने वाली श्रीगंगा भी उनके जट्टा में विराजमान है। मुक्ति दाता और संघारकर्ता भगवान शिव दोनों हैं। एक लोटा गंगाजल चढ़ाने से अपने भक्त पर पल भर में प्रशन्न हो जाते है।
आइए महादेव का गुणगान निम्नवत कविता की चंद पंक्तियों से किया जाए।
कविता
देवों के हैं देव महादेव,
महिमा इनकी अपरम्पार ।
भांग धतूरा सेवन करते
बसहा बैलपर होके सवार।
तन पर वस्त्र बाघांबर शोभे,
भूत बैताल संघाती।
नाग राज गले में शोभें,
जट्टा में मुक्ति दात्त्री।
हे वैरागी मुक्ति दाता,
नाथों के हैं नाथ विधाता।
श्रद्धा भक्ति से जो नर ध्यावे,
मनवांछित फल क्षणमें पाता।
त्रिलोचन हे औघड़दानी,
महाकालेश्वर अंतर्यामी ।
जनम जनम की प्यासी आंखे,
दर्शन दो हे जग के स्वामी।
यह संसार तेरा है सेवक,
तू है सबके भाग्य विधाता।
एक सवाल मेरे मन में है,
तू किसका है ध्यान लगाता।
मैं हूँ उनका सेवक जानो ,
वो हैं मेरे स्वामी ।
राम नाम दशरथ पुत्र हैं वो,
अयोध्या के हैं वासी।
धन्यवाद पाठकों
रचना -कृष्णावती कुमारी
नोट- उपरोक्त पौराणिक कथा पेपर एवं इन्टरनेट से संग्रह किया गया है.
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