- Advertisement -
HomeHealth TipsSwasth Vyakti Ka Dincharya Hindi स्वस्थ व्यक्ति का दिनचर्या

Swasth Vyakti Ka Dincharya Hindi स्वस्थ व्यक्ति का दिनचर्या

Swasth Vyakti Ka Dincharya Hindi|स्वस्थ व्यक्ति का दिनचर्या

Swasth Vyakti Ka Dincharya Hindi- सुस्वास्थ्य हीं सम्पूर्ण सुखों का आधार है |स्वस्थ है तो जहान है: वरना  श्मसान है |जिन लोगों का तीनों दोष वात,पित एवं कफ तीनो सम हो ,जठराग्नि भी सम हों मतलब की न अति मंद ना अति तीव्र होना चाहिए |

शरीर को धारण करने वाली सप्त धातुवें रस, रक्त ,मांस,मेद,अस्थि,मज्जा,तथा वीर्य उचित अनुपात में हों,मल-मूत्र की क्रिया सम्यक प्रकार से होती हो और दस इन्द्रियाँ जैसे- कान, नाक, आँख,त्वचा, रसना,गुदा, उपस्थ,हाथ पैर एवं जिह्वा |मन एवं इनका स्वामी आत्मा भी प्रसन्न हो तो ऐसे व्यक्ति को स्वस्थ कहा जाता है |

जिसके आहार विहार,विचार एवं व्यवहार संतुलित तथा संयमित है ,जिसके कार्यों में दिव्यता,मन में सदा पवित्रता एवं शुभ के प्रति इच्छा है , जिसका सोना एव जागना नियमित हो वहीँ साचा स्वस्थ व्यक्ति होता है |आइये निम्नवत आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य,व्यायाम,स्नान ,ध्यान  इन 6 से परिचित होते हैं:-

आहार :

आहार से व्यक्ति के शरीर का निर्माण होता है |आहार का शरीर पर हीं नहीं मन पर भी पूरा प्रभाव पड़ता है |जैसा अन्न वैसा मन| इस विषय में एक बार महर्षि चरक ने अपने शिष्यों से पूछा कौन रोगी नहीं अर्थात स्वस्थ कौन है? उनके प्रबुद्ध शिष्य वाग्भट ने उत्तर दिया :उचित मात्र एवं ऋतू के अनुकूल भोजन करने वाला स्वस्थ है |

अपनी प्रकृति (वात, पित, कफ ) को जानकर उसके अनुसार भोजन लेना चाहिए | यदि किसी को वात प्रकृति है,शरीर में वायु विकार होते हैं तो उन्हें चावल व खट्टा भोजन नहीं करना चाहिए |छोटी पिपली,सोंठ अदरक आदि का सेवन करना चाहिए |
पित्त प्रकृति वाले को गर्म तले हुवे भोजन नहीं करना चाहिए लौकी ककड़ी खीरा कच्चा भोजन लाभदायक होता है |कफ प्रकृति वाले को ठंढी चीजे चावल, दहीं,छाछ का सेवन अत्यधिक मात्रा  में नहीं करना चाहिए |दूध में छोटी पिपली हल्दी आदि डालकर सेवन करना चाहिए |उचित मात्रा में भोजन लेना चाहिए |

अमाशय का आधा भाग अन्न के लिए ,चतुर्थांशपेय पदार्थों के लिए रखते हुए शेष भाग वायु के लिए छोड़ना चहिये|ऋतू के अनुसार पदार्थों का मेल करके भोजन करने से रोग पास नहीं आता है |भोजन का समय निश्चित होना चाहिए |प्रात: काल अन्न का जितना कम सेवन हो उतना अच्छा होता है |

भोजन का समय :

पचास वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति प्रातराश न हि लें तो अच्छा  रहेगा |मध्यान्ह में ११ से १२ बजे तक भोजन करना उत्तम माना जाता है |बारह से एक बजे का समय मध्यम,उसके बाद उत्तरोतर निकृष्ट माना जाता है |

सायंकाल :

सायंकाल सात से आठ बजे का समय उत्तम माना जाता है, आठ से नौ का समय मध्यम और नौ बजे के बाद उत्तरोतर निकृष्ट समय होता है |भोजन करते समय मौन रहकर भोजन करना चाहिए बात करने से भोजन ठीक तरह से व्यक्ति चबा नहीं पाता और भोजन भी आधिक खा लेता है |

एक निवाला को बत्तीस बार चबाना चाहिए |चबा चबा कर भोजन करने से मन में हिंसा की भावना नहीं आती है क्यों की हम सभी जानते हैं की जब क्रोध आता है तो व्यक्ति दांत पिसने लगता है |अर्थात क्रोध का उद्गम स्थान दांत है |कबी भी भोजन के 30 मिनिट बाद के पानी पीना चाहिए |

निद्रा :

निद्रा अपने आप में एक पूर्ण सुखद अनुभूति है |यदि व्यक्ति को नीद न आये तो पागल भी हो सकता है |एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए 6 घंटे की नीद जरुरी होता है |बालक और बूढ़े लोगों के लिए आठ घंटा सोना जरुरी होता है |शाम को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना व्यक्ति के जीवन को उन्नत बनता है |

भगवान ने प्रकृति को कुछ ऐसे हीं नियमों में बाधा है कि सभी  पशु, पक्षी और मनुष्य शाम को अपने अपने ठिकानों में विश्राम करने लगते है |उल्लू और चमगादड़ को छोड़कर सभी जीव जंतु  भोर में उठ जाते है |

चिड़िया भी भोर में उठकर अपनी मीठी आवाज से प्रभु का नाम लेते हुवे अपने काम में लग जाती है |परन्तु यह मुरख इन्सान ब्रह्म मुहूर्त का आनंद छोड़ ९बजे तक सोया रहता हैं| परिणाम स्वरूप रोगी हो जाता है |जल्दी सोना और जल्दी उठना व्यक्ति को स्वस्थ एवं महान बनाता है |

ब्रह्मचर्य:

अपनी इन्द्रियों एवं मन को विषयों से हटाकर ईश्वर एवं परोपकार में लगाने का नाम ब्रह्मचर्य कहलाता है |केवल इन्द्रियों और मन को वश में करना हीं ब्रह्मचर्य नहीं है | बल्कि ईन्द्रियों और मन की शक्ति को आत्म्मुखी कर ब्रह्म की प्राप्ति करना ब्रह्मचर्य है|

व्यायाम :

इस शरीर को चलने के लिए जैसे आहार की आवश्यकता है ,वैसे हि आसन-प्राणायाम आदि की भी परमावश्यकता है |बिना व्यायाम का शरीर अस्वस्थ तथा ओज-कांतिहीन हो जाता है |जबकि नियमित रूप से व्यायाम करने से दुर्बल रोगी एवं कुरूप व्यक्ति भी बलवान ,स्वस्थ और सुन्दर बन  जाता है |

हृदयरोग मधुमेह,मोटापा,वात रोग, बवासीर ,गैस ,रक्तचाप मानसिक तनाव ,आदि का भी मुख्य कारण शारीरिक श्रम का आभाव है |यदि प्रति दिन यानि रोज  योगाभ्यास किया जाय तो इन्सान कभी रोगी नहीं हो सकता है |व्यायाम के भी कई प्रकार है |इनमे से आसन-प्राणायाम सर्वोतम है |

दुसरे व्यायामों से शारीरिक परिश्रम तो होता है परन्तु मन में एकाग्रता और शांति नहीं होती है |भारी व्यायाम करने से मांसपेशियों का व्यायाम होता है | आसन-प्राणायाम से पूर्ण आरोग्य लाभ होता है तथा किसी भी प्रकार की कोई हानि नहीं होती है  |बल्कि शरीर के साथ मन में एकाग्रता एवं शांति का विकास होता है |

स्नान :

योगासन करने के बाद शरीर जब सामान्य स्थिति में हो जाय उसके बाद स्नान करना चाहिए| नहाने से शरीर में ताजगी आती है |अनावश्यक गर्मी शांत होकर शरीर शुद्ध एवं हल्का बन जाता है |जल से शरीर शुद्ध होता है |सत्य से मन की शुद्धी होती है |

विद्या एवं तप के अनुष्ठान से आत्मा तथा ज्ञान से बुद्धि निर्मल बनती है| रोगी को छोड़कर सामान्य व्यक्ति को स्नान ठंढे पानी से करना चाहिए |गर्म पानी से स्नान करने पर मन्दाग्नि और आँखें कमजोर हो जाती है |

स्नान के बाद शरीर को खादी  के तौलिया से खूब रगड़ना चाहिए |इससे काँति बढती है |यदि कब्ज हो तो पेट को सूखे तौलिये से रगड़ना चाहिए |नदी तलाब आदि में तैरकर स्नान करना सर्वोतम माना गया है |

ध्यान :

शौच ,स्नान, आसनादि नित्यकर्मो से निवृत होकर सुख, शांति एवं आनंद की कमाना रखने वाले व्यक्ति कम से कम १५ मिनट से लेकर  १घंटे तक भगवान का ध्यान उपासना अवश्य करें |प्रणव एवं गायित्री मन्त्रों का दीर्घकाल  तक श्रद्धापुर्वक किया हुवा जप परमशक्ति ,शांति एवं आनंददायक होता है | द्वारा- रामदेव बाबा

यह भी पढें :

- Advertisement -
- Advertisement -

Stay Connected

604FansLike
2,458FollowersFollow
133,000SubscribersSubscribe

Must Read

- Advertisement -

Related Blogs

- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here