Janen nari yaun shoshan ki kahani kaise sadiyon se hota aa raha hai क्यों नारी शोषण सदियों से होता आ रहा है ?
Jane naari yaun shoshan ki kahani -दोस्तों भारतीय शास्त्र सदैव पारदर्शी रहे हैं। सभी अच्छाइयों और बुराइयों को उजागर किया है। चंद्र वंश के राजा ययाति की पुत्री माधवी से जुड़ी कथा महाभारत काल के उद्योग पर्व में 106 ठे अध्याय से लेकर 123 वें अध्याय में मिलता है। यह कथा है नवश कूल में जन्मी माधवी की।
माधवी के पिता ययाति ने ही कई लोगों से संबंध बनाने के लिए विवश किया। जबकि माधवी राजपुत्री थी।इस कथा के अनुसार विश्वामित्र रिषि के आश्रम में गालव नामक उनका शिष्य जो कि बहुत गरीब था। शिक्षा पूर्ण होने के बाद विश्वामित्र ने गालव से गुरू दक्षिणा लेने से मना कर दिया।
परन्तु गालव को यह अच्छा नहीं लगा। वह विश्वामित्र से गुरू दक्षिणा लेने के लिए आग्रह करने लगा। गालब के इस जिद से नाराज़ होकर विश्वामित्र ने 800सौ श्याम कर्ण घोड़े की मांग की जो अत्यंत दुर्लभ थे। गुरू की आग्या सुनकर गालव आश्रम से घोड़े की खोज में निकल पड़े।
जाने नारी यौन शोषण की कहानी
गालव सबसे पहले सहायता के लिए अपने मित्र गरूण के पास गये। गरूण ने गालव से कहा – कि हमें पतिस्ठानपुर के महाराजा ययाति के पास चलना चाहिए। वे हमारी सहायता कर सकते है। महाराजा ययाति उन दिनों सम्मान जनक राजा माने जाते थे।
गालव और गरूण दोनों राजा ययाति के पास पहुंचे। और राजा को सारी परिस्थिति से अवगत कराये। राजा ययाति गरूण की बात सुनकर प्रसन्न हुए। परन्तु वास्तव में उनकी स्थिति वैसी नहीं थी। जैसा गरूण समझते थे।
कई राज्य सूबे और अश्वमेध यज्ञ करने के कारण राजा ययाति का राज कोष खाली हो चुका था। कुछ समय विचार करने के बाद राजा ने अपनी त्रिलोक सुन्दरी पुत्री माधवी को सौपते हुए गालव से कहा- कि रिषि कुमार मेरी यह पुत्री माधवी दिव्य गुणों से सुशोभित है।
मेरी पुत्री माधवी को यह वरदान प्राप्त है कि वह चक्रवर्ती सम्राट को जन्म देगी। शिशु जन्म के बाद राजपुत्री माधवी फिर से कुमारी हो जायेगी। इसलिए आप अपने साथ ले जाए। परन्तु आप से निवेदन है कि आपका कार्य पूर्ण हो जाने के बाद मेरी पुत्री माधवी को लौटा देंगे।
वहां से माधवी के संग रिषि कुमार सबसे पहले सहायता के लिए अयोध्या के राजा हर्यश्व के पास पहुंचे। अयोध्या के राजा से अश्वो की विनम्रता पूर्वक मांग की। राजा ने कहा, अभी तो मेरे पास 200सौ ही श्याम कर्ण अश्व है। आप सभी को शेष अश्वो की अन्य राज्यों से व्यवस्था करनी होगी।
मैं केवल माधवी के बदले दो सौ ही अश्व दे सकता हूँ और मैैं माधवी से एक पुत्र प्राप्ती की प्रार्थना करूँगा । उसके बाद गरूण और गालव वहां से अन्यत्र चले गए ।
समयानुसार अयोध्या के राजा हर्यश्व को माधवी से एक वशुमना नामक पुत्र प्राप्त हुआ जो आगे चलकर परम प्रसिद्ध हुआ। इधर रिषि कुमार माधवी के शुल्क के रूप में 200 सौ अश्वो को अयोध्या में ही छोड़ कर शेष अश्वो की खोज में निकल पड़े। ताकि शेष अश्वो की व्यवस्था उपरांत अश्वो को आकर ले जाएगे।
चलते चलते गरूण और गालव माधवी के संग काशी राज देवदास के राज में पहुंचे। माधवी जैसी त्रिलोक सुन्दरी को देखकर और गरूण गालव के अनुरोध पर अपने 200सौ श्याम कर्ण अश्वो को देकर काशी राज ने नीयत समय पर माधवी से एक प्रतिधर्म नामक पुत्र प्राप्त किया जो आगे चलकर परम प्रसिद्ध दानशील हुआ और परंपरागत शत्रुओं का विध्वंस किया।
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इसके बाद पक्षी राज गरूण और गालव माधवी के संग राजा भोज राज उसीनर के पास पहुंचे। गालव और गरूण के प्रस्ताव सुनकर माधवी जैसी त्रिलोक सुन्दरी से एक पुत्र प्राप्त कर भोजराज ने 200सौ दुर्लभ अश्वो को सौंप दिया।भोजराज का यही पुत्र शिवी नाम से विख्यात हुआ जिसकी दानवीरता की अमर कहानी आज भी पुराणों में वर्णित है।
तीनों पुत्रों को जन्म देने के बाद भी त्रिलोक सुन्दरी माधवी की रूप यौवन एवं कुमारीपन यथावत् बना रहा। इधर रिषि कुमार को विश्वामित्र का दिया हुआ समय भी समाप्त होने वाला था। अब गालव और गरूण को यह ग्यात हो गया कि इन 600 सौ अश्वो के संग ही गुरू विश्वामित्र के पास जाना पड़ेगा।
गालव और गरूण माधवी के संग गुरू विश्वामित्र के पास 600सौ अश्वो के साथ पहुंचे। असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि गुरू देव आप की आग्या से मात्र 600 सौ अश्वो को ही ला पाया। कृपया इसे स्वीकार करे। और शेष अश्वो के बदले त्रिलोक सुन्दरी माधवी को ग्रहण करें। विश्वामित्र ने शिष्य की प्रार्थना स्वीकार कर लिया।
गुरू विश्वामित्र ने माधवी के संयोग से एक पुत्र प्राप्त किया जो कालांतर में अष्टक के नाम से प्रसिद्ध हुआ । अष्टक ही 600 सौ अश्वो का स्वामी बना और अपने पिता विश्वामित्र की राजधानी का कार्य भार सम्भाला । इस तरह माधवी ने गालव को गुरू ऋण से मुक्त कराकर अपने पिता के पास वापस लौट गई।
माधवी के पिता के पास वापस पहुुंचने पर राजा ने माधवी से स्वयंंवर करने का विचार प्रकट किया। परन्तु माधवी ने अनिच्छा प्रकट करते हुए मना कर दिया। इसके बाद माधवी ने तपोवन का मार्ग अपना लिया।
नोट- दोस्तों नारियों का शोषण युगों युगों से होता आ रहा है। परन्तु तत्कालीन परिस्थितियाँ वैसी नहीं है। मन भर जाने पर नारियों को मृत्यु के घाट उतार दिया जाता है। उचित-अनुचित का तनिक विचार कीजिएगा।
धन्यवाद दोस्तों
संग्ररहिता- कृष्णावती कुमारी
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