Mahila Diwas Kavita In Hindi|अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता
Mahila Diwas Kavita In Hindi- आज यह अति दुर्भाग्यपूर्ण विषय है, इस आधुनिक समय में हमें महिला दिवस मनाना पड़ रहा है |वैदिक काल में महिलाओं को पुरुष के समान अधिकार था | महिलाओ को उच्च स्थान प्राप्त था |पुरुष वर्ग के लिए प्रेरणा का श्रोत नारी हीं होती थी |
परन्तु १७३०ई के आस पास कुछ आतताइयों ने महिलाओं के साथ समानता होने में तवहिनी महसूस किया |जिसका परिणाम आज के महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है |लेकिन आज के समय में महिलाये शिक्षा प्राप्त कर रहीं है और सम्मान अधिकार पाने में लगी हुई है |
Mahila Diwas Kavita|Mahila Diwas Kavita In Hindi
दोहा -नारी हैं अनमोल रतन, इनको देना प्यार ,
नारी सुख सम्पदा है घर की, यहीं जीवन का सार|
नारी पर कविता
हे जग जननी हे निर्माता,
तुम हीं हो नर नारी जन्म दाता|
खुद को कर बलिदान संजोती ,
सुन्दर सा परिवार बनाती |
रिश्ते की यदि बात करूँ तो ,
किसी की बेटी किसी की पोती |
किसी की पत्नी किसी की बहना,
किसी के घर की सुन्दर गहना |
जिस घर में अपमानित होती ,
उस घर की खुशिया मर जाती |
जिस घर में सम्मान तू पातीं ,
सदा रहे लक्ष्मी संघाती |
बाबुल का घर छोड़ ,
पराये घर को अपनाती है |
नूतन बगिया को कैसे ,
डर डर के सजाती है |
कहीं सास नाराज न होवे ,
कहीं ननद रूठ जाये ना |
कहीं ससुर की डांट न पड़ जाये ,
कहीं देवर इतराए ना |
पल-पल भय ये अति डराये ,
सोच सोच जियरा घबराये |
दिवा रेन करू चाकरी सबकी ,
तानिक काया आराम न पाए |
फिर भी यश न पाई कभी मैं ,
बनी बुरे की खान |
जिस घर में सब जीवन बीते ,
वहीँ ना मान सम्मान |
नारी तेरी यहीं कहानी ,
युगों युगों से नहीं है |
बीच में कुछ आतताई आये ,
जो रच दिया वहीँ सही है |
आब आगे आओ शिक्षा पाओ,
डरो नहीं तू किसी से |
पढ़ लिखाकर अधिकार जमाओ,
यहीं मांग सभी से |
स्वरचित कविता द्वारा -कृष्णावती कुमारी
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Doha-
Naari hai anmol ratan ,
inko dena pyar |
Naari sukh sampada hai ghar ki,
yhin jivan ka sar |
Hein! jag janani he nirmata,
Tuhin hai nar naari janm data|
khud ko kar balidan sanjoti,
Sundar sa pariwarbanati |
Rishte ki yadi baat karun to ,
kisi ki beti kisi ki poti|
Kisi kisi ki patni kisi ki bahana,
kisi ke ghar ki sundar gahana|
Jis ghar mein apmanit hoti,
us ghar ki khushiyan mar jatai|
Jis ghar mein samman tu paati,
sada rahe lakshmi sanghati |
Babul ka ghar chhod paraye,
ghar ko apnati hai |
Nutan bagiya ko kaise
dar dar sajati hai |
Kahin sas naraj na hove
kahin nanad ruth jaye naa|
Kahin sasur ki daant naa pad jaye,
kahin devar itraye naa|
Pal pal bhay ye ati daraye
soch soch jiyara ghabraye |
Diva rain karun chakari sabki,
tani kaya aaram naa paye |
Fir bhi yash naa pai kabhi main,
bani bure ki khaan |
Jis ghar mein sab jivan bite ,
vahaan naa maan sammaan|
Naari teri yahin kahani,
yugon yugon se nahin hai|
Bich mein kuchh aattai aaye
jo rach diye vahin sahin hai |
Aab aage aaon shiksha paao,
daro nahin tu kisi se |
Padh likhakar adhikaar jamaao,
yahin mang sabhi se |
Swarachit – Krishnawati Kumari
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