नमस्कार दोस्तों,
Gaon ki Shardi Bhojpuri Kavita – आप सभी को यह बताते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि वर्ष 1999 मे यूनेस्को द्वारा मातृ भाषा दिवस मनाने के लिए घोषणा की गई थी। तभी से विश्व भर मे मातृ भाषा दिवस 21फरवरी को मनाया जाता है।
इस अवसर पर भले ही भोजपुरी भाषा को स्थान नही मिला है फिर भी मुझे अपनी मातृभाषा पर गर्व है। आज भले ही शहर के चकाचौंध में अपनी पहचान सभी ढूंढ रहे हैं। परन्तु आज भी गांव की यादें आंखें नम कर देती है। उन यादों को सरल शब्दों में मैंने व्यक्त किया है और एक छोटी सी कविता को चन्द पंक्तियों मेें बाांधने का प्रयास किया है। आप सभी का प्यार और आर्शिवाद अपेक्षित है।
गाँव का दृश्य |
कविता
गांव की शरदी
थर थर थर थर कांपे तन मन,
शरदी ऐसी सताई,
कम्बल उपर डालो भाई,
रुई वाली रजाई।
सांझ विहाने कउड़ा तापें,
गांती बांध के भाई।
लकड़ी लवना बिन बिन,
कोने में आग लगाई।
धुआं देख मुहल्ला सारा ,
दौड़े दौड़े आया ।
जल्दी आग से हाथ सेंकना,
हाथ में हाथ भिड़ाया।
दादी हुक्का चिलम बोरसी,
अचरा में घुसाई।
हे हे बबुआ धराद चिलम,
तनिक हम लेई चढ़ाई।
घाम जब डाले दुआरा पर डेरा,
सब लड़किन के भईल बसेरा।
हाथ में ऊन सलाई लेके ,
शुरू हुई बुनाई,।
कौन बुनेगा सबसे सुन्दर,
मन में होड़ लगाई।
ढली दुपहरी लौट चली सब,
अपने घर को भाई।
अम्मा चाची पूछे घूर घूर,
देर कहां लगाई।
अब आई मस्ती की बारी,
निकल पड़ीं खेतों की ओर।
सरसों, बथुआ साग निकाले,
घूम घूम देखी चहूं ओर।
कोई चन्ने की साग हाथ में,
मिर्ची नमक से खाये।
कोई मटर की छिमी तोड़ें
कोई चटकारे लगाये ।
ना कोई था पार्क ना कोई,
होटल बाज़ी होता।
खेत खलिहान में सारी मस्ती,
मौज हमारा होता।
नमस्कार, साथियों मैं Krishnawati Kumari इस ब्लॉग की krishnaofficial.co.in की Founder & Writer हूं I मुझे नई चीजों को सीखना अच्छा लगता है और जितना आता है आप सभी तक पहुंचाना अच्छा लगता है I आप सभी इसी तरह अपना प्यार और सहयोग बनाएं रखें I मैं इसी तरह की आपको रोचक और नई जानकारियां पहुंचाते रहूंगी I
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रचना-कृष्णावती
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