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अपनी तुलना किसी से क्यों नहीं करनी चाहिए

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 अपनी तुलना किसी से क्यों नहीं करनी चाहिए

अपनी तुलना किसी से क्यों नहीं करनी चाहिए – दोस्तों हमारी ईश्वर द्वारा  रचना की गई  है। हम सभी भगवान की रचना है। यदि तुलना करते हैं तो सीधे भगवान जी का अपमान हुआ।  अब आइए इस कहानी के माध्यम से  जानते हैं कि अपनी तुलना किसी से क्यों नहीं करनी चाहिए?

कौवा क्यों  रो रहा था- 

एक बार एक साधु महाराज एक पेड़ के नीचे से गुजर रहे थे। उपर से  एक पानी का बुन्द उनके गाल पर आ टपका। साधु महाराज ने उपर देखा,  तो एक कौआ रो रहा था। साधु महाराज ने कौवे से पूछा- क्यों रो रहे हो? क्या तकलीफ है?

कौवे ने जवाब दिया-रोऊँ नहीं तो और  क्या करू? यह भी कोई जीवन है?  मुझे काला बना दिया। जहाँ जाता हूँ.. लोग मुझे को को करके भगा देते है । कोई मुझे नहीं  पालता है। कोई मुझे रोटी भी नहीं देता है। जुठा खिलाता है।बस, श्राद्ध में काम आता हूँ।

साधु महाराज ने कहा-अच्छा तो ठीक है , बतावो   अगर तुम्हें दुबारा मौका मिले तो क्या बनना चाहोगे? कौवे ने जवाब दिया। बिल्कुल ! मैं  हंस बनना चाहूूँगा। हंस कितना सुन्दर, सफ़ेद रंग, पाया है। बाबा मुझे हंस ही बना दीजिये। साधु बाबा ने कहा-  तो ठीक है। जाओ हंस से मिलकर आओ। 

कौवा भागा भागा हंस के पास जा पहुचा। देखकर बोल पड़ा आहा , क्या सफेद रंग पाया है भाई। कितना सुन्दर शान्ति का प्रतीक माना जाता है । पानी मे ऐसे अपना पैर चलाते हो जैसे पैडल मार रहे हो। किसी  को पता ही नहीं चलेगा। कितने खुश हो भाई तुम। हंस बोला- तुझे कौन बोला कि मैं  बहुत खुश रहता हूँ।

हंस क्यों नहीं खुश था?

हंस बोला – मै नहीं  खुश हूँ।यह भी कोई रंग है? सफेद रंग। लोग आते है मेरा फ़ोटो खींचते हैं,पता ही नहीं चलता है कि मेरा खींचते हैं कि पानी का।मौत के बाद का रंग है ये। कौवा बोला- तो तुम खुश नहीं हो। हंस बोला बिल्कुल नहीं।

अपनी तुलना किसी से क्यों नहीं करनी चाहिए?

दोनों साधु बाबा के पास आकर बोले – बाबा मामला गड़बड़ है। बाबा हंस से पुछे- तेरे हिसाब से- हंस बोला मुझे तोता बना दीजिये। वाउ क्या लाल रंग का चोच है, क्या हरा वदन है। कितना सुन्दर,लोग पालते हैं।तुम्हें  मिट्ठू मिट्ठू कहके बुलाते है।

तोता क्यों दुखी था?

तोता ने कहा – हूँ! यह भी कोई रंग है हरा रंग, तुम लोग चार चक्कर लगाकर आये, मैं जल्दी मिला? नहीं न। मैं हरे पत्तों के साथ मिल जाता हूँ । साधु बाबा से तोता बोला-बाबा एक मौका मुझे दे दीजिये। मुझे बाबा मोर बना दीजिये।

बाबा ने कहा-तो ठीक है तीनों जाओ  मोर से मिलकर आओ। तीनों भागे  भागे मोर के पास पहुंचे। जाके मोर से पुछते है। मोर मोर क्या जीवन मिला है। कितना सुन्दर, कितना सुन्दर पंख, लोग तुम्हारे पंख खुलने का इन्जार करते हैं। जब घटा बरसती है,  तब तुम नाचते हो।लोग तुम्हें देखने आते है।  लोग फ़ोटो खींचते हैं। राष्ट्रीय पक्षी है तू। बड़ा खुश  रहता होगा तू।

मोर क्यों नहीं नहीं खुश था?

मोर बोलता है – कौन बोला जी कि मै खुश हूँ। कौवा बोला- क्यों तुझे भी  तकलीफ है। मोर बोलता है- हा भाई हा। तीनों मेरे पास आओ। इधर कान लगाकर ए आवाज सुनो! टक टक, टक टक, टक टक । सुनो ध्यान से कान लगाकर।तीनों कान लगाकर सुनते है । यह आवाज कैसी है।  यह आवाज शिकारी की है। यह मुझे मारकर मेरा पंख नोच लेगा और बाजार में बेचेगा।

लोग अपने घरों में लगायेंगे । कौवा मोर से पूछता है कि तो तुम  खुश नहीं हो। मोर बोलता है नहीं। तब तुम्हारे हिसाब से कौन सुखी है । मोर कौवे से कहता है कि, चिकन ब्रियानी  सुना है? कौवा बोला हा। मटन ब्रियानी सुना है?कौवा बोला हा। कौवा ब्रियानी सुना है? कौवा बोला नहीं।

तो जा सबसे सुखी जीवन तुम्हारा है। जा खुश रह। ना तुम्हें किसी से भय है ना तुमसे किसी को भय है। यहाँ तो अगले ही  पल का ठिकाना नहीं है। कब शिकारी के हाथों  मौत के घाट उतार दिया जाऊंगा। कोई ठिकाना नहीं है।

इसीलिए दोस्तों, हमे  कभी भी अपनी तुलना किसी से नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे भगवान का अपमान होगा। उम्मीद है आप सभी इस कहानी से  लाभान्वित होंगे।

  धन्यवाद दोस्तों,

लेखिका कृष्णावती 

https://krishnaofficial.co.in/

 

 

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