Chhathi Maiya Ki Utpati Kaise hui|छठी मैया की उत्पत्ति कैसे हुई
Chhathi Maiya ki Utpatti Kaise Hui- जानें छठ मैया की उत्पति कैसे हुई – दुनिया में भारत एक ऐसा देश है जहां सालों भर त्योहार मनाए जाते हैं I जिसकी एक लंबी सूची है I इन्हीं त्योहारों में जो खास पर्व है जिसे छठ महा पर्व कहा जाता है। इस पर्व का जिक्र पुराणों में भी किया गया है I
साथियो आइए जानते है कि छठ पर्व क्यों और कबसे मनाया जाता हैं? कौन हैं छठी मैया?
हमारा देश भारत त्योहारों की भूमि है I जहां सभी देवी-देवताओं की आराधना त्योहारों के रूप में भी की जाती है I सभी त्योहारों में से एक खास पर्व दीपावली है, जो पांच दिनों तक और यह छठ महा पर्व तक चलता है।
छठ पर्व भारत के बिहार झारखंड और पूर्वी उतर प्रदेश मेें मनाया जाने वाला महा पर्व धीरे धीरे प्रवासी भारतीयो के साथ साथ पुरे विश्व मेें मनाया जाने लगा है।
नहाये खाये से लेकर उगते हुए भगवान सुर्य को अर्घ देने तक इस चलने वाला महा पर्व का अपना एक अलग ही ऐतिहासिक महत्व है। इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानिया प्रचलित है।
पौराणिक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई अपनी संतान नही थी। तत्पश्चात महर्षि कश्यप जी ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर पूर्णाहुति के लिए बनाये गये खीर को राजा की पत्नी मालिनी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने के लिए दिया l
मालिनी ने प्रसाद को ग्रहण किया l तत्पश्चात रानी मालिनी को नौ महीने बाद पुत्र की प्राप्ति हुई | परंतु वह पुत्र मृत पैदा हुआ | जिससे पूरे राज्य में मातम छा गया | प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान घाट गये।
कौन है छठी मैैया ?
राजा पुत्र मोह में शोकाकुल होकर पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे|तभी उसी वक़्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई। उन्होंने राजा से कहा: क्योंकि मेरी उत्पति श्रृष्ठि की मूल प्रवृति के छठे अंश में हुई है।
इसी कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। हे राजन!आप मेरी स्वयं पूजा करें और लोगों को भी मेरी पूजा करने के लिए प्रेरित करें। राजा ने षष्ठी व्रत रखा पूजा अर्चना किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।
माना जाता है कि यह पूजा कार्तिक मास शुक्ल पक्ष षष्ठी को हुई थी। तभी से यह छठ पूजा होनी शुरू हुई है। इस कथा के अलावा राम सीताजी से भी एक कथा जुड़ी हुई है।
पौराणिक कथााओं के मुताबिक 14 वर्षो बाद जब राम सीता वन से अयोध्या लौटकर आये थे, उस समय उन्होंने रावण वद्ध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि मुनियो के आदेश पर राज सुर्य यग्य करने का फैसला लिया।
पूजा के लिए उन्होंने मुद्गल ऋषि को आमन्त्रित किया। ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ कर पवित्र किया। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष तिथि षष्ठी को सुर्य देव की उपासना करने के लिए आदेश दिया।
सीता माता ने भी छठ व्रत किया था।
जिसे सीता माता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम मेें ही रहकर 6दिन तक सुर्य देव की पूजा की थी।
अब आइए जानते है कि छठ पर्व किस प्रकार मनाया जाता है? छठ पर्व चतुर्थ दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरूआत कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रत धारी छतीस घण्टे का लगातार व्रत रखते है।
प्रथम दिन-
नहाय खाय ( कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थ )इससे पहले घर की सफाई कर पवित्र कर लिया जाता है।इसके पश्चात व्रत धारी स्नान कर शाकाहारी भोजन करते है।
ततत्पश्चात घर के अन्य सदस्य भोजन करते है । भोजन के रूप मेें कद्दू दाल और चावल ग्रहण किया जाता है।यह दाल चन्ने की होती है।
द्वितीय दिवस–
खरना कार्तिक मास शुक्ल पक्ष पंचमी को व्रत धारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते है। इसे खरना कहा जाता है। खरना का प्रसाद ग्रहण करने के लिए आस पडोस सभी को आमंत्रित किया जाता है।
यह प्रसाद गन्ने के रस, गाय का दूध और चावल से बनाया जाता है।प्रसाद मेें चीनी का प्रयोग नही किया जाता है।साथ ही घी चुपड़ी रोटी भी बनाई जाती है और घर की स्वच्छत पर पूरा ध्यान दिया जाता है।
तृतीय दिव –
संध्या अर्घ। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष षष्ठी को छठी मैया का प्रसाद बनाया जाता है। जिस तरह सैकड़ो सालो पहले यह पर्व मनाया जाता है उसी तरह आज भी मनाया जाता है।
प्रसाद के रूप में ठेकुआ, कसार परिवार के ही सदस्य बनाते है । बनाने वाले को भी सफाई का उतना ही ध्यान रखना होता है। ठेकुआ आटा और गुुड़ से घी मे तलकर पकाया जाता है वही कसार चावल व गुड़ से बनाया जाता है।
Chhath puja aur chhath maiya ki utpati l
साथ ही विशेष फल और शब्जिया भी चढा़ई जाती है। शाम को यह सारी व्यवस्था कर बास की सुपली मे सजाया जाता है।तत्पश्चात वर्ती के साथ परिवार के सदस्य और आस पडोस के सदस्य शाम के अर्घ के लिए घाट पर चल देते है।
शाम को डुबते हुए भगवान सुर्य अर्घ समूह मे सभी वर्ती कमर भर पानी मे खड़े होकर अर्पित करतें हैं। साथ ही सुपली भरे प्रसाद से पूजा करते है। ततत्पश्चात अपने अपने घर को सभी लौट आते है।
दीपक जलाने के लिए मिट्टी के दिये और कोशी भरने के लिए मिट्टी का कोशी उपयोग मेें लाया जाता है। अपने अपने घर मन्नत के अनुसार चौबी या अडतालीस कोशी गन्ने के साथ सुन्दर वस्त चढा़कर मंगल गीत गाया जाता है और छठी मैया की अराधना क की जाती है।
चतुर्थ दिवस–
उषा अर्घ (उगते हुए सुर्य अर्घ) कार्तिक मास शुक्ल पक्ष तिथि सप्तमी जिस तरह शाम को जिस स्थान मे सभी एकत्र होते है उसी स्थान पर सुबह सभी व्रत धारी एकत्र होते है।
आधे कमर भर पानी में खड़ा होकर वर्तधारी उगते हुए सुर्य को अर्घ देती है ।वर्ती कचे गाय का दूध और छठ प्रसाद खाकर व्रत पूरा करते है। दृश्य ऐसा मानो जैसे मेला लगा हो।।
कौन हैं छठी मैया और क्यों सुर्य उपासना के अवसर पर छठी मैया का जयकारा लगाते हैं-
वेदों के मुताबिक छठी मैया को उषा देवी के नाम से जाना जाता है।ऐसा कहा जाता है कि छठी मैया सुर्य भगवान की बहन हैं।छठी मैया की पूजा करने से और गीत गाने से सुर्य भगवान प्रसन्न होते है और सभी मनोकामना पुरी होती है।
”छठी मैया का सबसे प्राचीनतम गीत- काच ही बास के बहंगिया बहंगी लचकत जाय”।
आज भी वर्ती इसी गीत से छठी मैया की पूजा अरचना शुरू करतीीं हैैं। उम्मीद है आप सभी इस कथा से लाभान्वित होगे। जय छठी मैयाI
आइये नीचे सुंदर सा छठ मैया गीत सुनते हैं |
नोट – सभी जानकारिया बुजुर्गो द्वारा मैखिक श्रवण, इन्टरनेट और पत्रिका के माध्यम से प्राप्त की गई है जो आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है।
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धन्यवाद साथियो,
संग्रहिका- कृष्णावती कुमारी
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