हम महा शिव रात्रि क्यों मनाते है ?
शिवरात्रि प्रति माह कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को पड़ती है। लेकिन प्रश्न उठता है कि क्यों फाल्गुन में ही कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को ही महाशिव रत्रि के रूप में मनाया जाता है और क्यों महाशिव रात्रि कहा जाताहै ?
साथियों, आइए अब विस्तार से जानते हैं कि महा शिव रात्रि क्यों मनाया जाता है? शिवरात्रि से जुड़ी दो प्रमुख कथाएं है जो उतर भारत और दक्षिण भारत में विशेष रूप से प्रचलित है I दोनों कथाओं को मैं आप सभी को संक्षेप में बताने की कोशिश करूंगी I
प्रथम कथा-
यह कथा रामचरितमानस और भागवद पुराण में भी मिलती है I जिसमें शिव विवाह की कथा है I इस कथा के अनुसार एक बार शिवजी और सती जी जा रहे थे तभी उन्होंने राम और लक्ष्मण जी को देखा कि वे दोनों सीता जी को दंडकारण्य में ढूंढ रहे थे I तभी सती ने देखा कि शंकर जी उन्हें प्रणाम किए I
अब शती जी गहन चिंतन में पड़ गई कि ऐसा कैसे हो सकता है कि निराकार भगवान साकार हो गए और साकार भगवान निराकार हो भी गए तो अपनी स्त्री को ढूढ़ रहे हैं ? माता के अन्तर्मन में यह द्वंद चलने लगता है I यह तो सर्वज्ञ हैं, सर्व व्यापी हैं, इन्हें तो मालूम होना चाहिए कि इनकी पत्नी कहाँ हैं! उसके बाद वह शंकरजी से मन की बात कहतीं हैं I
रामचरितमानस के बाल कांड में लिखा गया है-
“ब्रह्म जो व्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद।
सो की देह धरी होई नर जाहि न जानत वेद।”
अर्थात जो ब्रह्म सर्व व्यापक, माया रहित अजन्मा, अगोचर, इच्छा रहित और भेद रहित है, जिसे वेद भी नही जानते, तो क्या वह शरीर धारण करके मनुष्य हो सकता है?
रामचरितमानस बालकांड –
“विष्णु जो सुर हित नर तनु धारी सोउ सर्वग्य जथा त्रिपुरारी।
खोजई सो की अज्य इव नारी ग्यान धाम श्री पति असुरारी। ”
अर्थात – देवताओं के हित के लिए मनुष्य रूप धारण करने वाले जो विष्णु भगवान हैं, वे भी शिव की ही भांति सर्वज्ञ हैं I वे ग्यान के भंडार लक्ष्मी पति और असुरों के शत्रु भगवान विष्णु क्या अज्ञानी की तरह स्त्री को खोजेंगे? शती जी नहीं मानती हैं,I
तब शंकर जी कहते हैं , जब आप नहीं मानेंगी तो आप परीक्षा ले लीजिए I तब सती जी के मन में विचार आता है कि सही बात है, क्यों ना परिक्षा ही ले लिया जाय I उसके बाद सती माता सीताजी का रूप धारण कर बैठ जाती है I जब राम जी सीता रूप में सती को देखते हैं तो तुरंत कहते हैं- माता जी पिताजी किधर है I
शंकर जी सती का त्याग क्यों किए थे?
ऐसा सुनकर सतीजी को और भरम हो जाता है और वापस आकर शंकर जी से झूठ बोलती है कि मैंने परिक्षा नहीं ली I परंतु शंकरजी तो अन्तर्यामी I वह जान गए कि अब तो यह मेरी माता सीता का रूप धारण कर ली हैं, तो अब इनके साथ पति पत्नी का रिश्ता तो नहीं रह सकता हैI इसीलिए शंकरजी ने सती को त्याग दिया था I
उसके बाद सती को यह भान हो गया कि शंकरजी ने मुझे त्याग दिया है I एक दिन सती के पिता यक्ष जी यज्ञ करवा रहे थे I लेकिन उन्होंने शिवजी को निमंत्रण नहीं भेजा यानि नहीं बुलाया I परंतु सती जिद्द करने लगी कि मैं भी यज्ञ में जाऊँगी I शंकर जी ने सती से कहा कि जब आप नहीं मानेंगी तो जाइए I
शंकर जी ने सती को अपने गणों के साथ जाने का आदेश दे दिया l सती आपने पिता के यज्ञ में शामिल होने के लिए प्रस्तुत हो गई I परंतु सती के बहनों ने बहुत स्नेह से बात चित नहीं किया I लेकिन माँ तो माँ होती हैं I उनकी माँ ने आदर सत्कार किया I अब सती जी वहां से यज्ञ स्थल पर जाती है I यज्ञ स्थल पर सबका आसन दिखा परंतु शिवजी का आसन नहीं दिखा I
तब सती अति अपमानित महसूस करती हैं और क्रोध में वहीं अपने को अग्नि में भस्म कर लेती है I इसके बाद स्वयं रामजी शंकर जी के पास गए थे और बोले कि जब प्रस्ताव विवाह के लिए आयेगा तो आप हाँ कर दीजियेगा I फिर यही सती जी पार्वती जी का अवतार लेकर पिता हिम नरेश और माता मैना के घर में आती है I
पार्वती बड़ी हो जाती हैं तो पिता को बेटी के हाथ पीले करने की चिंता होती हैं I एक दिन नव योगेश्वरो ने पार्वती जी से परीक्षा लेते हैं I पार्वती जी ने जवाब दिया कि मैं विवाह सिर्फ शिवजी से ही करूंगी I यदि, किसी कारण वस शिवजी से विवाह नहीं हो पाती है,तो, मैं अनंत काल तक कुंवारी रह रहूँगी I
ऐसा जवाब सुनकर शिवजी और पार्वती जी का विवाह होना तय हो गया I जिस तिथि को यानि फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिव जी और पार्वती जी का विवाह हुआ उसी दिन से इस तिथि को महा शिव रात्री के रूप में मनाया जाता है I
अब दक्षिण भारत में जो कथा प्रचलित है वो यह है कि हरेक ब्रहमांड में ब्रह्मा विष्णु महेश होते हैं I परंतु अनंत ब्रहमांड है तो अनन्त ब्रहमा, विष्णु महेश होंगे I ईन सभी ब्रह्ममान्डो के एक सदा शिव और एक महा विष्णु होते है I यह जो सदा शिव है, वे सदा रहते हैं I अब जब महा प्रलय होता है जिसमें समस्त ब्रह्मांड भगवान में लीन होते हैं तो वह सदा शिव में जाकर लिन हो जाते हैं I
सदा शिव सदा रहते हैं वो किसी में लीन नहीं होते हैं I अब एक दूसरा प्रसंग आता कि ब्रह्म जी और विष्णु जी के बीच में चर्चा होती है कि हम दोनों में से बड़ा कौन है? तभी एक खंभा प्रकट हो जाता है I तब ब्रह्म जी ने कहा कि मैं इसका आदि देखता हूं और विष्णु जी ने कहा मैं इसका अंत देखता हूं l परंतु दोनों के अथक प्रयास करने के बाद भी नहीं आदि पता चलता है ना अंत का I
यह प्रकरण शिव रात्री के दिन ही हुआ था I भक्त इस दिन पुरी रात जागकर और उपवास करते है भजन कीर्तन करते है I उपवास का मतलब होता है: उप मतलब– समीप (निकट)और वास मतलब- निवास I यानि उपवास के माध्यम से भगवान के समीप रहना I भजन कीर्तन के माध्यम भगवान को स्मरण करना I इसीलिए इस दिन कुँवारी लड़कियां सुन्दर वर के लिए शिव रात्री के दिन उपवास करती हैं और भंग , धतुर ,बेलपत्र अकवन और जल चढ़ाती है।
महा शिव रात्री का महत्व- महा शिव रात्री का महत्व इसलिए है क्योंकि शिव और शक्ति के मिलन की रात्रि है I आध्यात्मिक रूप से प्रकृति और पुरुष के मिलन के रूप में भी कहा गया हैं I
अब साथियों ,अंत में मुझे यह समझ में आया कि अपमानित करने का शील शीला सदियों से ही चला आ रहा हैं I चाहें वह पुरुष हो या महिला I मैके हो या ससुराल।
आइए इस पावन दिवस पर एक शिव भक्ति गीत का आनंद लिया जाय जो निम्नवत है I
शिव भजन
जिनके सिर पर हो भोले का हाथ रे।
वो नर नाही होवे अनाथ रे । 2
लाख बाधा हो तेरे सफर में I
मैं रूकूगी ना आधे डगर मेें ।
चाहें जीवन बचे नाहीं आज रे।
वो नर ना होवे आनाथ रे।
जिनके ••••••••••••••
तेरे दर्शन की हू मै दिवानी ।
चाहें हठ मानो चाहें मनमानी ।
जपते जपते आऊंगी ओम नाम रे ।
वो नर नाही हो अनाथ रे।
जिनके •••••••••
मन के मंदिर में जो नित ध्यावे ।
पल में रंक से राजा हो जावे ।
उनकी कृपा बनी रहे साथ रे ।
वो नर ना होवे अनाथ रे ।
जिनके •••••••••
धन्यवाद पाठकों
रचना-कृष्णावती कुमारी
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