Madhushravani parv Katha|मधुश्रावनी व्रत कथा
Madhushravani Parv Katha-सावन मास का अपना विशेष महत्व होता है| Madhushravani parv katha सावन महीने में 14 दिनों तक चलनेवाला बिहार प्रांत मिथिलांचल का बड़ा ही महत्वपूर्ण और लोकप्रिय पर्व है|इस पर्व में नव विवाहिता माँ गौरी की आराधना करती हैं और बासी फूल से पूजा करती हैं ताकि उनका सुहाग अमर रहे |
सुहागन स्त्रियाँ इस व्रत के पीछे गहरी आस्था रखती हैं|ऐसी मान्यता है कि इस व्रत पूजन से वैवाहिक जीवन में स्नेह और सुहाग बना रहता है|नव विहाहित कन्याएँ श्रावण कृष्ण पंचमी के दिन से सावन शुक्ल तृतीया तक यानि 14 दिनों तक दिन में बस एक समय भोजन करती हैं | आम तौर पर कन्याएँ सावन के महीने में अपने पीहर में ही रहती हैं |वहीं शिव कि आराधना करती हैं |
ऐसे तो सावन में देवाधि देव महादेव की पूजा अर्चना ,रुद्राभिषेक इससे भी बढ़कर दूध और गंगाजल चढ़ाना|इतना ही नहीं बालक, वृद्ध , पुरुष नर -नारी युवक सभी औघड़दानी भोले से आराधना करतें है ,अपने और अपने परिवार के कल्याण के लिए मनचाहा वरदान मांगते हैं| यही नहीं सावन मास में निर्धन से लेकर धनवान तक, नेता से लेकर अभिनेता तक, सभी भोले नाथ के शरण में जाकर मनवांछित फल पाने की हार्दिक अभिलाषा रखते हैं |
सुर,असुर, नाग, गंधर्व ,ऋषि मुनि , अघोरी, राक्षस, देवता, भगवान, शिव की शरण में त्राहि माम कहकर मस्तक झुकाते हैं|अब हम आइये आपको मिथिलांचल के मधुश्रावणी कथा से अवगत कराते हैं |ऐसे तो 14 दिनों की अलग अलग कथाएँ हैं परंतु आज हम उसी कथा पर चर्चा करेंगे जो मधुश्रावनी के दिन सुना जाता है |
क्या है मिथिलांचल का मधुश्रावणी पर्व कथा ?
राजा श्रीकर के यहाँ एक कन्या का जन्म हुआ था| कन्या के जनमोपरांत राजा ने विद्वान पंडितों को बुलाकर कन्या की कुंडली दिखवाई |कुंडली देखने के बाद पंडितों ने बाताया की कन्या के कुंडली में कुछ दोष है |राजा ने पूछा कि क्या दोष हैं पंडितजी मुझे बताएं |
पंडित जी बोले की इस कन्या को अपने सौतन के तालाब में मिट्टी ढोना होगा |राजा यह सुनकर अति दुखी हुवे | मानो उनके ऊपर बज्रपात हो गया और राजा इस दुख से इतने आहत हुवे की सहन नहीं कर पाये और सदा के लिए मृत्यु के गोद में सो गए |राजा के मरणोपरांत राजा श्रीकर के पुत्र चन्द्र्कर राजा बने |राजा चन्द्र्कर अपनी बहन को बहुत प्यार करते थे |
इसीलिए वह अपनी बहन को उसकी सौतन के दबाव में रहने देना नहीं चाहते थे| एक दिन चन्द्र्कर ने काफी मन में विचारकिया, सोचा क्यों न एक सुरंग बनवा दिया जाय |राजा ने सुरंग बनवाया और राजकुमारी के साथ एक दासी को उस सुरंग में रहने की व्यवस्था कर दिया |
ताकि किसी पुरुष से राजकुमारी की मुलाक़ात न हो |परंतु भाग्य को तो कुछ और ही मंजुर था………. |एक दिन सुवर्ण नाम के राजा जंगल में शिकार खेलने आए और शिकार खेलते हुवे उस सुरंग के पास पहुँच गए |उस बीच राजा को बहुत ज़ोर की प्यास लगी थी| राजा पानी के तलाश में थे |तभी उनकी नज़र चीटियों पर पड़ी जिनके मुह में चावल के दाने दिखे |
यह भी पढ़े :
काशी का संक्षिप्त इतिहास |कविता
शिवरात्रि को महा शिवरात्रि क्यों कहते हैं ?
भगवान शिव के बारे में फैलाये पाँच झूँठ
जाने भगवान के हरिहर स्वरूप का रहस्य
madhu shravani vrat katha hindi mein
अब राजा ने चीट्टियों का पीछा करना शुरू कर दिया| पीछा करते हुवे राजा एक सुरंग में पहुँच गए |जहां राजा सुवर्ण की मुलाक़ात राजकुमारी से हुई और दोनों ने विवाह कर लिया | दोनों सुरंग में साथ रहने लगे | परंतु कुछ समय साथ रहने के बाद राजा को अपने राज्य की याद सताने लगी और राजा ने राजकुमारी से अपने राज्य लौटने की अनुमति मांगी |
तब राजकुमारी ने राजा से एक आग्रह किया और कहा :आप जा सकते हैं |परंतु सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मधुश्रावनी पर्व होता है| उस दिन नवविवाहित कन्याएँ ससुराल से आया हुआ अन्न खाती हैं और ससुराल से आए वस्त्र को ही धरण करती हैं | राजा ने सभी बातों को सहश्र स्वीकार किया और जल्दी ही वापस आ कर अपने राज्य ले जाने का वादा किया |उसके बाद अपने राज्य लौट गए |
राजा अपने राज्य का जो सबसे बेहतरीन चुंदरी बनाने वाला व्यक्ति था ,उसको अति सुंदर ‘चुंदरी प्रिंट’ करने का आदेश दिये |लेकिन इस बात की भनक राजा की पहली पत्नी को लग गई | रानी ने वस्त्र बनाने वाले कारीगर को सोने का लालच देकर चुंदरी पर छाती पर लात मारते हुवे ,बाल पकड़ कर खींचते हुवे तुम्हारी सौतन तुम्हें मारेगी ऐसा लिखकर वस्त्र तैयार करना है |
कारीगर सोने के लालच में आकार ऐसा वस्त्र तैयार किया |वस्त्र बनाने वाले ने चुंदरी को ऐसा लपेट कर दिया की राजा को कुछ पता नहीं चला| राजा ने उस चूँदरी को उसी तरह लपेट कर समय आने पर एक कौवे को पहुंचाने के लिए दिया |पौराणिक कथाओं में कौवे भी संदेश वाहक के रूप में काम करते थे |ऐसा वर्णन मिलता है |
कौवा संदेश लेकर उड़ते हुवे जा रहा था कि रास्ते में उसकी दृष्टि ‘भोज ‘हो रहे स्थान पर पड़ गयी|क्या करें ,ठहरा जाति का कौवा, भला जूठा खाने से कैसे रोक पाता | कौवा महाराज वहीं चुनरी को छोड़कर जूठन खाने लगे |अब इधर राजकुमारी मधुश्रावनी के दिन इंतजार कर रही थीं कि राजा का संदेस आए और मैं पूजा करूँ |
परंतु राजा के यहाँ से कुछ नहीं आया….. |राजकुमारी उदास और क्रोधित होकर सफ़ेद फूल और सफ़ेद चन्दन से माता पार्वती की पूजा कीं और विनती करते हुवे बोलीं :हे मातें जिस दिन राजा से मेरी मुलाक़ात हो उस दिन आवाज चली जाय |
इधर जब राजकुमारी के भाई चन्द्र्कर को पता चला कि बहन ने बिना बताए विवाह कर लिया है, तो उन्होंने राशन पानी ही भेजना बंद कर दिया |ऐसे में दासी और राजकुमारी को भूखों रहने की नौबत आ गई | एक दिन राजकुमारी को पता चला की पास ही में तालाब की खुदाई का काम चल रहा है |
राजकुमारी अपनी दासी को लेकर तालाब खोदने चली गईं ताकि जो भी मजदूरी मिलेगी |उनसे गुजारा हो सके |संयोग बस राजा सुवर्ण भी वहाँ आए हुवे थे, जहां तालाब की खुदाई चल रही थी|राजा की पहली पत्नी उस तालाब को खोदवा रही थी | राजा की नज़र दासी और राजकुमारी पर पड़ा |
राजा स्वर्ण रानी को पहचान गए और अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी | उसके बाद राजा राजकुमारी को महल लेकर चले गए और रानी का स्थान दिलाया |लेकिन राजकुमारी अब बोल नहीं सकती |राजा ने दासी से सारी घटना की जायजा लिया |राजा ने कहा :मैंने चुनरी तो भेजी थी | राजा समझ गये की यह सारी उलझन कौवे के चलते हुई है |
अब राजा चुनरी की तलाश में जुट गए | चुनरी मिली और उसपर बड़ी रानी का लिखवाया हुआ संदेश भी दिखा |राजा इस बात से बड़ी रानी पर अति क्रोधित हो गए और उन्हें मृत्यु दंड दे दिया | अगले वर्ष जब मधुश्रावणी का पर्व आया तो राजकुमारी ने लाल फूल और लाल वस्त्र से माता पार्वती की पूजा अर्चना की और अपनी आवाज वापस लौटाने की प्रार्थना की|जिससे राजकुमारी की वाणी लौट आई |
इसके बाद राजा स्वर्ण और राजकुमारी वर्षों तक वैवाहिक जीवन का सुख भोगते रहें |तभी से मिथिलांचल में यह पर्व बड़ी धूम धाम से सुहागिने मानती हैं|ताकि उनके वैवाहिक जीवन में मधुरता बनी रहे और उनका सुहाग अमर रहे |अब आइये मिलकर निम्नवत भनवान शिव शंकर पर आधारित इस कविता का आनंद उठाया जाय |
Poem on Shiv Shankar |शिव शंकर पर कविता
शिव शंकर
धारण विषधर पिएँ हलाहल ,
धूनी रमाएँ शिवशंकर |
औघड़दानी बने मसानी ,
जग कल्याणी शिवशंकर|
सती पति भी उमा पति भी,
गिरिजा पति भी शिवशंकर |
पूर्ण हुवे शिव संग शक्ति के,
संग भवानी शिव शंकर |
माथे चंद्र सोहे गले भुजंगा ,
बाघ छाल शोहे तन पर |
त्रि नेत्र को धारण करते ,
त्रिभुवन स्वामी शिव शंकर |
जग की पीड़ा हरते हर पल ,
जब भी संकट आए जग पर |
बीच भंवर में नांव पड़ी मोरी ,
पार लगाओ शिवशंकर |
किस विधि पूजन करूँ तुम्हारी ,
महिमा गाऊँ मैं क्यूंकर |
हूँ आनाथ हे जग के पालक ,
चरण शरण दो शिव शंकर |चरण शरण दो शिव शंकर
धन्यवाद,
रचना – कृष्णावाती कुमारी
.