Kharamas Kya Hota Hai|हिन्दू धर्म में खरमास क्या होता है
Kharamas Kya Hota Hai – हिन्दू धर्म में खरमास क्या होता है ? खरमास का मतलब, खर माने दुष्ट और मास माने महिना, यानि दुष्ट-मास कहना कोई गलत नहीं होगा| जब सूर्य धनु या मीन राशि में भ्रमण करते हैं और जीतने समय तक उस राशि में रहते है उस समय यानि अवधि को खरमास कहते हैं |
मार्गशीष और पौष महीने के संधि काल में खरमास की उत्पति होती है |मार्गशीष का दूसरा नाम अर्कग्रहण भी है |जो अपभ्रंश होकर अगहन के नाम से भी जाना जाता है|बोलचाल की भाषा में प्राय:लोग इसे अगहन ही कहते है |अगहन और पौष मास के बीच में ही खरमास दिन पड़ता है |
सूर्य देव जब धन के मालिक वृहस्पति के धनु राशि में या मीन राशि में भ्रमण करते हैं ,तब उस समय को मनुष्यों के लिए शुभ नहीं माना जाता है |जिसके कारण इस खरमास के महीने में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है |जैसे; विवाह ,उपनयन संस्कार, मुंडन, नकछेदन,गृह -प्रवेश ,भजन-कीर्तन इत्यादि |
इस महीने में सूर्य तक की रौशनी कम हो जाती है | यहाँ तक की सूर्य की किरणें बिलकुल दुबली पड़ जाती है |जिसके कारण ठंढ में धूप सभी प्राणी को अच्छी लगने लगती है |जैसे हीं धनु राशि में प्रवेश करते हैं ,वैसे ही गुरु भी प्रभावहीन हो जाते है |
Kharamas Mein Shubh Kary Kyon Nahin Kiye Jate Hai?
इस महीने में वृहस्पति का स्वभाव उग्र हो जाता हैं क्योंकि सूर्य धनु राशि में भ्रमण कर रहे होते है | मार्गशीष और पौष मास के बीच में ही खरमास की उत्पति होती है |जिसके कारण हिन्दू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है | जैसे; विवाह ,उपनयन संस्कार, मुंडन, नकछेदन,गृह -प्रवेश ,भजन-कीर्तन इत्यादि |
इस मास में सभी शुभ कार्य वर्जित होते है | हिंदुओं के बीच ऐसी मान्यता है कि खरमास में शुभ कार्य की चर्चा तक नहीं करना चाहिए |हिन्दू पंचांग के अनुसार सूर्य सभी राशियों में 1-1 महिना रहते हैं |जब यह धनु राशि में आते हैं तब खरमास कहलाता है |
जिस दिनांक को खरमास की समाप्ति होती है यानि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं| उस दिन मकर शंक्रांति बड़े हर्षों उल्लास के साथ पूरे भारत वर्ष में मनाया जाता है |प्रत्येक राज्य में मकर संक्रांति के नाम अलग अलग होते हैं |आइए सभी राज्यों के त्यौहारों के नाम को निम्नवत विस्तार से जानते हैं |
Kharamas sabhi rajyon mein kis naam se manaya jaata hai
इसे आंध्र प्रदेश में पेद्दा पांडुगा,कहा जाता है ,तो वही कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र में मकर संक्रांति, कहा जाता है |
तमिलनाडु में पोंगल,असम में माघ बिहू,मध्य और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में माघ मेला,पश्चिम में मकर संक्रांति,मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। केरल में शंकरंती, और अन्य नामों से जाना जाता है ।
पंजाब में कुछ लोग इसे उत्रैण, अत्रैण’ अथवा ‘अत्रणी’ के नाम से भी जानते है।
इससे एक दिन पूर्व लोहड़ी का पर्व भी मनाया जाता है, जो कि पौष मास के अन्त का प्रतीक है। मकर संक्रान्ति के दिन माघ मास का आरंभ माना जाता है, इसलिए इसको ‘माघी संगरांद’ भी कहा जाता है|
पौष संक्रांति , बंगाली महीने पौष का आखिरी दिन, मकर संक्रांति के रूप में भी जाना जाता है और यह बंगाल में फसल उत्सव का दिन है। बिहार ,झारखंड उड़िशा में मकर संक्रांति कहा जाता है | यहाँ दही चूड़ा तिल का लड्डू और खिंचड़ी के साथ मनाया जाता है |उतर प्रदेश में तिल के लड्डू और खिचड़ी खाकर संक्रांति मनाया जाता है |
हिमांचल में माघ साजी कुमांऊ में ‘घुघुतिया’, |
सभी प्रान्तों में अपने अपने अंदाज और तरीके से इस त्यौहार को सभी लोग बड़े धूम धाम से मनाते है |कहीं वहीं फसल के पैदवार की खुशी में, तो कहीं मौसम के बदलने की खुशी में, तो कहीं वसंत ऋतु के आगमन की खुशी में सभी प्रान्तों की अगल मनाने की कला है | अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक करे
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