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Bitiya Janam Naa Dijo

  Bitiya Janam Naa Dijo| प्रभु बिटिया जन्म  दिजजो 

 Bitiya Janam Naa Dijo – प्रभो बिटिया जनम ना दिजो ।आज समाज इतना क्रूर हो गया है कि संसार की प्रत्येक नारी यही कहती है, प्रभु बिटिया जन्म नहीं दीजो।चाहे वह त्रेता युग की सीता माता हों या द्वापर युग की द्रौपदी। समाज हमेशा से नारियों का दोहन करते आया है

मैंके में मां दादी एवम चाची की सलाह, धीरे बोल ससुराल जाना है। चूल्हा चौका सीख, सास कहेगी तेरी मां क्या सिखाई है। सबने बच्चपन से दबाया। आज हम थोड़ी समाज से रुबरु होने चली तो, मनचले सड़क पर चलने नहीं  देते। रास्ता रोक लेते है।

अपशब्द बोलते है और तो और जवाब देने पर धमकी दे डालते है। अगले दिन देख लेंगे। बस अगले दिन के ताक लग जाते है।

जिस दिन वह अगला दिन आता है उसी दिन मेरा आखिरी दिन होता है। हैवानियत की सारी हदे पार कर दी जाती है। मुझे लहूलुहान कर गिद्ध सरीखे नोच लिया जाता है। मैं अकेली वो हैवान दस, मैं क्या करती, अंत मेरा वही होता है जो दरिन्दे चाहते है।

मैं इस  समाज से, सभी नर नारी से यही कहूंगी कि अगर किसी को नसीहत देना है तो अपने इन बेटों को दें। ताकि किसी भी लड़की के तरफ बूरी नजर नहीं  डाले।

अंत में मैं भगवान से भी यही प्रार्थना करूंगी कि नारी को भी उतना ही बाहुबली बनायें अब आप इस भेद भाव को त्याग दे।

इसी व्यथा को मैनें एक छोटी सी कोशिश की है।  शब्दों को बाधकर समाज का सच आप सभी के समक्ष रखने   की है, जो निम्नवत है, उम्मीद है आप सभी को पसंद आए। पसंद आए तो आप सभी हमारे ब्लौग पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें। 

                                                              गीत

कहीं रुलाई गई, कहीं सताई गई
कहीं जलाई गई, तो कहीं हबस बनाई गई।

जहां अंधा कानून जहां गूंगा कानून
नाहीं देखे नाही सुने, नाहीं बोले कानून ।

कहीं कलियां खिलीं , फूल खिल ना सका
कहीं धूं धूं जला , अधर  खूल ना  सका।
माली रो रो पुकारे, मोसे हुआ क्या कूसुर
गुड़िया क्यो हुई, दूर,सुगिया क्यो गई दूर।
जहां अंधा कानून………..

रोती चिखती बिलखती, करती गुहार।
कोई लाज बचाओ, आके  हमार।
नैना कातर  निहारे, सहूं केतना जूलुम।
जहां अंधा कानून…….
जहां गूंगा कानून………

चाहे द्वापर हो,  चाहे त्रेता काल
‌ युगों युगों से हुआ,  यहीं  मेरा हाल।
कोई युगती बनावो, ऐसी ना होवे जूलुम।
जहां अंधा कानून………..
जहां गूंगा कानून………….

आइए इस गीत को निम्नवत सुनते हैं और इसका आनंद लेते हैं:

 

धन्यवाद पाठकों,
रचना-कृष्णावती

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