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Maa Ki Aakhiri Ummid Bete Se Kya Thi बूजूर्ग माँ की उम्मीद बेटे से

Maa Ki Aakhiri Ummid Bete Se Kya Thi |माँ की आख़िरी उम्मीद बेटे से ,बुजुर्ग माँ की आखिरी उम्मीद  

Maa Ki Aakhiri Ummid Bete Se Kya Thi-जिस माँ ने अपनी चारों बेटियों और बेटे में अन्तर करती रही थीl वह माँ,  आज बेटे के इंतजार में बुढ़ापा कैसे बिता रही है! आइए निम्न वत इस लेख में जानते हैं l माँ बेटा-बेटी में कैसे अन्तर करती रही है

साथियों, सबसे पहले हम जानेंगे की एक माँ,  कैसे अपने ही बच्चों में  अन्तर करती है I एक माँ की चारों बेटियां भी आगे पढ़ना चाहती थी I इसी सिलसिले में माँ से एक दिन बड़ी बेटी बोली- माँ माँ…, मैं भी पढ़ना चाहती हूं I

माँ, गुस्से में  आकर चाटा मार देती हैं I  कहती है, तू नहीं पढ़ेगी !  तू चिट्ठी लिखने भर पढ़ तो ली है  I जा घर का काम कर l बड़ी बेटी उदास होकर.., हाथ में झाड़ू लेकर आँगन में झाड़ू लगाने लगती है I बड़े बरामदा में दो तक्थ, एक साथ जोड़ कर बेड लगा दिया गया है | इसी पर चारों बहनें सोती हैं |

कई दिनों बाद एक दिन जाड़े की धूप सेकती सबसे छोटी बेटी माँ के पास बैठी। माँ के सिर में तेल लगाते हुए माँ से कहती है-माँ तू भैया को तो, रोज ही दूध देती हो,  घी खिलाती हो, हमें क्यों नहीं देती माँ ? आखिर हमें क्यों नहीं.??

बेटा बेटी में अंतर 

माँ कड़क आवाज में बोलती है, “तुम चार हो ” वह अकेला है….l कान खोल कर सुन लो.., दुबारा कभी मत कहियो…। छोटी बेटी जवाब देती है, भैया अकेला कैसे है?,, हम पांच तो हैं माँ.. | चुप कर खकही…….तू उसकी बराबरी करेगी I तू उससे जलती है I क्यों नहीं समझती की वह लड़का है और तुम चारों लड़की हो |

एक ही भाई है… और उससे भी..तुम जलन रखती हो I यही स्कूल में पढ़ती हो I कल से तुम्हारी पढ़ाई लिखाई बंद I तुम चारों पराये घर चली जाओगी I वहीं हमारा सहारा है I परंतु माँ हमें स्कूल में तो ”लड़की लड़का एक समान” ‘पढ़ाया जाता है I

आखिर माँ ये बताओ अंगुलियों को काट कर ,भला मुट्ठी कोई कैसे बांध सकता है? ऐसा है, अब तुम ज्यादे पढ़ गई हो I तुम्हारी जुबान कुछ ज्यादे ही चलने लगी है I यही सब स्कूल में पढ़ाया जाता है I

खिंच कर, एक कान के नीचे दूंगी समझी I दादी चिलम पी रहीं थीं I माँ बेटी के बीच चल रही वार्ता को चुप चाप सुन रही थीं I पर, अब दादी से चुप नहीं रहा गया I माँ पर भड़क गई I जोरऽऽ से माँ को डाटा.. I

चुप करो सीमा l माना कि  तुम्हारे जैसे मैं पढ़ी लिखी नहीं हूँ I परंतु गलत सही की समझ तो , भगवान ने मुझे दिया ही है I हमारी पोती बिल्कुल सही है I कोई गलत नहीं कहो है I तुम खुद नारी हो और नारी ही इस तरह की बात करेगी, तो हमारी बेटियों की भावनाओं को भला कौन समझेगा?

भेद भाव  बिल्कुल अच्छी बात नहीं है I सीमा अपनी हथेलियों को देखती हुई……नहीं अम्माजी  ….अब बिल्कुल नहीं… Iएक करके साल दर साल चारों बेटियों की शादी हो जाती हैं I सभी अपने अपने ससुराल में पति और बच्चों के साथ मगन हो जाती हैं I बेटा को भी अच्छी जॉब मिल जाती है और वह विदेश चला जाता है I
विदेश में अपने कंपनी में काम करने वाली लड़की के साथ बेटा शादी करके विदेश में ही बस जाता है I बेटे को जब विदेश गये पांच साल बीत जाते हैं I तब माँ, एक दिन फोन पर बेटे से कहती हैं I बेटे अब घर आजा… I तेरी एक झलक पाना चाहती हूं…. I

बेटा जहाज की टिकट तो कराता है I पर कभी मौसम खराब के कारण टिकिट कैंसिल  हो जाती है, तो कभी तबियत खराब का बहाना बनाता है I तो कभी तारीख़ पे तारीख़ देता है I इस तरह इंतजार करते करते कई वर्ष बीत जाते हैं I 

यहां ‘पंडित रामाशीष महाराज ‘ जी की दो पंक्तियाँ बिल्कुल फिट बैठती है कि,

“जब तक जवानी तब तक ज़माना, आए बुढ़ा तो कोई ना चाहे जब ये जवानी खतम होई जाये

जब माँ जवान थीं भेद भाव से भरी थी I आज बुढ़ापे में, कैसे नयन बिछाये,   बेटे की राह देख रही है बुढ़ी माँ! मैंने इस माँ के मनोदशा को एक कविता का रूप दिया है।Maa Ki Aakhiri Ummid Bete Se Kya Thiउम्मीद है, आप सभी को पसंद आयेगा I आप सभी का प्यार और आशीष अपेक्षित है I कृपया इस पोस्ट को ज्यादे से ज्यादे शेयर करें I 

             कविता

औलाद वाली बाँझ | Maa Ki Aakhiri Ummid Bete Se Kya Thi

तोड़ती दम साँझ,उम्र के पड़ाव पर |

कौन खाए तरस अब इस,बच्चों वाली बाँझ पर |

 

जिनके उज्जवल तक़दीर की खातिर, गिरवी रख दी जवानी I

अपनी सुनी ना दिल की, बस सहती रही तेरी मनमानी I

 

एक दिन मेरा लाल ,बड़ा नाम कमाएगा |

उस दिन मेरा हृदय,फुले नहीं समायेंगा |

 

लेकिन अब हाल क्या बताऊँ, ना कोई आती चिट्ठी ना कोई पातीl

जबसे बसा प्रदेश जा,कभी शायद ही मेरी याद आती |

 

उसके होंठों पर मुस्कान रहे,बेटियों को ना कभी प्यार  दिया |

डाट सिर्फ बेटियाँ पाई,तुम पर सब कुछ वार दिया  |

 

वर्षों बीत गए ,राह तकते तकतेl 

कब आओगे मेरे लाल,नित  नित नैना बरसे |

 

कागजात वसीयत की, दराज में है रखी हुई |

है थोड़ी नाराजगी….पर आत्मा तुझमें बसी हुई |

 

चिंता ना करना राख का शरीर है, राख में मिल जाएगा |

बस आखिरी उम्मीद थी कि, जरूर तू आ आएगा  l

 

बस इतना रहम करना ,अपनी आंखे झूठी नम मत करनाl

दुनिया वालों के सामने ,झूठा गम मत करना |

 

फिर भी तू जहां रहे, खुशियां तेरे साथ रहे |

मेरे जिगर का टुकड़ा है तू,स्नेह ईश्वर का बना रहे |

 

उम्र के पड़ाव पर,दम तोड़ चली साँझ |

तेरी रुसवाई ने बना दिया ,बच्चों वाली बाँझ |

धन्यवाद पाठकों 

रचना- कृष्णावती कुमारी 

  • अंततोगत्वा बेटे की राह देखते देखते माँ स्वर्ग सिधार जाती है | आज के अधिकतर बच्चे ऐसे हीं हैं |

शिक्षा – बेटा बेटी में कभी अन्तर की भावना नहीं रखना चाहिए l खासकर अपनी बहनों एवं भाइयों से निवेदन हैं कि हम सभी इस नेक काम में आगे आयें और इस समाज से ऐसी मानसिकता को दूर करने में सहायक बने I 

धन्यवाद पाठकों 

रचना- कृष्णावती कुमारी 

नमस्कार, साथियों मैं Krishnawati Kumari इस ब्लॉग की krishnaofficial.co.in की Founder & Writer हूं | मुझे नई चीजों को सीखना  अच्छा लगता है |आप सभी इसी तरह अपना प्यार और सहयोग बनाएं रखें I मैं इसी तरह की आपको रोचक और नई जानकारियां उपलब्ध करवाते रहूंगी |

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