Mai Nari hun | Best कविता
Mai Nari hun – मन के भावों को कहने का, जो सुंदर सरल तरीका है।शब्दों को गूंथ कर कहने से कविता बन जाती है। कविता के माध्यम से हम अपने दुख बतलाया करते हैं। खुशियों को भी बांटने का यह सबसे सरल तरीका है। इस लाँक डाउन में ऐसे ही महिलाओं के उपर अत्यधिक काम का भार है। फिर भी मैं अपनी रूचि को कविता के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हूं।आप सभी का प्यार अपेक्षित है।
कविता
मैं नारी हूँ
सिर्फ नारी नहीं मैं, जगत जननी हूं,
जिसने संसार बसाया ।
वीणा की झंकार से जग में,
ग्यान की ज्योति जलाया।
दुष्टों का संघार किया
दुर्गा के रूप में आकर
भक्तों का उद्धार किया ,
दुर्गा के रूप में आकर
भक्तों का उद्धार किया ,
कन्या का रुप धारण कर।
कहीं जानकी कहीं मै सीता,
कहीं वन देवी बनकर।
कहीं वन देवी बनकर।
लव कुश की माता हूं मैं,
अटल मानस पटल पर।
अटल मानस पटल पर।
धर्म की रक्षा की ख़ातिर,
कई कई रुप धरा मैंने।
कई कई रुप धरा मैंने।
चंडी काली कुष्मांडा
कितने नाम पाया मैंन
कितने नाम पाया मैंन
यग्य कुण्ड में कूद पड़ी,
प्राण त्यागिनी हूं मैं।
जग जाना हमें शक्ति रुप में,
जग जाना हमें शक्ति रुप में,
शिव की स्वामिनी हूं मैं।
बनी राम की सीता मैं,
बनी कृष्ण की राधा।
पाण्वों की बनी पटरान
अपमान सदैव हमें साधा।
बनी कृष्ण की राधा।
पाण्वों की बनी पटरान
अपमान सदैव हमें साधा।
महिलाओं पर कविता
प्रेम दीवानी मीरा हूं मैं,
जीवन भर योगिनी बनके।
राजपूतों की आन बान बनी,
शान रही क्षत्राणी बनके ।
जीवन भर योगिनी बनके।
राजपूतों की आन बान बनी,
शान रही क्षत्राणी बनके ।
लाज हूं किसी के घर के
किसी की गृह लक्ष्मी हूं।
कहीं हूं बेटी कहीं बहू हूं,
किसी की प्रेम समर्पिनी हूं।
कहीं हूं बेटी कहीं बहू हूं,
किसी की प्रेम समर्पिनी हूं।
अबला नहीं सबल हूं मैं,
पास हुई हर इम्तहान में।
अपमानित सदैव हुई हूं,
फिर भी आगे सबके सम्मान में।
पास हुई हर इम्तहान में।
अपमानित सदैव हुई हूं,
फिर भी आगे सबके सम्मान में।
रण भूमि में असि उठाया ,
जब अपने पर आती।
कलम भी चलाती उसी गति से
जब अपने पर आती।
कलम भी चलाती उसी गति से
जैसे असि चलाती।
धन्यवाद पाठकों,
रचना -कृष्णावती कुमारी,