माँ की सोच पर कविता |Poem On Thought of Mother
माँ की सोच पर कविता- मोहन एक प्रतिष्ठित संस्थान में काम करता है I वह एक आला दर्जे का अधिकारी है I समाज में जब बेटा जॉब में आ जाता है तो, विवाह के लिए लड़की वाले विवाह का प्रस्ताव लेकर आने लगते हैं I Poem on Thought of mother ऐसे में माँ की सोच पर एक कविता तो बनती है |
प्रति दिन लड़की वालों का आना जाना लगा रहता है I इसी कड़ी में अब मोहन की बात आती है I मोहन के पिताजी को गुजरे लगभग 12 साल हो गये थे I मोहन उस समय छट्ठी(6) कक्षा में पढ़ रहा था I अब अकेली माँ जिनका नाम सावित्री है, रोज़ मेहमानों को संभालते संभालते थक चुकी थीं I
एक दिन जब लड़की वाले आये तो, लड़की की तस्वीर और ओहदे की जानकारी दी I मोहन की माँ को लड़की पसंद आ गई I लड़की हवाई जहाज चलाती थी I तब क्या, मोहन की माँ को यह रिश्ता बहुत पसंद आई और उन्होंने रिश्ता तय कर दिया l एक दिन जब मोहन का फोन आया, तो माँ ने खुशी खुशी बताया i लल्ला मैंने तुम्हारी रिश्ता पक्की कर दी है I
मंगनी की तिथि भी तय हो गई है I दो दिन पहले ही आ जईयो, हाँ I मंगनी का दिन शुभ मुहूर्त तिथि और दिनाँक निश्चित कर दिया गया I मोहन मन ही मन बहुत खुश हो जाता है I अरे भई, खुश भी क्यों ना हो? बीबी जहाज उड़ाने वाली जो मिल रही है I मोहन माँ के कहने के अनुसार घर दो दिन पहले आ जाता है और मेहमानों के स्वागत की सारी तैयारी करता है I अब मंगनी शुभ मुहूर्त में हो जाती है I
उसके पश्चात मोहन अगले ही दिन अपनी ड्यूटी पर निकल जाता है I विवाह का दिन 6 महिने बाद यानि हिन्दी महिना के अनुसार बैसाख मास में निश्चित कर दिया गया I एक दिन मोहन ड्यूटी से आकर खाना बनाया और कुछ वक्त टहलने के बाद अपने कमरे में सोने चला जाता है I बिस्तर पर लेटे हुए सोचता है कि मैं एक अधिकारी हूं I बीबी भी काम काजी मिल रही है l
माँ की सोच पर कविता
मेरी माँ के पास कौन रहेगा ! गाँव में मेरी बुढ़ी माँ अकेले रहती है ! रात भर मोहन को नीद नहीं आई I पुरी रात करवट बदलते रहा I उसके उलझन का कोई निदान नहीं निकला I बेसब्री से सुबह का इंतजार करने लगा I जैसे ही सूरज निकला, मोहन माँ को फोन लगाया I माँ माँ ये शादी मैं नहीं कर सकता I
माँ बोली, के बोला,, फिर से, बोलियों तो I नाश पीटे! मंगनी हो गई है, जो भी हो, शादी उसी लड़की से होगी I माँ कृपया समझने की कोशिश करो। तुम्हारी उम्र बढ़ती ही जा रही है I तुम्हारी बहु भी ड्यूटी में और मैं भी ड्यूटी में, कैसे काम चलेगा I मोहन की माँ मोहन से कहती है ,अब तेरा कुछ नहीं सुनना मुझे।
मंगनी हो गई है, शादी तो जहाज उड़ाने वाली से ही होगी I तू चिंता ना कर, काम वाली लगा लेंगे I तू जहां रहेगा मैं तेरे साथ रहूंगी I देख लल्ला, ज़माने के साथ जो नहीं चलता है वह बहुत पीछे हो जाता है I मैं और कामवाली मिलके घर का काम कर लेंगे और तुम दोनो भी हाथ बटा देना I सब मिलके काम कर लेंगे I
माँ की बात सुनकर बेटा ग़द गद हो जाता और कहता है तुझ जैसी माँ यानि सास दुनिया की सारी ल़डकियों को मिले I अब मेरा घर, घर से मंदिर हो जाएगा I मोहन बहुत खुश हो जाता है I माँ मैं तो तेरी सोच को समझना चाह रहा था I
आइए निम्नवत मोहन के मन की भाव को चंद पंक्तियों में कविता का रूप दे रही हूँ I उम्मीद है आप सभी को पसंद आएगी I साथियों सभी अनुच्छेद आप तक पहुंचाने के लिए अथक प्रयास के बाद कविता लिखी जाती है I इसीलिए आप सभी से अनुरोध है कि अपने जानने वाले के साथ जरूर शेयर करें।
कविता
माँ की सोच | Poem on Thought of mother
जन्म दात्री हे मैया, पिता मेरे आधार I
फिर भी उन बिन हे मैया, सुन्दर मेरा संसार I
जितनी सुन्दर काया तेरी, उतना सुन्दर मन I
तुझ जैसी मैया हो सबकी, तुझ जैसा तन मन I
कमी कभी होने ना दी तू, पिता का भी प्यार दिया।
मुख मंडल पर हंसी लिए, सब कुछ तूने वार दिया।
सुलाने के लिए अक्सर जागती रहीं।
घंटों लोरियां गा गा कर सुनाती रही ।
कमी कभी नहीं दर्शाया।
छोटी रक़म से भी घर चलाया।
ग़मों के भीड़ में जिसने, हंसना सिखाया वो तुम हो।
जटिल राहों को आसान बनाना सिखाया वो तुम हो ।
तेरी सोच को कोटि कोटि वंदन I
तेरी पग-धूलि, माथे का चंदन I
नव युग का निर्माण कर रही I
तू मॉडर्न सास की, प्रमाण बन रही I
तू मॉर्डन सास की प्रमाण बन रही I
तू मॉर्डन सास का प्रमाण बन रही I
नैतिक शिक्षा- इस कहानी और कविता से यह शिक्षा मिलती है, कि महिलाओं को इस जड़ता भरी बुद्धि से ऊपर उठना चाहिए और सास को सावित्री जैसे सासु माँ बनना चाहिए
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रचना- कृष्णावती कुमारी
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