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Ganesh Chaturthi

Ganesh Chaturthi| गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है

Ganesh Chaturthi-गणेश जी का जन्म भाद्र शुक्ल पक्ष तिथि चतुर्थी को हुआ था |ऐसे तो हिन्दू धर्म में सातों दिनों को किसी न किसी  भगवान से, ग्रहों से संबंध माना जाता है और पूजा अर्चना किया जाता है|इसी तरह बारहों महीने में कोई ना कोई त्यौहार होता ही है |अब आइये निम्नवत जानते हैं कि गणेश चतुर्थी क्यों मनाया जाता है ?

श्री गणेश जी का जन्म हिन्दी मास के अनुसार भाद्र शुक्ल पक्ष तिथि चतुर्थी को हुआ था|इसीलिए प्रति वर्ष यह पवित्र त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है | गणेश जी को बुद्धि ,समृद्धि का देवता माना जाता है|भक्त बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य प्राप्ति की इच्छा से भगवान गणेश की पूजा अर्चना करते हैं | ऐसा माना जाता है कि गणेश जी का जन्म मध्यान काल में हुआ था |इसीलिए पूजा मध्यान काल का ही अति उत्तम माना जाता है |

1.गणेश जी कि कहानी

2. विघ्नहरता 

3. प्रथम पूज्य गणेश 

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार कहानी 

ऐसे तो कई हिन्दू धर्म के मान्यताओं के अनुसार कई कहानियाँ जुड़ी हुई है|परंतु आज हम ऐसी दो कहानियाँ जानेंगे |जिनका विवरण निम्नवत विस्तार से है |

1.गणेश चतुर्थी  से जुड़ी प्रथम कहानी-

एक गाँव में सेठ सेठानी रहते थे |वे बहुत धार्मिक प्रवृति के थे और वे गणेश जी के अनन्य भक्त थे |जरूरत मंदों की सेवा में सदैव तत्पर रहते थे |उनका बहुत बड़ा परिवार था परंतु उनका कोई संतान नहीं था |सारा परिवार उन्हें बहुत प्यार करता था |परंतु आपस में सभी कानाफूसी हमेशा करते रहते थे कि ,सेठानी बांझ है |इस बात से दोनों बहुत दुखी रहते थे|

एक समय की बात है, सेठ सेठानी गणेश जी के मंदिर में पूजा कर रहे थे | पूजा अर्चना के बाद जब वह मंदिर से बाहर आए ,तो देखा कि मंदिर के सिढियों पर एक चार पाँच साल का बच्चा बैठा रो रहा है |सेठ जी ने चारों तरफ देखा कि बच्चे के माता- पिता कहीं आस पास होंगे |परंतु उन्हें कोई नहीं दिखा |

वे उस बच्चे को पुजारी जी के पास ले गए और बोले बाबा यह बच्चा अकेला है |इसके माँ बाप कहीं नहीं दीख रहे हैं | शाम हुई तो पुजारी जी बोले: सेठ जी आप इस बच्चे को घर ले जाइए |यदि कोई इस बच्चे को धूढ़ता हुआ आएगा, तो मैं उसे आपके घर भेज दूंगा |

सेठ- सेठानी खुशी-खुशी उस बालक को अपने घर ले आए |जब कई महीनों तक उस बच्चे को कोई लेने नहीं आया तो, सेठ सेठानी ने उस बच्चे को गोद लेने का मन बना लिया और गाँव के सरपंचों की सलाह से गोद ले लिया | उस बच्चे का नाम गणेशा  रख दिया |

ऐसे ही कई वर्ष बीत गए |एक दिन एक ठग पति -पत्नी उस गाँव में आए और गणेश जी की मंदिर की सिढियों पर जा बैठे |अब यहाँ दोनों उस गाँव के सबसे अमीर आदमी कोठगने की योजना बनाने लगे |तभी पुजारी जी उन्हें सिढियों पर बैठे देख पूछा : क्यों भैया यहाँ किस प्रयोजन से बैठे हो ? उन दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया |

तब पुजारी जी ने कहा: क्या आपका बच्चा खो गया है ? दोनों ठग पति-पत्नी एक स्वर में बोले : हाँ हाँ मेरा बच्चा खो गया है| बताओं कितने समय की बात है ? वे दोनों अनजाने में बोले -यहीं कोई चार- पाँच साल की बात है |पुजारी जी बोले उदास मत हो |यही इसी गाँव में एक सेठ के घर में बच्चा है|यहीं ठाट- बाट से पल रहा है |

पुजारी जी उन दोनों को सेठ के घर ले गए | जब सेठ-सेठानी को पता चला की गनेशा के असली माता- पिता आ गए हैं ,तो दोनों बहुत दुखी हो गए |फुट- फूट कर रोने लगे |किसी तरह अपने को संभालते हुवे सेठ जी बोले: ठीक है,अभी तो बहुत रात हो गई है |कल सुबह होते ही गनेशा को लेकर चले जाना |

ठग पति- पत्नी तो यहीं चाहते थे |सेठ ने उन दोनों को अतिथि गृह में ठहरा दिया |अब दोनों चोरी की योजना बनाने  लगे|गनेशा से इधर सेठ- सेठानी को जुदा होने का गम सता रहा था| जिसके कारण उन्हें नीद नहीं आ रही थी |इधर ठग सभी कमरों की तलासी लेने लगे |तलाशी लेते-लेते तिजोरी वाले कमरे में पहुँच गए |

आवाज सुनकर घर के नौकर की नीद खुल गई |तब नौकर देखा की दोनों अतिथि तिजोरी वाले कमरे में कुच्छ ढूंढ रहे हैं |नौकर ने नीयत भाफ लिया और बाहर से कमरे का दरवाजा बंद कर दिया |फिर क्या ज़ोर ज़ोर से चीलाने लगा: चोर-चोर , घर के सभी सदस्य इक्कठा हो गए |सेठ जी ने दरवाजा खोला तो देखा ,और बोला ये दोनों तो चोर हैं |

हम इन्हें गनेशा नहीं देंगे | ठगों को अपनी योजना विफल होती दिखी तो, दोनों अपनी जिद पर अड़ गए |कहने लगे: गनेशा मेरा बेटा है |सेठ जी बोले तुम दोनों चोर हो हम तुम्हें गनेशा नहीं देंगे |अब बात सरपंच तक पहुँच गई |वहाँ सरपंचजी ने एक शर्त रखी |दोनों पक्ष को सभा में आमने सामने खड़ा किया |अब दोनों माओं को आदेश दिया |

आप दोनों सूर्य देव के सामने खड़ी हों जाए और बोले : शर्त यह है कि जिसके स्तन से गनेशा के मूह में दूध की धार जाएगी बच्चा उसी का माना जाएगा |तब श्री ‘गणेश जी’ की कृपा से सेठानी के स्तन से गणेशा के मूह में दूध की धार जाने लगी|इस तरह गणेश जी की कृपा से गणेशा सेठानी को वापस हुआ |

2.गणेश चतुर्थी की दूसरी कहानी-

कहते हैं कि जब पार्वती जी  एक दिन स्नान करने जाने से पहले अपने शरीर के मैल से गणेश जी को  बनाया ,उस समय कोई वहाँ आए ना , इस बावत गणेश जी को खड़ा रह कर देखने के लिए आदेश दिया था |ताकि उस वक़्त वहाँ कोई आए नहीं | गणेश जी माता की आज्ञा का पालन करते हुए निगरानी में खड़े हो गए |

कुछ समय बाद वहाँ शिवजी आए |तब उन्हें गणेशजी अंदर जाने से माना करने लगे क्योंकि वह अपने पिता शिवजी से अंजान थे |तभी गुसे में आकार शिव जी ने गणेशजी का शिर काट दिया |जब पार्वती जी स्नान कर के निकली तो गणेश जी को शिर कटा हुआ, धड़ जमीन पर पड़ा हुआ देखकर रुदन करने लगी|मुझे गणेश चाहिए |

किसने मेरे गणेश की ऐसी हालत की? पार्वती जी क्रोधित होकर ‘महाकाली’ को उत्पन्न करके प्रतिशोध का आदेश दिया, कि जाओ संसार में जीवन का कोई अंश दिखाई ना पड़े |जैसा मेरा पुत्र आहत पड़ा है वैसे ही संसार में हर प्राणी को आहात कर दो |जाओ महा प्रलय कर दो |

महाकाली जी ने  चारों तरफ त्राहि मांम मचा दी|सभी देवता गण शिवजी की  आराधना  किए |तत्पश्चात शिव जी उनके समस्या का निवारण किए| विष्णु भगवान से उन्होने कहा हे! हरी उतर दिशा में जाएँ और जो भी प्राणी दिखे उसका मस्तक लाएँ |विष्णु जी गए और उन्हें उत्तर दिशा में एरावत हाथी दिखा |जिसका मस्तक मांग कर लाये और गणेश जी के धड़ से लगा दिया गया|इस तरह गणेशजी को जीवन दान मिला |

मुख्यतः गणेश जी कि उत्पति शिव पर्वतीजी ने देवताओं के कहने पर राक्षसों का नाश करने के लिए किया था |ऐसी भी मान्यता है |

विघ्नहर्ता भी कहते हैं –

शृष्टि के प्रारम्भ में जब यह प्रश्न उठा कि देवताओं में प्रथम पूज्य किसे माना जाय तो ,शिवजी ने कहा: पृथ्वी कि सम्पूर्ण परिक्रमा जो सर्व प्रथम कर लेगा |वहीं प्रथम पूजनीय देव  माना जाएगा |तब सभी देवगन अपनी अपनी सवारी लेकर पृथ्वी के परिक्रमा के लिए निकल पड़े | लेकिन गणेश जी के पास तो मूषक की सवारी थी और शरीर भरी था  |भला वो गणेश जी कैसे पृथ्वी की परिक्रमा करते |तब उन्होंने अपनी बूद्धि और चतुराई लगाई |

अपने माता पार्वती और पिता भगवान शिव की तीन बार परिक्रमा की और उनके आगे हाथ जोड़ कर खड़े हो गए |यह देखकर शिव जी ने कहा :हे !गणेश आपसे बुद्धिमान इस तीनों लोकों में कोई नहीं है क्योंकि माता पिता की परिक्रमा कर आपने तो तीनों लोक को जीत लिया |इसीलिए आज से सर्व प्रथम आपकी हिन पूजा होगी आप ही  प्रथम पूज्य हुवे | अतः जो मनुष्य किसी भी कार्य को करने से पहले आपकी आराधना करेगा तो उसके जीवन में कोई भी संकट और कठिनाई नहीं आएगी |तभी से गणेश जी के बाद ही सभी देवताओं की पूजा होती है |

FAQ

ह भी पढे:

1.भादों हरितलिका व्रत कथा

2. हिन्दू मंदिरों के अजीबोन गरीब रीति रिवाज

3.किसके श्राप से औरतों को मासिक धरम में कष्ट होता है

 

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