कोणार्क मंदिर का संक्षिप्त इतिहास
सबसे पहले हम जानेंगे कोणार्क का मतलब:-
कोणार्क मन्दिर का संक्षिप्त इतिहास- कोणार्क दो शब्दों से बना है—-कोणार्क का अर्थ है कोण और अर्क का अर्थ होता है सुर्य, कोण और अर्क मिलकर बना कोणार्क।यहाँ देश विदेश से प्रति वर्ष प्रयटक कोणार्क मंदिर की कलाकृतियों को देखने आते है |
समुद्र के किनारे कहीं जुवा वर्ग बालू के द्वारा बनाई गई कलाकृतियों से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं तो कहीं छोटे छोटे बच्चे अपनी नन्ही-नन्ही उँगलियों से लुभावनी बालू पर चित्र बनाकर सभी पर्यटकों का मन मोह लेते हैं |सभी के मुह से एक बार वाउ कीआवाज आवाज जरूर निकलती है |क्या बात क्या खूब बनाया है | उन कलाकृतियों की लोग बड़े ही शौक से तस्वीर खींचते है और अपने साथ यादगार के रूप में ले जाते हैं |
कोणार्क मंदिर ओडिशा के तट पर पुरी से लगभग ३०कि मी की दूरी पर स्थित है। गंगा राजवंश के महान शासक राजा नरसिम्हा देव प्रथम ने इस मंदिर का निर्माण १२४३-१२५५ई के दौरान १२०० कारीगरों की मदद से करवाया था। चूंकि गंग वंश के शासक सुर्य के उपासक थे।
माना जाता है कि भगवान कृष्ण के पुत्र साम्बा श्राप से कोढ़ी हो गये थे। उन्होंने उसके बाद १२ वर्ष तक भगवान सुर्य कीअराधना तपस्या किया। तत्पश्चात वह कोढ़ से मुक्त हो गये और उन्होंने इस मंदिर को साक्षात भगवान सुर्य को साम्मानित करने के लिए बनवाया।
मंदिर की दीवारों पर कामुक आंकड़े नक्काशी दार है।यह ओडिशा के वास्तु कला का एक उत्कृष्क नमूना है। यहां प्रति वर्ष कोणार्क महोत्सव में संगीत नृत्य का आयोजन होता है। इस मंदिर को यूनेस्को ने सन् १९८४ में विश्व धरोहर की मान्यता दी। इस मंदिर को ब्लैक पैगोडा नाम से भी जाना जाता है।
यहां विदेशी पर्यटकों की भारी संख्या में आवागमन होती रहती है। यहां कलाकारों द्वारा समुद्र के किनारे बालू से बनाया गया आर्ट पर्यटकों का मन मोह लेता है।इसी कड़ी में मैने ओड़िशा की प्रख्याति को चंद पंक्तियो में कविता का रुप दिया है, आप सभी का प्यार अपेक्षित है।
अब कोणार्क मंदिर पर कविता –
कविता
कला में उतकृष्ट राज्य है ओड़िशा
प्रकृति का है बसेरा।
यही आके अशोक ने
डाला अपना डेरा ।
जगन्नाथ की नगरी पूरी
रतनाकर चरण पखारे ।
डुबती नैया पार लगायें
सबके पालन हारे।
ऐसा प्रेम कही ना देखा
बहन बगल में भाई हैं।
पूजा अर्चना करे नर नारी
गाथा, सारी दुनिया में छाई है।
कहीं राम संग सीता बिराजे
कहीं कृष्ण संग राधे है।
पुरी में बलभद्र के संग में
सुभद्रा बहन बिराजे हैं।
ऐसी कला कहीं ना देखी
देखत जिया लुभाये l
क्या बात है लव से निकले
क्या बालू से भी इतना
सुंदर बन जाए ?
जय जगन्नाथ
संग्रहिता-कृष्णावती कुमारी
यहां संक्रांति के समय सुर्य की पूजा अर्चना का बड़ा महत्व है।
* सुर्य देवता रोगनाशक और इच्छाओं को पूरा करने के लिए सर्व श्रेष्ठ माने जाते हैं।
कोणार्क मंदिर पहुंचने का रास्ता—