शिव ने मोहिनी से एक पुत्र क्यों पैदा किया था?
Shiv ne mohini se ek putr paida kyon kiya tha – जैसा कि आप सभी जानते है कि आदि शक्ति ने माँ चंडिका रूप में राक्षस महिषासुर का बद्ध किया था। महिषासुर की पत्नी महिषि ने अपने पति के मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए ब्रह्माजी की घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया।
तत्पश्चात ब्रह्माजी से अमर होने का वरदान मांगा। परन्तु ब्रह्माजी ने अमरता का वरदान देने से मना कर दिया। ब्रह्माजी ने कहा कोई और वरदान मांग लो।
तब उसने यह वरदान मांगा कि हे ब्रह्माजी मेरी मृत्यु शिव और भगवान विष्णु से उत्पन्न पुत्र से ही हो। आप सभी जानते हैं कि दोनों ही पुरुष थे तो उनका संतान होना नामुमकिन था।
अब भगवान ने संतान उत्पन्न करने के लिए क्या लीला रची आइए निम्नवत जानते है —
एक बार नारद मुनी भ्रभण करते हुए कैलाश पर्वत पर पहुंच गये। भगवान शिव और पार्वती जी के सामने भगवान विष्णु के मोहिनी रुप का नारद जी ने खूब प्रसंशा की।
अब भगवान शिव और पार्वती जी को विष्णु जी की मोहिनी रूप को देखने की प्रबल इच्छा जगी। इसके परिणामस्वरूप सभी बैंकुण्ठ की ओर चल पड़े। भगवान शिव ने विष्णु जी से विनती किया कि प्रभु अपने मोहिनी रुप का दर्शन करायें।
भगवान विष्णु ने अपने मोहिनी रुप का दर्शन कराया। मोहिनी की सुन्दरता को देख भगवान शिव कामदेव के शिकार हो गये और उनमें काम भाव जागृत हो गया।
महिषि ने एक अनोखा वर प्राप्त किया था जिसे संभव बनाने के लिए विष्णु जी ने मोहिनी रूप धर पुत्र उत्पन्न किया। जिस पुत्र का नाम धर्माश्त था।
Shiv ne mohini se ek putr paida kyon kiya tha
आइए जानते है महिषि का बद्ध किस प्रकार हुआ
केरला के पंडलम स्थान पर एक बड़े धनवान राजा राजशेखर राज किया करते थे। परन्तु उन्हेें कोई संतान नहीं थी। जिसके कारण अत्यंत दुःखी रहते थे।
एक दिन उन्होंने अपनी पत्नी से कहा – हमारे बाद हमारा राज पाठ कौन सम्भालेगा? पत्नी ने अति श्रद्धा से कहा चलिए आज ही से हम दोनों भगवान शिव की आराधना करते हैं।
भोले शंकर हमें जरुर संतान सुख देंगे। तभी से दोनों पति पत्नी शिव की आराधना करने लगे एक दिन इन दोनों की तपस्या देखकर राज्य का दिवान मन ही मन बहुत खुश रहता था कि, राजा तो निःसंतान है।इनके मरने के बाद इनका सारा राज पाठ मेरा हो जाएगा।
दोस्तों राजा राजशेखर के राज्य से कई योजन दूर पर महिषासुर की पत्नी महिषि जो कि परमपिता सेअपने पति महिषासुर का प्रतिशोध लेने के लिए एक अनोखा वर प्राप्त कर चुकी थी।
इधर जब मोहिनी को भगवान शिव से पुत्र प्राप्त हुआ था तो मोहिनी ने शिवजी से प्रश्न किया था कि इस पुत्र का पालन पोषण कौन करेगा? तब भगवान शिव ने यह कहा था कि इसका पालन पोषण पृथ्वी लोक के राजा राजशेखर करेंगे जो कि मेरे परम भक्त है और निःसंतान हैं।
एक दिन जब राजा राज शेखर पंडलम के जंगलों में शिकार खेलने आए उसी समय मोहिनी ने धर्माश्त के गले में सोने की घंटी बाधकर पंडलम के जंगलों में छोड़ दिया। राजा शिकार ढुढते ढुढते आगे बढ़ रहे थे, तभी उन्हें बालक के रोने की आवाज़ सुनाई दी।
तब राजा उसके पास गये और सोचने लगे इस बालक के माता पिता कौन हैं कहां हैं? मैं इस बच्चे का क्या करु। तभी मोहिनी अवतार विष्णु जी ब्राह्मण का भेष धर प्रकट हो गए।
राजा से बोले इस बालक को अपने घर ले जाइए। जब यह बालक १२ वर्ष का हो जाएगा तब आपको पता चल जायेगा कि यह कौन है? राजा ने पूछा इस बालक का नाम क्या है? ब्राहमन बोले इस बालक के गले में सोने की घंटी है इसलिए इसे मणिकंदन के नाम से पुकारे।
राजा बालक को महल लेकर आए। रानी बहुत खुश हुई और खुशी खुशी बच्चे का पालन पोषण करने लगी। राजा रानी अब प्रसन्न रहने लगे। १२वर्ष पूरे होने की प्रतीक्षा करने लगे।इधर मणिकंदन के आने से दीवान परेशान था ।
जिस वर्ष मणिकंदन १२ वर्ष का होने वाला था उसी बीच रानी को एक पुत्र जन्म लिया। मौका देख दीवान रानी के पास गया और रानी से कहा अब कुछ ही दिन में मणिकंदन राज्य का युवराज बन जाएगा और आपका संतान कभी राजा नहीं बन पायेगा।
रानी झुझलाकर बोलीं तो इसमें मैं क्या कर सकती? दीवान बोला -मेरे पास एक उपाय है। भयानक सिर दर्द का बहाना बनायें महारानी। रानी ने ऐसा ही किया। इधर दिवान राज वैद्य से मिलकर औषधि के रुप में इलाज स्वरुप बाघिन का दूध बताने को कहा।
महल में राजा की आग्या से राज वैद्य आये।सिर दर्द का औषधि बाघिन का दूध बताये। राजा ने सैनिकों को बाघिन का दूध लाने हेतु जंगल भेजा। परन्तु सैनिक खाली हाथ लौट आये।
माता पिता को परेशान देख मणिकंदन बोले पिताजी मुझे आग्या दें।मैं लेकर बाघिन का दूध आउंगा। बार बार आग्रह के बाद राजा ने आग्या दे दी। मणिकंदन अकेले ही बाघिन के दूध के लिए जंगल की ओर निकल पड़े।
जंगल में काफी अंदर चलते चलते मणिकंदन राक्षसी महिषि के निवास स्थान पर पहुंच गये। महिषि के अनुचरों ने मणिकंदन को देख महिषि को सुचना दी। खबर पाते ही युद्ध हेतु महिषि आ पहुंची।
मणिकंदन और महिषि में घोर युद्ध हुआ। महिषि मणिकंदन के हाथों मारी गई। जैसे ही महिषि मारी गई सभी देवगण वहां उपस्थित हो गये। तब देवराज इन्द्र ने कहा मै बाघिन का रूप धारण कर अपने पिठ पर बैठाकर ले चलूंगा।
सभी देवता गण बाघ का रूप धर कर चल दिए। जब नगरवासी बाघ पर सवार मणिकंदन के साथ बाघों का झुंड आते देखे तो डर कर भागने लगे। तभी एक नगरवासी राजा को यह सुचना दिया कि मणिकंदन बाघिनों के झूंड के साथ आ रहे हैं।
राजा महल से बाहर निकले और सोचने लगे की आज मणिकंदन १२वर्ष का हो गया है। आज इसके वास्तविकता का पता चलेगा। तभी राजा के सामने एक दिव्य ज्वाला प्रकट हुई। उसमें से आवाज आई।
मणिकंदन कोई साधारण बालक नहीं
वह भगवान शिव और विष्णु जी की एक लीला है। तभी मणिकंदन बाघिन पर सवार राजा के समीप आ खड़े हो गये । राजा मणिकंदन के चरणों में गिरकर बोले कृपाकर इन बाघिनों को यहां से हटा दें। नगरवासी इन्हें देख भयभीत है।
राजा की यह बात सुनते ही सभी बाघिन रुपी देवता गायब हो गये। इधर राजा ने जब मणिकंदन दूध हेतु जंगल गये थे, तभी राजा ने दीवान और रानी के बीच की बातें सुन ली थी।
मणिकंदन से क्षमा मांगते हुए राजा ने रानी और दिवान को सजा देने की बात कहीं।मणिकंदन ने कहा इन्हें क्षमा कर दीजिए क्योंकि आज इन्हीं के कारण महिषि राक्षसी का बद्ध कर पाया। अब मैं और पृथ्वी लोक में वास नहीं कर सकता।
राजा ने हाथ जोड़कर विनती किया कि हे प्रभु मेरी एक अंतिम इच्छा है अपने राज्य में आपका मंदिर बनवाना चाहता हूँ । तब मणिकंदन ने कहा, मैं आप की इच्छा से प्रसन्न हूं।
मणिकंदन ने एक तीर मारा और बोला ध्यान से देखें यह तीर जहां गीरेगी मंदिर निर्माण वही करायें। तीर सवरीमल पहाड़ के सबसे उच्चे शिखर पर पर जा गीरा।
राजा लम्बी चढा़ई के बाद उस तीर तक पहुंचकर सोचने लगे। मंदिर का निर्माण कैसे हो। यह विचार कर राजा ने विश्वकर्मा जी का स्मरण किया और विश्वकर्मा के द्वारा मंदिर का निर्माण हुआ। मणिकंदन के कथनानुसार गर्भ गृह तक पहुंचने के लिए १८ सिढ़ियों का निर्माण हुआ।
ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक सीढि़यां अट्ठारहों शास्त्रों को समर्पित है। पहली पांच सीढि़यां मनुष्य के पांच इन्द्रियों को समर्पित है —
•देखना • सुनना•सुंघना•स्वाद • स्पर्श ।
यह शरीर के नश्वर प्रकृति को दरशाता है। अगली आठों सीढ़ियां मानवीय भावों को दरशाती है–
•काम •क्रोध •मोह •लोभ •गौरव •प्रतिस्पर्धा•ईर्ष्या • दंभ।
तीनों सीढ़ियां मानवीय गुणों का और अंतिम दो सीढ़ियां ग्यान और अग्यनता का प्रतीक माना जाता है। यह मंदिर १८ पहाड़ियों के बीच स्थित है।
सवरीमल जिन १८पहाडि़यों से घिरा है, उनके नाम -•पौत्रम्बलमेडु •गौडेनमल •नागमल•सुन्दरमल •चितम्बलमल •कल्गिमल •माथंगमल •मेयिलाडुम्मल •श्रीपद्ममल •देवरमल•नीलक्कलमल •थालप्परमल •नीलिमल •करिमल •पुडस्सेरीमल •कलाकेट्टीमल •इंछिपारमल• तथा सबरीमल।
मंदिर का कार्य संपन्न होने के बाद राजा चिन्तित होकर अपने महल में लौटे कि कैसे भगवान मणिकंदन की मूर्ति की स्थापना की जाय। इधर राजा को परेशान देख भगवान विष्णु ने परशुराम जी से कहा कि आप मुर्तिकार के भेष में जायें और मुर्ति स्थापित करने में राजा की मदद करें।
परशुराम जी मूर्तिकार के भेष में राजा राजशेखर के महल में पहुंचे और बोले कि मैं आपकी समस्या का समाधान कर सकता हूँ। राजा ने कहा -ठीक है तो पहले अपनी मुर्ति दिखाओं।
मूर्तिकार अपनी जब मुर्ति दिखाई तो राजा आश्चर्यचकित रह गये। राजा ने मुर्तिकार से पूछा सच बताओ तुम कौन हो? तब राजा की शंका को दूर करते हुए परशुराम जी अपने वास्तविक रुप में प्रकट हो गये।
भगवान परशुराम जी ने कहा हे राजन मैंने तो पहले से ही भगवान अइयप्पा (मणिकंदन)के मूर्ति का निर्माण कर रखा है। आज मकरसंक्रांति का शुभ दिन है। हमें आज ही के दिन मुर्ति को मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित करना चाहिए।
तभी से भगवान अइयप्पा के मंदिर में श्रद्धालु दर्शन करने आने लगे। इधर दीवान भयंकर बिमारी से ग्रसित हो गया। काफी इलाज के बाद भी ठीक नहीं हुआ। तब एक रात भगवान अइयप्पा सपने में आये।
उससे यह बोले सवरीमल पर्वत पर आये। परन्तु आने से पहले पम्पानदी में स्नान करके मंदिर में प्रवेश करना।दिवान ऐसा ही किया। पम्पानदी में स्नान करते ही दिवान स्वस्थ हो गया। दिवान भगवान अइयप्पा के मंदिर में नत मस्तक हो गया।
दोस्तों यहां प्रति वर्ष करोडो़ श्रद्धालु आते हैं जिसमें महिलाये कम आती है। १०साल से कम उम्र की लड़कियां और पचास साल से अधिक उम्र की महिलाओं का प्रवेश होना निर्धारित है। कारण यह है कि भगवान अइयप्पा ब्रह्मचारी थे। एक बार बोलिए भगवान अइयप्पा की जय।
धन्यवाद दोस्तों
संग्रहिता-कृष्णावती
Note -yah jankari internet paper aur patrika se sangrah ki gai hai.
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