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Kyon Koi Kaam Chhota Bada Nahin Hota

जाने क्यों कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता|Know why no work is small or big

Kyon Koi Kaam Chhota Bada Nahin Hota- किसी ने सच ही कहा  है कि, कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता |इस वाक्य को एक भगवान का महान भक्त ने सिद्ध किया है |आइये निमन्वत ज्ञात करें कि उन्होंने इस वाक्य को कैसे सिद्ध किया है  :-

एक बार भगवान अपने एक भक्त से प्रसन्न होकर भक्त के घर अचानक उपस्थित हो गए |इनका यह क्त बहुत गरीब और दयालु था | वह पेशे से चर्मकार था |जब भी भक्त किसी साधू संत को नंगे पाँव जाते देखता ,उनके लिए अपने द्वारा बनाई गई चप्पलें या जूतियाँ उन्हें श्रद्धा पूर्वक अपने हाथों से पहना देता था और उनसे उसका कोई मोल नहीं लेता  था |

इतना ही नहीं जब कभी कोई भिखारी या असहाय व्यक्ति दिखता था तो वह उनके घर अपने घर जो कुछ भी होता ले जाकर दान दे आता था |उसके इस  स्वभाव से घर हमेशा खाली रहता था |जिसके कारण उस भक्त के माँ बाप तंग आकार शादी करके अलग कर दिये | ताकि वह अपनी ज़िम्मेदारी खुद उठाएगा तो अपने दान करने वाली आदत में खुद से सुधार हो जाएगी और अपनी गृहस्थी को खुद समझेगा |

लेकिन माँ बाप के शादी करने के बाद भी बेटा नहीं सुधरा | दान और सहयोग करने वाली आदत बरकरार रही |जरूरतमंदों की सेवा करता रहा | उसकी पत्नी भी अपने पति के साथ सहयोग करने में सहयोग करती रही | इस तरह की  सेवा देख एक दिन भगवान अपने भक्त के घर एक साधु के भेष में  पधारे | साधु को अपने दरवाजे देखकर भक्त अति प्रसन्न हुआ और अपने सामर्थ के अनुसार साधु की खूब सेवा किया |

भक्त रविदास की भगवान ने कैसे मदद की?

साधु बाबा प्रसन्न होकर ढेरों आशीर्वाद दिये और जाते समय एक पारस पत्थर निकाल कर देते हुवे बोले रखलों बच्चा इसे | इसकी सहायता से तुम्हें अथाह धन संपाति प्राप्त हो जाएगी | तुम्हारे सभी दुख दूर हो जाएंगे | यह सुनकर  उस भक्त ने क्या बोला: तब तो ,आप इस पत्थर को नाही दें |

यह मेरे किसी काम का नहीं है |ऐसे भी मुझे कोई कष्ट नहीं है |जूतियाँ और चप्पलें बनाकर मिलने वाले धन से मेरा काम चल जाता है | मेरे पास राम नाम का धन है जिसे न खोने का डर है नहीं किसी के चुराने का डर है |यह सुनकर साधु भेष धारी भगवान उल्टे पाँव लौट गए|

इस प्रकार भगवान ने अपने इस भक्त की सहायता करने की कई तरह से कोशीश किए |परंतु यह भक्त अपने कर्म में विश्वास रखता था |किसी भी तरह की मदद स्वीकार नहीं करता था |तब असफल होने के बाद भगवान ने सोचा कि क्यों न एक दिन भक्त के सपने में जाकर मुलाक़ात किया जाय और इस तरह भगवान एक दिन भक्त के सपने में आते है |

सपने में भक्त से भगवान ने कहा ; मेरे प्रिय भक्त मुझे पता है कि तुम  लोभी नहीं हो |तुम  अपने कर्म में विश्वास करते हो | लेकिन जब तुम अपना कर्म करते हो  तो मुझे भी अपना कर्म करने दो मेरे प्रिय भक्त |इसीलिए जो कुछ भी मैं दूँ उसे सहर्ष स्वीकार करो | भक्त ने भगवान की बात मान ली |उनके द्वारा दिये गए भेट स्वीकार किया और उनके आज्ञानुसार एक मंदिर बनवाया और उसमें एक भगवान की मूर्ति की स्थापना कर पूजा याचना करने लगा |

संत रवि दास का संक्षिप्त जीवन परिचय –

एक चर्मकार द्वारा भगवान की पूजा किया जाना पंडितों को बरदास्त नही हुआ | उन्होंने राजा से जाकर इसकी शिकायत की | यह सुनकर राजा ने भक्त को बुलाया और पूछा: की आप ऐसा क्यों कार रहे हैं ?: भक्त ने बड़े ही सहजता से जवाब दिया – मुझे तो भगवान ने स्वयं ऐसा करने को  कहा|

ऐसे भी भगवान के नज़र में सभी बराबर होते हैं | कोई छोटा बड़ा नहीं | तब राजा ने कहा : क्या तुम इसे साबित कार सकते हो ? उन्होने कहा जी  बिलकुल  साबित कार सकता हूँ |मेरे  मंदिर में राखी मूर्ति जिस किसी के पास आ जाए,वही सही अर्थों में उनकी पूजा करने का अधिकारी होगा |

राजा तैयार हो गए | सर्वप्रथम यह अवसर पंडितों को प्राप्त हुआ |परंतु मूर्ति टस से मस नहीं हुई | अब जब भक्त की बारी आई तो उसने एक पद पढ़ा,-“देवधिदेव आयो तुम शरणा ,कृपा कीजिये जान अपना जना|”| इस पद के पूरा होते ही मूर्ति भक्त के गोद में आ गई |यह देखकर सभी आश्चर्य चकित रह गए | राजा और रानी  ने उस भक्त को अपना तुरंत गुरु बना लिए | जानते हैं वह भक्त कौन हैं ? वह महान भक्त हैसंत रविदास जी |

 

जन्म (Birth) 1377, 1388,1520,1398 ईस्वी ( मतभेद )
जन्म स्थान (Birth place) सिर गोवरधनपुर ,वाराणसी ,यू. पी
॰पिता का नाम (Fathers name) संतोख दास
माँ का नाम (Mothers name) कलसा देवी
दादा जी का नाम (Grand Fathers name) कालू राम
दादी का नाम लखपति देवी
पत्नी का नाम (Name of the wife) लोना देवी
पुत्र का नाम (Name of the son) विजय दास
मृत्यु (Death) 1520,1540 ईस्वी(मतभेद)
मृत्यु स्थान (Deathplace) वाराणसी

इनकी महिमा की बात करें तो इनकी महिमा सुनकर इनसे मिलने आए थे-

संत पीपाजी,गुरुनानाकदेव जी ,कबीर साहिब जी और मीरा बाई जी  |यहाँ तक की दिल्ली का शासक सिकंदर लोदी भी मिलने गए थे |संत रविदास द्वारा रचित पदों में से 39 को “श्री गुरुग्रंथ साहिब “में भी शामिल किया गया है |लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन सबके बाद भी सारी उम्र चमड़े का जूता चप्पल बनाते रहें क्योंकि वे किसी भी काम को छोटा बड़ा नहीं मानते थे |इसीलिए तो आज हम सभी इन्हें महान संत रविदास जी के नाम से जानते हैं | आइए जवन राम करिहें निम्नवत इस लोक भजन का आनंद उठाया जाए।

 

नोट – जिस काम से परिवार का भरण पोषण हो वह काम कभी छोटा  नहीं होता|

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