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Rakshabandhan ka Itihas kya hai

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Rakshabandhan ka Itihas kya hai| रक्षा बंधन का इतिहास क्या है  

Rakshabandhan ka Itihas kya hai- हिन्दू धर्म में रक्षाबंधन बड़ा ही पवित्र त्यौहार माना जाता है | श्रावण मास के पुर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है |ऐसे तो रक्षा बंधन का उल्लेख ‘पुराणों ‘ में भी मिलता है |आइये रक्षा बंधन का इतिहास क्या है, निम्नवत  जानते हैं |

यदि हम इतिहास की ओर नज़र डालें तो यह त्यौहार  6 हज़ार सालों से मनाया जाता आ रहा है |  देवी- देवताओं से लेकर राजा महाराजा तक सभी ने इस त्यौहार को मनाया है | असल में भाई बहन के अलावा इस परंपरा को उन बहनों ने खूब निभाया जो खुद सगी बहन नही थीं |साधारण सा धागा जब भाई के कलाई पर बहन बाधती है, तब भाई सदैव बहन की रक्षा करने के लिए अपने प्राण को न्योछावर करने को तत्पर रहता है | वही यह भी माना जाता है कि,बहन के तरफ से भाई के कलाई में बांधा गया धागा भाई के लिए सुरक्षा कवच होता है | आइये अब हम एक एक करके उन सभी भाई- बहनों पर प्रकाश डालेंगे जो सगे भाई -बहन नहीं थे | उद्दाहरणार्थ-

  • कृष्ण एवं द्रौपदी
  • इंद्राणी एवं इन्द्र
  • यम एवं यमुना 
  • श्री गणेश एवं संतोषी माँ
  • राजा बलि एवं लक्ष्मी 
  • रानी कर्णावती एवं हुमायूं 
  • निजाम रानी एवं मोहम्मद 

कृष्ण एवं द्रौपदी

जब कृष्ण भगवान ने शिशुपाल को मारा था, तब  युद्ध करते समय कृष्ण भगवान को उनके बाए हाथ की उंगली से खूँन बहने लगा था |यह देखकर द्रौपदी अत्यंत दुखी हुई क्योंकि वह उनकी सखी थीं | उसी समय द्रौपदी अपने साड़ी के पलू से कुछ अंश फाड़ कर कृष्ण के उँगलियों में बाँध दिया| जिससे खून बहना बंद हो गया | ऐसा माना जाता है कि तभी से कृष्ण दौपदी को अपनी बहन मान लिए |भाई अपनी बहन के हर मुश्किल घड़ी में साथ निभाने के लिए सदैव तैयार रहता है |जिसका प्रमाण कृष्ण ने जब महाभारत काल में  पांडव द्रौपदी को जुवे में हार गए थे |तब चीरहरण के समय द्रौपदी के पुकार पर कृष्ण ने चीर को बढ़ाकर उनकी लाज बचाई थी |

इंद्राणी एवं इन्द्र –

भविष्य पुराण के अनुसार राक्षसों और देवताओं में 12 वर्षों तक युद्ध हुआ था |परंतु देवता युद्ध में विजयी नही हुवे |राक्षसों से पराजित हो गए थे |तत्पश्चात इन्द्र दुखी होकर गुरु ववृहस्पति के पास गए |वृहस्पति के सलाह पर शचि ने श्रावण मास के पुर्णिमा तिथि के दिन व्रत रखकर विधि विधान से रक्षा सूत्र तैयार कर स्वस्तिवाचन के साथ ब्राह्मण के उपस्थिति में इंद्राणी ने वह रक्षा सूत्र इन्द्र की दाहिनी कलाई पर बाँधा|परिणाम स्वरूप राक्षसों पर देवताओं का विजय हुआ |इसी मंत्र से रक्षा विधान का विधि पूरण हुआ था| जिस मंत्रोचारण के साथ आज भी रक्षा बंधन सूत्र बहन अपने भाई के कलाई पर बाँधती हैं |

मंत्रयेन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रों माहाबल:|तेन त्वा अभि बद्धनामिरक्षे मा चल मा चल ||

अर्थात-दानवों के महा बलि राजा जिसे बांधे गए थे ,उसी से तुम्हें बाधता हूँ |हे! रक्षा सूत्र आप चलाय मान न हों ,चलाय मान न हों |

यम एवं यमुना-

पौराणिक कथाओं के अनुसार  बड़ा ही रोचक कहानी यम और यमुना नदी की है | एक बार यमुनाजी ने यम की कलाई पर धागा बांधा था |वह उन्हें अपने भाई के प्रति अपने प्रेम का इजहार करना चाहती थी |यमुना के यम की कलाई पर राखी बांधने से यम अति प्रसन्न हुवे |प्रसन्नता इस कदर हुई की सुरक्षा के साथ साथ उन्होंने यमुनाजी को अमरता का भी  वरदान दे डाला | इतना ही नहीं उन्होंने यह वरदान दे डाला कि जो भाई अपनी बहन कि मदद करेगा ,उसे मैं लंबी आयु का वरदान देता हूँ |

श्री गणेश एवं संतोषी माँ –

पौराणिक ग्रन्थों में इस कथा के लिए कोई स्पस्ट उल्लेख नहीं है | परंतु मान्यताओं के आधार पर कहा जाता है कि, जब गणेश जी कि बुवा उनके कलाई पर धागा बांध रही थी |तब उनके दोनों बेटों ने गणेश जी से उस रस्म  का रहस्य पूछा – इस पर भगवान गणेश ने कहा :वत्स यह सिर्फ धागा ही नहीं है |यह सुरक्षा कवच है |यह देखकर गणेश जी के दोनों बेटे शुभ और लाभ के   मन में बहन की इच्छा जगी और गणेश जी से बहन की मांग कर डाले |तब गणेश जी ने  यज्ञ वेदी से अपनी विशेष शक्तियों से एक ज्योति उत्पन्न किया  और अपनी दोनों पत्नियों के साथ सम्मिलित कर लिया |तत्पश्चात उस ज्योति से एक कन्या का जन्म हुआ|जिनका नाम संतोषी पड़ा|यह रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास के पुर्णिमा को प्रात:काल सम्पन्न किया गया था तभी से यह पर्व अस्तित्व में आया और श्रावण मास के पुर्णिमा को मनाया न\जाने लगा |

राजा बलि एवं लक्ष्मी –

पुराणों में भी रक्षाबंधन त्यौहार का उल्लेख मिलता है |जैसे -स्कन्ध पुराण ,पद्मपुराण और श्रीमद भगवद गीता में वामनावतार नामक कथा में रक्षा बंधन का प्रसंग मिलता है | राजा बलि को अपने दानवीरता पर  बहुत घमंड हो गया था |तब विष्णु भगवान ने उनके घमंड को चूर करने के लिए बौना यानि वामन अवतार ब्राह्मण के भेष में राजा  बलि से भिक्षा मांगने पहुँच गए |राजा ने कहा मांगिए क्या माँगना चाहते हैं ? मुझे आप भिक्षा में मात्र तीन पग भूमि दे दीजिये | बलि राजा बोले बस इतना ही |भगवान ने कहा: हाँ |अब भगवान ने अपने तीन पग में धरती, आसमान और पाताल तीनों नाप लिया और बलि को रसातल में भेज दिया|परंतु अपने भक्ति के बल पर राजा बलि ने भगवान को दिन- रात अपने सामने रहने का वचन ले लिया|अब नारदजी भला कैसे शांत रह सकते| तब नारदजी ने लक्ष्मी जी को एक उपाय बताया |वह उपाय था की आप राजा बलि को श्रावण मास के पुर्णिमा के दिन राखी बांधे|लक्ष्मी जी ने राजा बलि को राखी बांधा और अपने पति विष्णु जी को अपने साथ ले आईं |तभी से रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाता है |

रानी कर्णावती एवं हुमायू-

इतिहास की बात करें तो जब मध्यकालीन युग में मुशलिमों और राजपूतों के बीच संघर्ष चल रहा था | तब चित्तौड़ के राजा की ‘विधवा रानी ‘को ऐसा महसूस हुआ कि राजा के  बिना मेरा राज्य और प्रजा असुरक्षित है |तब उन्होने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा के लिए  हुमायू को राखी भेजी थी |तब हुमायूं ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया और सिद्दत से निभाया |

निजाम रानी एवं मोहम्मद –

गिन्नौरगढ़ के निज़ाम शाह गोंड के रिश्तेदार आलम शाह ने उन्हें एक साजिश के तहत जहर देकर मर डाला था |अब निज़ाम रानी बहुत ही दुखी और प्रतिशोध की आग मे जलने लगीं |अपने पति की मौत का बदला  लेने और अपनी सियासत को बचाने के लिए  सरदार दोस्त मोहम्म्द खान को राखी भेजकर मदद मांगी |मोहम्मद खान ने रानी की रक्षा की |इस बावत रानी ने अपनी कृतज्ञता वयक्त करते हुवे भेट स्वरूप 50 हज़ार की राशि और 2हजार की जनसंख्या वाला गाँव दिया | इस तरह रक्षा बंधन का महत्व सगी बहन भाई हो या मुहबोली ,भाई और बहन का यह पवित्र रिश्ता मनाया जाता रहा हैं |

नोट-आज के समय में ही नहीं सदियों से रक्षा बंधन का त्यौहार  मनाया जाता आ रहा है |जिसका प्रमाण उपरोक्त क्रमानुसार वर्णन किया गया है |चाहें वह रक्षा पत्नी द्वारा पति के कलाई पर बांधी गई हो या बहन के द्वारा भाई के कलाई पर बांधी  गई हो |रक्षा का मतलब ही है रक्षा करना |एक रक्षासूत्र का महत्व भगवान से लेकर साधारण मनुष्य के जीवन में बड़ा ही महत्वपूर्ण रहा है |

                                            कविता

 चहुं ओर छाई हरियाली,बहना के मुख पर है लाली

सावन आया राखी लाया भाई बहन की प्रीत निराली |

 

रेशमी धागा स्नेह में डुबल, अंग अंग हर्षित है |

भैया के कलाई बांध रोम-रोम  पुलकित है |

 

बदले में उपहार दे भैया फूले नहीं समाये ,

बहना पर हे प्रभु कभी कोई संकट न आए |

 

राखी का त्यौहार मनाते होती घर घर पूजा  ,

जग में  ऐसे रिश्ते मानो और कोई ना दूजा |

                                                         रचना- कृष्णावाती कुमारी

50 साल बाद यह महायोग-

50साल बाद यह महायोग बन रहा है जब पूरे दिन भद्रा नक्षत्र नहीं रहेगा |सूर्योदय के बाद बहनें कभी भी अपने भाई को राखी बांध  सकती हैं |परंतु राखी बांधने से पहले यह कम जरूर करें |सबसे पहले राखी और मिष्ठान भगवान को यानि गणेशजी को चढ़ाएँ , उसके बाद आप के जो भी आराध्य देव हैं उन्हें राखी चढ़ाएँ और भोग लगाएँ |उसके बाद बहन अपने भाई को राखी बांधे|इस तरह करने से भाई का घर धन धन धान्य से भरा रहता है |भाई बहन का प्यार अटूट होता है |  धन्यवाद,

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नोट -सभी जानकारियाँ मौखिक अपने बड़े बुजुर्गो द्वारा सुनी हुई पत्रिका और  ,इंटरनेट  से संग्रह की गई है|

संग्रहिता- कृष्णावाती कुमारी

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