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Biography of Guru Shankarachary

Biography of  Guru Shankarachary|आदि शंकराचार्य कौन थे

Biography of  Guru Shankarachary-  जिनके वाणी और लेखन में साक्षात विराजमान थीं माँ सरस्वती, वह थे श्री जगत गुरु शंकराचार्य जी | आदि गुरु शंकरचार्य जी आठवीं सदी के भारतीय हिन्दू दार्शनिक और धर्म  शास्त्री थे |जिनकी शिक्षाओं का हिन्दू धर्म के विकास  पर गहरा प्रभाव पड़ा था | इसके अलावा उन्हें श्रीआदि शंकराचार्य और भगवत पद आचार्य अर्थात भगवान के चरणों में  गुरु के रूप में जाना जाता है |

शंकराचार्य जी धार्मिक सुधारक थे | जिन्होंने हिन्दू धर्म के अनुष्ठान उन्मुख विदद्यालयों  की आलोचना की थी |आदि गुरुजी ने धार्मिक अनुष्ठानों के वैदिक धार्मिक अभ्यासों को शुरु किया था |आदि शंकरचार्य जी को उनके हिन्दू ग्रन्थों की उल्लेखनीय पुनः निर्मित और वैदिक सिद्धान्त अर्थात ब्रहमसूत्र,प्रधानाचार्य उपनिसाद  और भगवद गीता पर उनकी टिप्पणियों के लिए उन्हें सबसे ज्यादा याद किया जाता है |

वे अद्वैत वैदांत विद्यालय  में एक निपुण प्रवक्ता थे, जो इस मान्यता को संदर्भित करता है कि सच्चे आत्म आत्मा उच्चतम हकीकत ब्रहम के समान है |दर्शन शस्त्र पर उनकी शिक्षा ने हिन्दू धर्म कि विभिन्न संप्रदाइयों को काफी प्रभावित किया है और आधुनिक भारतीय विचारों के विकास में योगदान दिया है |

शंकराचार्य जी का जन्म दक्षिण भारत के एक गरीब परिवार में हुआ था |बहुत कम उम्र से ही शिक्षा और धर्म की ओर उनका झुकाव हो गया था |उन्होंने अपने गुरु से सभी पदों और छः वेदांगों में महारथ हासिल की| उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान को फैलाने के लिए व्यापक रूप से यात्रा किया | अद्वैत वेदांतों के सिद्धांतो को चारों ओर फैलाया| मरने के बाद भी उन्हों ने हिन्दू धर्म के विकास पर एक अमिट छाप छोड़ा है |

इनके माता पिता के विवाह के कई वर्षों के बाद भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई तो,तब दोनों यानि संकराचार्य जी के माता पिता संतान प्राप्ति की कामना से चन्द्र्मौली भगवान शंकर की कठोर आराधना की|कठोर आराधना से एक दिन भगवान शंकर जी प्रसन्न होकर दर्शन दिये और वर मांगने के लिए कहा: इस प्रकार शिव गुरु ने एक ज्ञानी और दीर्घायु पुत्र की प्राप्ति की वर स्वरूप मांग की |

शंकर जी ने कहा:दीर्घायु पुत्र सर्वज्ञ नहीं होगा और सर्वज्ञ पुत्र दीर्घायु नहीं होगा |तब शिव गुरु ने सर्वज्ञ पुत्र की याचना की|इस प्रकार औघड़ दानी भगवान शिव ने कहा:वत्स तुम्हे सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति होगी |मैं स्वयं तुम्हारे यहाँ पुत्र के रूप में जन्म लूँगा|ऐसे तो उनके जन्म के विषय में कई मत भेद है |परंतु अब आइये उनके जन्म के विषय में निमन्वत जानते हैं –

शंकरचार्य जी का जन्म-

जन्म स्थान केरल के एक छोटे से, कलादी नमक गाँव में
जन्म समय अनुमानतः 788 ई
पिता नाम श्री शिवागुरु
शिक्षा 2वर्ष में वेद ,पुराण ,उपनिषद ,रामायण, महाभारत कंठस्थ
गुरु /शिक्षक आचार्य गोविंद भगवदत्पाद
दर्शन अद्वैत वेदान्त
जीवन काल 32 वर्ष
  मृत्यु 820 ई
मृत्यु स्थान केदारनाथ ,पाल साम्राज्य वर्तमान में उतराखंड ,भारत
सन्यास धर्म आयु 7वर्ष की उम्र में

 

एक बार की बात है, आदि गुरु संकराचार्य जी के पास, एक गरीब ब्राहामणी उनके हाथ पर एक आवला रखीं और रोते हुवे अपनी विपन्नता का वर्णन किया |उस  समय उनकी उम्र सिर्फ लगभग 7साल की थी |रोते विलखते ब्राह्मणी को देखकर उस बालक का हृदय द्रवित हो गया |

तत्पश्चात आदि गुरु बालक अवस्था में ही आर्त (करुण )स्वर में माँ लक्ष्मी का स्त्रोत की रचना कर उस परम करुणामयी लक्ष्मी जी को प्रसन्न कर निर्धन ब्राह्मणी के घर में सोने के आंवलों की वारिष कर दीं|इस तरह एक गरीब ब्राह्मण परिवार को निर्धनता से मुक्त कराये |

आदि गुरु संकराचार्य जी के चारों मठों के नाम-

  1. वेदान्त मठ – वेदान्त मठ आदि गुरुजी का पहला मठ था |जिसकी स्थापना श्रंगेरी रामेश्वर में किया गया |
  2. गोवर्धन मठ -गोवर्धन मठ आदि गुरु शंकरचार्य जी का दूसरा मठ है  जो जगन्ननाथपुरी में है जो कि वर्तमान में ओड़ीशा प्रांत में है |
  3. शारदा मठ – शारदा मठ को कालिका मठ भी कहा जाता है,जो कि तीसरा मठ था |द्वारिका मठ जो कि पशिम भारत में स्थापित किया गया |
  4. ज्योतिरपीठ मठ – जिसे वद्रिकाश्रम भी कहा जाता है |यह चौथा मठ है ,जो कि उतार भारत में स्थापित है |

मुख्य ग्रंथ-  हिन्दी, संस्कृत  जैसी भाषा में 10 से अधिक उपनिषदों ,अनेक शास्त्रों ,गीता पर संस्करण और अनेक उपदेशों को ,लिखित और मौखिक रूप में लोगों तक पहुंचाया |

 जगतगुरु के अनमोल वचन –      

  • अपना शुद्ध मन, सबसे उत्तम तीर्थ स्थल
  • जिस तरह जलते हुवे  दीपक को दूसरे दीपक की आवश्यकता नहीं होती है ,उसी तरह ज्ञान स्वरूप आत्मा को किसी के ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है |
  • यह मोह से भरा हुआ संसार एक स्वप्न की तरह है और यह तब तक होता है जब तक व्यक्ति अज्ञान रूपी निद्रा में सो रहा होता है |
  • 68 तीरथ घट ही के भीतर,अपना मन ही तीर्थ है|यह ईश्वर द्वारा विशेष रुप से शुद्ध किया गया है |

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