Karn Ke Mrityu Ke Baad Parshuram Kyon Aaye The|कर्ण के मृत्यु के बाद परशुराम क्यों आए थे,दानवीर कर्ण ,महाभारत के कर्ण से जुड़ी रोचक बातें, धनुर्धर कर्ण ,
Karn Ke Mrityu Ke Baad Parshuram Kyon Aaye The – आपको बता दें, कि दान वीर कर्ण के बिना महाभारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी |
साथ हीं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता, कि कौरवों के सेनापति कर्ण अपने प्रतिद्वंदी अर्जुन से भी बड़े धनुर्धर थे |जिसकी तारीफ स्वयं भगवान कृष्ण ने की थी | कर्ण ना कि एक शाक्ति शाली योद्धा थे | बल्कि बहुत बड़े दानवीर भी थे |बिना युद्ध का परिणाम सोचे अपने कवच कुंडल तक दान में दे चुके थे |
कर्ण का कुसंगति:
लेकिन कहते हैं, कि कुसंगति का असर घातक होता है, और यह कर्ण कि दुर्योधन से मित्रता का हीं परिणाम था |जिसके कारण उन्होंने कई गलतियाँ की |जिसने कर्ण को महाभारत की युद्ध में कमजोर बनाया | बल्कि अंत में ये कर्ण की मृत्यु का कारण भी बना |आज मैं आपको इस पोस्ट में बताऊँगी की भगवान परशुराम ने क्यों कर्ण को श्राप दिया था |
वो श्राप जो कर्ण के लिए प्राण घातक सिद्ध हुआ||साथ हीं जब कर्ण के अंतिम समय में भगवान परशुराम कर्ण से मिलने पहुंचे ,तो उन्होंने उस समय कर्ण से क्या कहा – इस रहस्य को जानने के लिए पूरे पोस्ट को पढें|आप सभी को पता हीं है, कि कुंती पुत्र कर्ण का पालन पोषण एक रथ चालक के घर हुआ था |जिसके कारण उन्हें शूद्र पुत्र भी कहा जाता है |
उनकी वीरता को देखते हुवे दुर्योधन ने उन्हें अंगदेश का राज सिहासन दिया और जरासंध के हारने के बाद कर्ण को चम्पा नगरी का राजा भी बनाया | वैसे दानवीर कर्ण जैसे महान योद्धा का जीवन किसी तपस्या से कम नहीं था| कर्ण को कई ऐसे कर्मों का परिणाम भी भोगना पड़ा |
जिसमें उनकी कोई गलती नहीं थी |लेकिन फिर भी अनजाने में किए हुवे कर्म और दूसरों कि भलाई के कारण वश उन्हें 3 श्राप मिले, जो प्राण घातक हुए और उन्हें महाभारत के निर्णायक युद्ध में अर्जुन के हाथों वीर गति प्राप्त हुई |
मित्रों आपको बतादें कि कर्ण को जो 3तीन श्राप मिले थे,उनमें से 2दो श्राप दो ब्राह्मणों ने दिये थे |यह दोनों श्राप उन्हें अनजाने में वाण चलाने से मिले थे |इसके अलावा 3तीसरा श्राप उन्हें भगवान परशुराम ने दिये थे |
भगवान परशुराम ने कर्ण को श्राप क्यों दिया था ?
कर्ण को परशुराम ने श्राप क्यों दिया इसका उत्तर महाभारत की हीं एक कथा में मिलता है |कर्ण जब धनुर्विद्या सीखने के लिए गुरु द्रोणाचार्य के पास पहुंचे ,तो उन्होंने कर्ण के शूद्र पुत्र होने कि वजह से उन्हें शिक्षा देने से माना कर दिया |
कर्ण इससे निराश होकर भगवान परशुराम के पास पहुंचे |परशुराम जी ने कर्ण की प्रतिभा को देखकर कर्ण को अपना शिष्य बना लिए |एक दिन अभ्यास के समय जब परशुराम जी थक गए थे, तो उन्होंने कर्ण से कहा :कि मैं थोड़ा आराम करना चाहता हूँ|
तब कर्ण ने परशुराम जी के सिर को अपने जंघे पर रखा और परशुराम जी आराम करने लगे |थोड़े समय बाद एक बीछू आया |जिसने कर्ण के जंघा पर डंक मरने लगा |तब कर्ण ने सोचा कि यदि मैं अपना जंघा हटाऊंगा तो गुरुदेव की नीद टूट जाएगी|
इसीलिए कर्ण ने हिला तक नहीं और उसने बीछू को डंक मारने दिया |जिससे कर्ण के जंघे से काफी खून बहने लगा और कर्ण को भयंकर कष्ट होने लगा |जब रक्त धीरे धीरे परशुराम के शरीर तक पहुंचा |यह भी पढ़ें:महाभारत की 11रहस्यमयी नारियां
तब भगवान परशुराम की नीद खुल गई |परशुराम जी उठ गए और यह देखकर भगवान परशुराम क्रोधित हो गए और कहने लगे, कि इतनी सहन शीलता क्षत्रिय में हीं हो सकती है |तत्पश्चात वे क्रोधित होकर बोले: तुमने मुझसे झूठ बोलकर ज्ञान प्राप्त किया है |
इसीलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि जब भी तुम्हें मेरी दी हुई विद्या की जरूरत होगी |उस समय तुम्हें वो काम नहीं आएगी |दर असल भगवान परशुराम क्षत्रियों को ज्ञान नहीं देते थे | वे कर्ण को ब्राम्हण पुत्र जानकार ही ज्ञान दिया था |
ऐसे में क्रोधित होकर उन्होंने कर्ण को श्राप दिया और अंत में महाभारत के युद्ध के दौरान जब कर्ण और अर्जुन के बीच युद्ध चल रहा था| तब भगवान परशुराम की दी हुई विद्या को कर्ण भूल गए |
दानवीर कर के मृत्यु के बाद परशुराम का आना |Karn Ke Mrityu Ke Baad Parshuram Kyon Aaye The
महाभारत की रण भूमि में जब कर्ण अपने आखिरी समय में थे |तब भगवान परशुराम उनके पास आए और कहने लगे, कि इसी दिन के लिए तो मैंने कर्ण तुम्हें श्राप दिया था |हे! पुत्र इस युद्ध में विजय होने से तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा |यदि वासुदेव कृष्ण के होते हुवे तुम विजयी हो भी गए |
तब भी कंगाल हो जाओगे |इसीलिए हे!दानवीर कर्ण विजय पर सिर्फ पांडवों का ही अधिकार है और तुम लेने के लिए प्रसिद्ध नहीं हो |तुम तो देने के लिए प्रसिद्ध हो |अपने भाग्य से संधि कर लो |अभिमन्यु की हत्या में भाग लेकर तुम दुर्योधन के ऋण से मुक्त हो चुके हो |सबकुछ जानकार अंजान ना बनो |
हे! पुत्र मेरे आशीर्वाद की छाया में आओ और याद रखो मृत्यु लोक हो चाहें स्वर्ग लोक जब भी वीरों महावीरों की सभा में तुम्हारा नाम लिया जाएगा, तो सभी वीर खड़े होकर तुम्हारे नाम की जय जयकार करेंगे |यह थी भगवान परशुराम के द्वारा कर्ण को मिलने की श्राप की कथा |उम्मीद है आप सभी को पसंद आएगी |
धन्यवाद
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