Srikrishn Ne Iravan Se Vivah Kyon Kiya|श्रीकृष्ण ने इरावण से विवाह क्यों किया
Srikrishn Ne Iravan Se Vivah Kyon Kiya – साथियों अर्जुन और नाग कन्या उलुपी के मिलन से, अर्जुन को एक वीरवान पुत्र प्राप्त हुआ। जिसका नाम ईरावन रखा गया था| अब इस पोस्ट में हम जानेगें किSrikrishn Ne Iravan Se Vivah Kyon Kiya भीष्म पर्व के नब्बे अध्याय में संजय धृतराष्ट्र को ईरावन का परिचय देते हुए बताते है कि, ईरावन नाग राज कौरव्य कन्या उलूपी और अर्जुन के मिलन से पुत्र रूप मेे प्राप्त हुआ था।
नाग राज की पुत्री उलूपी संतानहीन थी। उसके मनोनीत पति को गरूण ने मार डाला था। जिससे वह अत्यंत दीन और दयनीय हो गई थी। ऐरावत वंशी कौरव्य नाग ने अपनी बेटी उलूपी को अर्जुन को सौप दिया। तदुपरांत अर्जुन ने उस कन्या को भार्या रूप में आदर पूर्वक ग्रहण किया जी ईरावनl
इस प्रकार ईरावन पुत्र पैदा हुआ । ईरावन सदैव अपनी मातृ कूल में रहा और वहीं उसका पालन पोषण हुआl जहां वह बड़ा हुआ I ईरावन भी अपने पिता अर्जुन के समान बलवान, सत्यनिष्ठावान, रूपवान और बुद्धिमान था I
साथियों अब हम जानते हैं कि,भगवान श्रीकृष्ण ने ईरावत से विवाह क्यों किया? एक मान्यता के अनुसार युद्ध में ईरावत ने अपनी पिता की जीत के लिए अपनी बलि दी थी I परंतु मरने से पहले उसकी दिली इच्छा थी कि उसकी शादी हो I
लेकिन यह जानकर कोई भी लड़की विवाह के लिए तैयार नहीं हुई। I इस स्थिति को देख भगवान श्रीकृष्ण ने मोहिनी का रूप लिया और ईरावत से विवाह किया I इतना ही नहीं ईरावत के मरणोपरांत एक पत्नी की तरह पति के मरने पर बिदा करते समय विलाप भी किया l पूरी सिद्दत से पत्नी धर्म निभायाI
Srikrishn Ne Iravan Se Vivah Kyon Kiya
महाभारत के भीष्म पर्व के तिरासीवें (83) अध्याय के अनुसार महाभारत युद्ध के सातवें दिन अर्जुन और उलूपी के पुत्र ईरावन का अवंति के राजकुमार बिंद और अरविंद के साथ भयंकर युद्ध हुआ I
इस युद्ध में दोनों भाइयों के साथ अकेले युद्ध करते हुए अर्जुन पुत्र ईरावन अपने पराक्रम से दोनों भाइयों को परास्त कर दिया था और फिर कौरव सेना का संहार करना आरंभ कर दिया l
भीष्म पर्व के 91वें अध्याय के अनुसार आठवें (8वें ) दिन जब सुबल पुत्र शकुनी और कृत वर्मा ने पांडवों की सेना पर आक्रमण किया तब अनेक सुन्दर घोड़े और भारी सेना से चारों तरफ से घिरे हुए, शत्रुओं को संताप देने वाले हर्षित होकर इरावन ने रणभूमि में कौरवों की सेना पर आक्रमण कर प्रति उतर दिया I
इस युद्ध में कौरवों की घुड़ सवार सेना पूरी तरह से नष्ट हो गई थी I इतना ही नहीं वह शकुनी के 6 पुुत्रों का बद्ध कर दिया था I य़ह देख कर दुर्योधन भयभीत होकर भगा हुआ, राक्षस ऋषि शृंग के पुत्र अलम्बुस के पास गया। जो पूर्व काल में किए गए बकासुर बद्ध के कारण भीमसेन का शत्रु बन बैठा था I
ऐसे में अलम्बुस ने इरावन से युद्ध किया। दोनो मे घोर मायाबी युद्ध हुआ और अंत मे अलम्बुस ने इरावन का बद्ध कर दिया। इरावन को युद्ध क्षेत्र मे मारा गया देख, भीमसेन का पुत्र घटोत्कच बड़े जोर जोर से सिंहनाद करने लगा।
उसने भीषण रूप धारण कर प्रज्वलित त्रिशूल लेकर भाँति भाँति के अस्त्र शस्त्र के साथ कौरवो सेना का संहार करने लगा। उसने दुर्योधन और द्रोणाचार्य से भीषण युद्ध किया। भीमसेन और घटोत्कच ने भीषण युद्ध करते हुए धृतराष्ट्र के नौ9 पुत्रो का उसी दिन बद्ध कर इरावन के मृत्यु का प्रतिशोध लिया।
Srikrishn Ne Iravan Se Vivah Kyon Kiya|किन्नर केवल एक रात की शादी किससे करते हैं
साथियों अब बात करते हैं कि कौन हैं ईरावन ? वर्तमान के कुछ क्षेत्रों में किन्नरों द्वारा ईरावन की पूजा की जाती है I साल में एक दिन ऐसा आता है जब किन्नर रंग बिरंगी साड़ियां पहन कर और अपने जुड़े को चमेली के फूल से सजाकर भगवान ईरावन से विवाह करती हैं I
हालांकि य़ह विवाह मात्र एक दिन का होता है I अगले दिन उनके मौत के साथ ही य़ह वैवाहिक जीवन ख़तम हो जाता है I मान्यता है कि इसी दिन महाभारत युद्ध में ईरावन की मृत्यु हो गई थी I
इसके याद में हजारों किन्नर कुुंआगमे गाँव में एकत्रित होते हैं और जहाँ वे अपनी ज़िंदगी के सबसे महत्वपूर्ण दिन वार्षिक शादी समारोह में शामिल हो शिरकत करते है I पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने औरत का रूप धारण कर नाग राजकुमार ईरावन से शादी की थी I
Kallakurichi (कलाकुरूची) जिले के कुंआगम गाँव मे इरावन की पूजा आज भी कुथान्दवार मंदिर (Koothandavar Temple ) में होती है। हजारों किन्नर दुल्हन के रूप में सज सवंरकर शादी समारोह मे शामिल होती हैं और मंदिर के पुजारी से अपने गले में कलावा बधवाती है I
मान्यता के अनुसार, महाभारत युद्ध में एक समय ऐसा भी आता है कि पांडवों को जीत के लिए मां काली के चरणों में स्वैच्छिक रूप से किसी पुरूष की बलि हेतु एक राजकुमार की जरूरत पड़ती है I इसके लिए कोई भी राज कुमार आगे नहीं आया I
तब ईरावन इसके लिए खुद को प्रस्तुत कर दिए l परंतु उनका एक शर्त था कि वह अविवाहित नहीं मरना चाहते थे I इस शर्त के कारण य़ह संकट उत्पन्न हो जाता है आखिर कौन राजा अपनी बेटी से शादी करेगा?
कोई नहीं चाहेगा की हमारी बेटी विवाह के दूसरे ही दिन अपने पति को खो दे l अतः कोई राजा अपनी बेटी से विवाह के लिए तैयार नहीं हुआ I तब श्री कृष्ण जी मोहिनी रूप में ईरावन से विवाह करते हैं I
उसके बाद ईरावन अपने हाथों से सिर को काटकर माँ काली के चरणों में अर्पित कर देते है I तब मोहिनी अपने पति के मृत्यु पर काफी देर तक विलाप करतीं है। इस प्रकार भगवान ने पत्नी रूप निभाया।
भगवान श्रीकृष्ण पुरूष होते हुए भी स्त्री रूप धारण कर व्याह रचाये, चुकि किन्नर समुदाय भी स्त्री रूप मे पुरूष माने जाते है। इसलिए वह ईरावन से एक रात की शादी रचाते हैं। इन्हें अपना आराध्य मानते हैं I
साथियों य़ह कहानी बुजुर्गों द्वारा मौखिक श्रवण के माध्यम से आप तक प्रस्तुत किया गया है I परंतु वर्तमान समय में प्रमाण के रूप में kunwagamगाँव जो तमिलनाडु के kalakuruchi जिले के अंतर्गत आता है, वहाँ आज भी ईरावन का भव्य मंदिर है।
लेकिन महाभारत में ईरावन का जिक्र किसी और ढंग से है I साथियों तमिलनाडु के कुंआगम(Koovagam) गाँव मे ईरावन का भव्य मंदिर है। जहां आज भी किन्नर अपने आराध्य की पूजा अर्चना करते हैं I
साथियों आप सभी से ढेरों आर्शिवाद और उत्साहवर्धन की अपेक्षा रखती हूँ क्योंकि सभी जानकारियां कठिन परिश्रम के बाद एकत्रित कर प्रस्तुत किया जाता है |
धन्यवाद ! संगृहीता – कृष्णावती कुमारी
FAQ
Q-कृष्ण ने इरावन से विवाह क्यों किया ?
ANS- इरावन ने मरते समय कहा कि मैं अविवाहित नहीं मरना चाहता हूँ ।तब प्रश्न सामने यह खड़ा हुआ कि इस समय में इरावन से कौन लड़की शादी करेगी। कौन बाप अपनी बेटी को मरने वाले व्यक्ति से शादी करेगा ? तब उस समय ऐसा कहा जाता है, कि श्रीकृष्ण ने मोहिनी का रूप धारण किया और इरावन से शादी कर ली।
Q- महाभारत में अर्जुन ने कितनी शादियाँ कि थी ?
ANS-महाभारत में ऐसा उल्लेख मिलता है कि अर्जुन की चार पत्नियां थी - द्रौपदी, उलुपी, चित्रागंदा और सुभद्रा| चारों पत्नियों में से अर्जुन अपनी दो पत्नियों के साथ रहे थे,जिनमें दो नाम द्रौपदी और सुभद्रा का आता है|
Q-महाभारत युद्ध के बाद विधवाओं का क्या हुआ ?
ANS- महाभारत युद्ध के बड़ा विधवाओं का परलोक गमन हुआ | कहा जाता है कि
महर्षि वेद व्यास जी के कहने पर सभी विधवा स्त्रियां जो अपने पति के साथ उनके लोक जाना चाहती है, वे गंगा के इस पवित्र जल में अपना प्राण त्याग कर अपने पति के लोक चली जायें| महर्षि व्यास कि बात सुनते हीं सभी विधवा स्त्रियाँ गंगा डुब कर अपने प्राण को त्याग दिया और सभी अपने अपने पति के लोक चली गई।
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