- Advertisement -
HomeMythologyKaun Thin Draupadi- द्रौपदी के पाँच अद्भुत रहस्य क्या थे

Kaun Thin Draupadi- द्रौपदी के पाँच अद्भुत रहस्य क्या थे

Kaun Thin Draupadi|महाभारत में द्रौपदी कौन थी,द्रौपदी को क्यों मिले पाँच पति,द्रौपदी के चीर हरण का परिणाम,द्रौपदी के चरित्र की विशेषताएँ, द्रौपदी के अन्य नाम,द्रौपदी के अद्भुत रहस्य 

Kaun Thin Draupadi- द्रौपदी पांचाल राज्य के राजा द्रुपद की पुत्री  थीं। द्रौपदी का जन्म यज्ञकुंड से हुआ था।राजा द्रुपद ने एक बार यज्ञ किया था, द्रौपदी उसी यज्ञ कुंड से उत्त्पन हुई थी।उन्हें इंद्राणी का अवतार भी माना जाता है।

स्पेन के महान दार्शनिक जॉर्ज सेंटाइना ने कहा था -“Those who can not remember the Hitory are condemn to repite it.”जो लोग अपना इतिहास याद नहीं रखते, वे लोग उसी इतिहास को दुहराने के लिए अभिशप्त(शापित ) रहते हैं|Draupadi Kaun thi?

आज मैं इतिहास का वो पन्ना खोलूँगी,जो आपको व्यथित करेगा, विचलित करेगा और हो सकता है कि लज्जित भी करे |मैं हमेशा प्रयास करती हूँ कि मेरे भारत का स्वर्णिम अतित मेरी कलम से होकर आप तक पहुंचे |

लेकिन  जो स्वर्णिम नहीं है, जहां अहंकार और अत्याचार की कालिमा है,वह भी हमारा हीं है |हमलोग उसे अनदेखा तो, नहीं कर सकते |आज मैं आप सभी को ले जाऊँगी 5 हज़ार साल पहले |

द्वापर युग के हस्तीनपुर में, जहां एक जुवा घर में कुरुवंश की पुत्र-वधू पांडवों की पत्नी, राजा ध्रुपद की बेटी,और भगवान श्रीकृष्ण की सखी देवी द्रौपदी का वस्त्र हरण हुआ था |

 महाभारत में द्रौपदी का वर्णन कब मिलता है |Kaun Thin Draupadi

महाभारत में हमें पहली बार द्रौपदी का वर्णन उस समय मिलता है, जहां अर्जुन ने मछली की आँख में तीर भेद कर स्वयंबर जीत लिया था |उसके बाद द्रौपदी ने अर्जुन को पति के रूप में स्वीकार किया|लेकिन द्रौपदी के जन्म की कथा बहुत अद्भुत है |

गुरु द्रोणाचार्य के एक घनिष्ठ मित्र हुआ करते थे,पांचाल के राजा ध्रुपद |समय का फेर देखिये…मित्रता ने एक ऐसा मोड़ लिया, कि द्रोणाचार्य के हाथों द्रुपद को घोर अपमान सहना पड़ा |अपने अपमान का बदला लेने के लिए राजा द्रुपद ने ठान लिया |

वो ऐसे संतान को जन्म देंगे जो धरती के महानतम धनुर्धारी गुरु द्रोण का अंत कर सके | राजा द्रुपद ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्र कमेष्ठि यज्ञ करवाया |यह यज्ञ कई दिनों तक चलता रहा |जब यह यज्ञ अपने अंतिम चरण में पहुंचा,तो एक अद्भुत घटना घटी|

अग्नि में पूर्णाहुति डालते हीं अग्नि से एक नहीं दो संताने प्रकट हुईं |एक पुत्र और एक पुत्री |इतिहास पुत्र को धृष्टदुम्न के नाम से जनता है और पुत्री को द्रौपदी के नाम से जानता है |

 धृष्टदुम्न वही महान योद्धा है, जो महाभारत के युद्ध में पांडवों का सेनपति बना था |18 दिनों तक युद्ध चला |जहां कौरवों के सेनापति, द्रोण ,कर्ण,शैल,और दुर्योधन एक के बाद एक रन भूमि में मरते रहे |वहीं धृष्टदुम्न एक अंतिम समय तक औक्षणी सेना का नेतृत्व करते रहा |

ऐसे पराक्रमी पुरुष की बहन थीं द्रौपदी और पत्नी किसकी जो गाँडीव (धनुष ) उठाए, तो पताल भेद दे वो अर्जुन, वो भीम,जो गद्दा लहराये तो काल भी घुटने टेक दे |लेकिन हुआ क्या…. उस दिन भरी सभा में एक वस्त्र में लिपटी हुई द्रौपदी को बालों से खींचकर लाया गया और सभी देखते रह गए |

जो हुआ,उसे सहना तो छोड़िए कहना कठिन है |लेकिन फिर भी मैं साहस करके लिख रहीं हूँ क्योंकि मैं भी एक नारी हूँ ,किसी की बेटी हूँ, पत्नी हूँ ,  माँ हूँ ,बहन ,खून खौल रहा है…..|लेकिन लेखनी को चलने दूँगी |रोकुंगी नहीं |

आगे जो हुआ, क्योंकि मैं भी मौन रहूँगी तो उस अधर्म की भागी बनूँगी,जो भीष्म पितामह को अंतिम क्षणों में सरसैया के तीरों से भी अधिक पीड़ा देता रहा |

क्या हुआ था उस दिन द्रौपदी के साथ |Kaun Thin Draupadi

उस दिन युधिष्ठिर जुवे में अपना राजपाठ, अपनी संपति, चारों भाई और अपने आपको भी हार गए |आपको बता दें कि खेल यहीं रुक जाता तो ठीक था |लेकिन कर्ण के मुख से वो शब्द निकाल पड़े ,जिन्होंने हमेशा-हमेशा के लिए भारत वर्ष कि स्मिता को लज्जित कर दिया |

कर्ण बोला -अभी वो मृगनैनी,वो अहंकारी द्रौपदी बाकी है युधिष्ठिर |उसे दांव पर लगाओ |नीतिवान विदुर से ये घृणित विचार सहन नहीं हुआ |तड़पकर बोले- महाराज धृतराष्ट्र आपके पुत्र वधू का नाम इस सभा में इतने आनदार से लिया गया,आप कुछ कहते क्यों नहीं ? धृतराष्ट्र ने कुछ नहीं बोला |

लेकिन उनका मौन कह गया,कि जब पुत्र प्रेम सचमुच अंधा हो जाता है ,तो पतन कि सीमाएं पताल को भी लज्जित कर देती है |दुर्योधन ने संकेत दिया और सभा में बैठा हुआ उसका नीच भाई दुस्शासन उठकर द्रौपदी के कक्ष की ओर चल पड़ा और द्रौपदी को सभा में चलने का आदेश दिया |

तब द्रोपदी ने एक नज़र अपने आप को देखा …वो रजस्वला थीं |यानि मासिक धर्म से गुजर रही थीं |ना कोई शृंगार,ना कोई आभूषण,ना पाँव से सिर तक ढकने वाले वस्त्र ! उन्होंने हाथ जोड़कर अपने देवर से कहा-मुझे इस दशा में वहाँ मत ले चलो |दुस्साशन मैं कुरुवंश की मर्यादा हूँ |

दुस्साशन ने निष्ठुर आँखों से देखा – और लपक कर उनके बाल पकड़ लिए |घसीटता हुआ वो चल पड़ा,राज सभा की ओर|द्रौपदी पीड़ा से कराह उठी |हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाईं…जो मुझे पहचानते हैं ,वो तो पहचान जाएंगे ,जो नहीं पहचानते हैं उन्हें क्या कहोगे दुस्साशन ,कि मैं महाराज पांडव कि पुत्र वधू हूँ |

यदि रास्ते में ज्येष्ठ माताश्री मिल गई तो वो पूछ  बैठेगी – कि कहाँ घसीटते ले जा रहे हो ? तो क्या कहोगे …? कि तुम कुरुवंश के मर्यादा को बालों से घसीटते ले जा रहे हो |Kaun Thin Draupadi

लेकिन कहाँ.. एक सती का चित्कार और और सत्ता का अहंकार दुस्साशन के कानों से टकराकर  द्रौपदी के शब्द काँच की तरह चटक गए.. |ले आया दुष्ट… द्रौपदी को भरी सभा में खींचकर |

द्रौपदी कुरुवंश की बहू एक कपड़े में लिपटी हुई …यह देख भीष्म पितामह की आँखें झूंक गई |पांचाली ने जब वो झुंकी हुई आंखे देखी,तो बोल पड़ी- आँखें झुकाने से क्या होगा पितामह.. |

मैं आपकी कूल वधू द्रौपदी… एक वस्त्र में लिपटी हुई….ऋतु स्नान किए बिना आपको प्रणाम करती हूँ और यह जानना चाहती हूँ, कि आज आप मुझे क्या आशीर्वाद देंगे ?

आप तो सबसे बड़े कुरुवंश हैं ,महावीर हैं ,महा विद्वान हैं ,बताएं -क्या आपने केवल कुरु सिंहासन की रक्षा का वचन दिया था ? क्या कुरु मर्यादा का कोई महत्व नहीं ? आप जैसे महापुरुष सुर वीर को इस तरह से मुह छुपाना शोभा नहीं देता पितामह…|

भीस्म से सभा  में प्रश्न करती द्रौपदी|Kaun Thin Draupadi

देखिये पितामह मेरी ओर देखिये ॥मैं एक कुरुवंश मर्यादा पर लगा हुआ प्रश्न चिन्ह हूँ ! देखिये आपकी कूल वधू किस दशा में सभा में खींचकर लाई गई है…|मुझसे कहिए कि कुरुवंशियों की यहीं परंपरा है |आपके मुंह से उत्तर पाकर मैं चुप हो जाऊँगी… पितामह कुछ तो बोलिए… |

द्रौपदी एक बच्ची की तरह पितामह के सामने बिलख उठीं |जब मैंने पहली बार आपके चरण छुए थे,तो सौभाग्यवती भव का आशीवाद दिया था आपने.. |आप उस आशीर्वाद का दशा देखिये पितामह… |

आपके सामने यह अधर्म हो रहा है,इस अधर्म को आपने सहन कर लिया, तो इसका अर्थ यह नहीं कि आपने इस अधर्म को स्वीकार कर लिया |क्या आप भी हमारे इस अपमान के भागीदार नहीं हैं ?

यदि नहीं हैं, तो उठाइए अपना धनुष और छेद दीजिये उस जिह्वा को जिसने आपके कूलवधू द्रौपदी को दासी कहने का अपराध किया है |आप पाप के वृक्ष कि छाया में बैठे हैं पितामह |उठ जाइए आपको तो शास्त्रों का ज्ञान है पितामह.. |

बताइये जो स्वयं अपने को जुवा में हार गया है ,वो कौन होता है किसी और की स्वतन्त्रता को और किसी और के स्वाभिमान को दाव पर लगानेवाला? मैं अपने प्रश्न का उत्तर मांग रही हूँ पितामह… |

आपका ये लज्जित मौन मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं है, क्योंकि यह प्रश्न केवल द्रौपदी हीं नहीं कर रही है,पूरी नारी जाति कर रहीं है,यह प्रश्न कर रही हैं धरती, जो हर प्राणी की माँ है | यह प्रश्न कर रहा है इस देश का भविष्य,जिसे आपके पूर्वज चक्रवर्ती महाराज भरत से अपना नाम मिला है ॥|मेरा मार्ग दर्शन करिए पितामह… |

भीष्म ,भरी हुई आँखों से बोले- क्या उत्तर दूँ पुत्री !  ये पुत्री एक सम्बोधन द्रौपदी के कानों में पिघले हुए शीशे की तरह पड़ गए |द्रौपदी चीख पड़ी ,पुत्री मत कहिए पितामह ….| मैं आपसे सम्बन्धों की बात नहीं कर रही हूँ | मैं उस अपमान की बात कर रहीं हूँ जो पिघल कर आँसू बन गया और इन आंखो से बह  निकला |Kaun Thin Draupadi

यदि पत्नी पति की संपति होती है, तो जब मेरे पति अपने को जुवे में हारे,साथ में मुझे भी हार गए |फिर दाव पर कैसे लगी ?यदि पत्नी पति की संपति नहीं होती,  तो मेरे पति मेरे से आज्ञा लिए बिना दांव पर कैसे लगा सकते हैं ?

कुरु वंश की मर्यादा इस विषय में क्या कहती है पितामह ? कृपया मुझे पुत्री कहकर संबोधित नहीं कीजिए |यदि मैं आपकी पुत्री होती, तो मेरा ये अपमान चुपचाप सहन नहीं करते |

मुझे कूल वधू कहिए क्योंकि मैं  यह देखना चाहती हूँ, कि इस सभा में अर्ध नग्न द्रौपदी को कूल वधू कहते हुए आपकी जिह्वा लखड़ाती है या नहीं ? भीष्म से कोई उत्तर ना पाकर द्रौपदी अपने ससुर हस्तीनपुर के राजा धृष्टराष्ट्र की ओर मुड़ी | आपके प्रिय अनुज पांडव पुत्र वधू द्रौपदी आपको प्रणाम करती है ज्येष्ठ पिताश्री|

आप बड़े भाग्यवान हैं, जो कि नेत्रहीन जन्मे, नहीं तो आज अपनी सभा में अपनी हीं पुत्रवधू की दुर्दशा देखकर आवश्य नेत्रहीन हो गए होते |नेत्रहीन धृष्टराष्ट्र अब शब्दहीन भी हो चुके थे |एक निर्लज मौन के सिवा कुछ नहीं था उनके पास अपनी बहू को देने के लिए |

असहाय द्रौपदी ने चारों ओर देखा …..गुरु द्रोण दिखाई दिये ,उसे आस जागी कि वो इस अन्याय पर अंकुश लगायेंगे क्योंकि वो कभी द्रौपदी के पिता के परम मित्र हुआ करते थे |द्रौपदी ने गुरु द्रोण को याद दिलाया |

आपने विदुर से यही संदेश भेजा था ना ,कि आपके बच्चपन के सखा द्रुपद की बेटी होने के नाते आपकी भी बेटी हूँ और पांडव की बहू होने के नाते आपकी भी बहू हूँ, तो आज किस संबंध से आपका चरण स्पर्श करूँ बेटी या बहू ?

द्रोणाचार्य ने भी अपने होंठो पर मौन के ताले लगा लिए |द्रौपदी को वो क्षण निकट  आते दिखाई दे रहा था, जब उसके तन का अंतिम वस्त्र भी उसका साथ छोड़ देगा… |

उसे आभास हो गया कि प्रार्थनाएँ मरे हुए स्वाभिमान को जीवित नहीं कर सकती |विवशता में जोड़े हुए हाथ को वो खोलकर एक सिंघनी की तरह दहाड़ने लगी और उनसे प्रश्न किया जो उसके मर्यादा के लिए वचनवद्ध थे |

वो बोल उठी युधिष्ठिर से -तुम होते कौन हो मुझे दांव पर लगाने वाले ? मुझे हारने वाले? यदि तुम्हें अपनी पत्नी को हारने का अधिकार हो भी तो,मैं केवल तुम्हारी हीं पत्नी नहीं हूँ ? मैं पांचों पांडवों की पत्नी हूँ |

क्या मुझे दांव पर लगाने से पहले तुमसे पूछा था नकुल ? सहदेव तुमसे पूछा था ?तुमसे आज्ञा ली थी?क्या तुमने आज्ञा दिया था ? क्या तुमसे  इन्होंने  आज्ञा ली थी सर्वश्रेष्ठ धनुधर अर्जून ?  मछली की आँख भेदकर मेरा स्वयंबर जितनेवाले सुर वीर क्या तुम्हें मेरी रोती हुई आंखे दिखाई नहीं देती…. ?

क्या तुमने मेरा स्वयंबर इसीलिए जीता था,कि एक दिन मैं जुवे में दांव पर लगा दी जाऊँगी और तेरा धनुष लकड़ी के टुकड़े के समान  धरती पर धारा रह जाय …|

धर्मराज युधिष्ठिर जुवा तो पहले भी कई बार खेला गया है|लेकिन किसी ने अपनी रखेल तक को दांव पर नहीं लगाया है |तुमने अपनी व्याहता को दांव पर लगा दिया धिक्कार है.. |

द्रौपदी  के सभी मान मनुहार, सभी उल्लाहने ,सभी प्रश्न और सभी प्रार्थनाएँ व्यर्थ चली गई | दुर्योधन एक निरंकुश हाथी की तरह चिघाड़ उठा – नंगा कर दो इस मेरी दासी को|जरा मैं भी तो देखूँ, कि जिसे जुवे में जीता है,वो बिना वस्त्रों की दिखती कैसी है ?

दुस्साशन मानों इसी आदेश की प्रतीक्षा में था |उसके हाथ द्रौपदी के चीर की ओर ऐसे बढ़े जैसे नाग अपनी शिकार की ओर झपटता है |भरी सभा के सामने द्रौपदी की साड़ी खींचने लगा |

वो द्रौपदी जिसके शरीर को पवन भी नहीं छू सका…, सूर्य का प्रकाश भी नहीं देख सका | आज अपने पतियों के होते हुए ,गुरुओं के होते हुए निर्वस्त्र हो रही थी |अब पांचाली किसे आस लगाती ……| कौन था द्वारिकादिश के अलावा, जो उसके इज्जत को आदर देता |

वस्त्र का एक कोना अपने दांतों तले दबाकर मन हीं मन पुकार उठी |मेरी लाज बचाओ गिरधारी,कन्हैया |कृष्ण ने अपनी मित्रता निभाई और अपनी सखी को निराश नहीं किया |उसके वस्त्र में अपने विराट स्वरूप के धागे जोड़ दिये|दुस्सासन के हाथ थक गए द्रौपदी के वस्त्र खींचते-खींचते |लेकिन द्रौपदी क्या ,द्रौपदी के एक नाखून तक निर्वस्त्र नहीं कर सका |

द्रौपदी को क्यों मिले थे पाँच पति 

द्रौपदी पूर्व जन्म में एक ऋषि की बहुत गुणी कन्या थी। वह रूपवती, गुणवती और सदाचारिणी थी, लेकिन पूर्वजन्मों के कर्मों के कारण उसकी शादी नहीं हो सकी थी। इससे दुखी होकर वह तपस्या करने लगी। 

उसकी उग्र तपस्या के कारण भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने द्रौपदी से कहा तुम वरदान मांगो । इस पर द्रौपदी इतनी प्रसन्न हो गई कि उसने पाँच बार वरदान में सर्वगुण सम्पन्न मन चाहा पति मांगी |। भगवान शंकर ने कहा तूने मनचाहा पति पाने के लिए मुझसे पांच बार प्रार्थना की है।

इसलिए तुझे दुसरे जन्म में एक नहीं पांच पति मिलेंगे। तब द्रौपदी ने कहा मुझे तो एक हीं पति चाहती हूं।परंतु शिवजी ने कहा मेरा वरदान व्यर्थ नहीं जा सकता है। इसलिए तुझे पांच पति ही प्राप्त होंगे।

द्रौपदी के चरित्र की विशेषताएँ 

स्वाभिमानी, सबला, विवेकशील, नारी जाति की पक्षधर, सत्य-न्याय और धर्म की एकनिष्ठ साधिका, औजस्विनी तथा वीरांगना ये सब उनके चरित्र की विशेषताएं है।

द्रौपदी के अन्य नाम:

 कृष्णेयी, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री, पांचाली, अग्निसुता आदि अन्य नामो से भी विख्यात थी।

द्रौपदी के अद्भुत रहस्य :

  1. द्रौपदी महाराज इन्द्र की पत्नी साची के अंश से पैदा हुई थी |राजा द्रुपद के यज्ञ की वेदी के मध्य भाग से एक अति  सुंदर कन्या के रूप में प्रकट हुईं थी |उनके नेत्र कमल के समान था |वो अति सुंदर थीं 
  2. द्रौपदी पूर्व जन्म मे एक ऋषि की कन्या थी जो अति गुणवान और सुंदर थी इनके योग्य वर न मिलने के कारण वे कुँवारी रह गई थी |इन्होंने कठोर तपस्या की | भगवान शंकर प्रसन्न होकर प्रकट हो गए |बोले : क्या मांगती हो कन्या मुझसे वर मांगो | व्यग्रतावश द्रौपदी ने पाँच बार सुयोग्य पति चाहिए वर मांग लिया |फलस्वरूप द्रौपदी  को पाँच वर प्राप्त हुए |
  3. द्रौपदी इन्द्र्प्र्स्त की वितमंत्री थीं |पांडवों के सम्पूर्ण संपति का लेखा जोखा द्रौपदी के पास था |
  4. द्रौपदी की बुद्दिमता और इच्छा शक्ति ने उन्हें विपति और समृद्धि दोनों हीं समय में दृढ़ रहने में सबल बनाया |
  5. एक समय वन से निकलते हुए जब जैदरथ ने सर्व प्रथम द्रौपदी को देखा था तो द्रौपदी  पर मोहित हो गया और मन ही मन बोला: यह निश्चित ही देवताओं की रची हुई कोई माया है |और द्रौपदी का वह अपहरण कर लिया |

यह भी पढ़ें :

कृष्ण रुकमानि विवाह  के बाद क्या हुआ

कृष्ण ने इरावन से विवाह क्यों किया

कृष्ण के यदुवंश का नाश कैसे हुआ 

कृष्ण ने राधा से विवाह क्यों नहीं किया

द्रौपदी के चीरहरण का परिणाम |Kaun Thin Draupadi

उस दिन जो हस्तीनपुर में हुआ,उसका परिणाम यह हुआ कि सौ पुत्रों के होते हुए भी गांधारी निःसंतान मरी| कुरुक्षेत्र में इतनी चिताएँ जली कि आज पाँच हजार साल भी धूँए से आसमान काला है और कर्ण !वो धर्मनिष्ठ कर्ण, जो उस दिन अधर्म का साथी और साक्षी बना रहा |

से प्राण त्यागते हुए  बस एक  हीं पछतावा था ……..

“अभी भी शुभ्र उर की चेतना है , अगर है तो बस यही वेदना है |

वधू जन को नहीं रक्षण दिया क्यों ,समर्थन उस दिन पाप का किया क्यों |

न कोई योग्य निष्कृति पा रहा हूँ,लिए ये दाह मन में जा रहा हूँ |

अंतिम क्षण में कर्ण अपने किए गए अपराध पर पश्चताप कर रहा था |

कर्ण  द्रौपदी से क्षमा मांगते हुए प्राण त्याग दिये |महाभारत में दुर्भाग्य की सभी सीमाएं पार हो गई |लेकिन भारत वर्ष  का सनातन इतिहास अग्नि की ज्वालाओं से जन्मी अपनी विलक्षण पुत्री पर सदैव गौरवान्वित रहा |सनातन ने द्रौपदी को पाँच कन्याओं में स्थान दिया |उन्हें ब्रह्मांड की सबसे पवित्र स्त्री स्वीकार किया |

लेकिन इस कथा को लिखने का एक ही मकसद है, कि ताकि हमें अपना इतिहास याद रहे और उसके कलंकित पन्ने हमें फिर कभी ना दुहराने पड़े |आप सभी ने धैर्य से पढ़ा मैं आप सभी की आभारी हूँ |धन्यवाद ,

FAQ:

 

- Advertisement -
- Advertisement -

Stay Connected

604FansLike
2,458FollowersFollow
133,000SubscribersSubscribe

Must Read

- Advertisement -

Related Blogs

- Advertisement -