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Shiv Tandav Strot Hindi Anubad Ke Saath

Shiv Tandav Strot Hindi Anubad Ke Saath|शिव तांडव स्त्रोत हिन्दी अनुवाद में 

 

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शिव ताण्डव स्रोत हिन्दी अनुवाद 

Shiv Tandav Strot Hindi Anubad Ke Saath- आज हम सभी अपने हिन्दू धर्म के आदिदेव भगवान शंकर की शिव तांडव स्त्रोत हिन्दी में नीचे क्रमबद्ध जानेंगे |

*1 जटा टवी गलज् जल प्रवाह पावित स्थले गलेSव लम्ब्य लम्बितां भुजंग तुंग मालिकाम्।डमड्-डमड्-डमड्-डमड्-निनाद वड् डमर्वयं चकार चंड ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ।।

अनुवाद – जिन्होंने जटा रूपी अटवी (वन) से निकलती हुई गंगा जी के गिरते हुए प्रवाहों से पवित्र किये गये लटकती हुई  सर्पो की विशाल  माला को धारण करके डमरू के डम डम शब्दों से मंडित प्रचण्ड ताण्डव(नृत्य)किया है वे शिव जी हमारे कल्याण का विस्तार करें। 

*2 जटा कटाह सम्प्रभम भ्रमन् निलिम्प निर्झरी विलोल विच्चि वल्लरी विराज मान मुर्धनि।धगद् धगद् धगज्  ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रति क्षणं मम ।।

अनुवाद – जिनका मस्तक जट्टा रुपी कड़ाह मे वेग से घुमती हुई गंगाजी की चंचल तरंग लताओं से सुशोभित हो रहा है, लट्टाग्नि धक् धक् जल रहीं हैं, शीश पर वाल चन्द्रमा विराजमान हैं,उन भगवान शिव में मेरा निरंतर अनुराग है। 

*3.धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुर स्फुरद दिगंत संतति प्रमोद मान मानसे। कृपा कटाक्ष धोरणी   निरुद्ध दुर्धरा पदि क्वचिद् दिगाम्बरे मनो विनोद मेतु वस्तुनि।।

अनुवाद -गिरिराज किशोरी (पार्वती) के विलासकालोपयोगी शिरोभूषण  से समस्त दिशाओं को प्रकाशित होते देख जिनका मन आनंदित हो रहा है। जिनके निरंतर कृपा दृष्टि से  कठिन आपति का भी निवारण हो जाता है। ऐसे दिगम्बर तत्व में मेरा मन विनोद करे। 

*4.जटा भुजंग पिंग्ल-फुरत् फणा मणि -प्रभा कदम्ब कुंग्कुम प्रलिप्त दिग्वधू मुखे। मदान्ध सिन्दुर स्फुरत् -त्वगुत्त रीय-मेदुर मनो विनोद -मभ्दुतं विभर्तु भूत भर्तरि।। 

जिनके जट्टा जट्टा जूटवर्ती भुजंगों (सर्पो) के फड़ों की मड़ियों का फैलता हुआ पिंगल प्रभा पुंज दिशा रुपिणी अंगनाओं के मूख पर कुमकुम राग का अनुलेप कर रहा है मतवाले हाथी  के हिलते हुए चमड़े का उत्तरीय वस्त्र (चादर) धारण करने से स्निग्धवर्ण भूतनाथ में मेरा चित्त अद्भुत विनोद करे। 

*5.सहस्त्र लोचन प्रभृत्य शेष लेख शेखर प्रसून धूलि धोरणी विधू सरांघ्रि पीठभूः। भुजंग राज मालया निबद्ध जाट जूटकः श्रिया चिराय जायतां चकोर बंधु शेखरः।।

अनुवाद -जिनकी चरण पादुकाएं इन्द्र आदि समस्त देवताओं के[प्रणाम करते समय ]मस्तकवर्ती (सिर के उपरी) कुसुमों के धूल से धूसरित हो रही है। नागराज के हार से बधी हुई जटावाले भगवान चंद्रशेखर मेरे लिए चिर स्थायिनी सम्पति के साधक हो। 

*६. ललाट चत्वर ज्वलद् धनन्जय स्फुलिंगभा निपीतपंच सायकं नमन निलिम्प नायकम्। सुधा मायूख लेखया विराज मान शेखरं महा कपालि सम्पदे शिरो जटाल मस्तुनः।। 

अनुवाद -जिसने ललाट वेदी पर प्रज्वलित हुई अग्नि के ज्वाला के तेज से कामदेव को नष्ट कर डाला था। जिसे इन्द्र नमस्कार किया करते हैं, चन्द्रमा की कला से सुशोभित मुकुट वाला, वह उन्नति विशाल ललाटवाला जटिल मस्तक हमारी सम्पति का साधक हो। 

*७. कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगद् धगज् ज्वलद् धनन्जया हुती कूत प्रचंड पंच सायके। धरा धरेन्द्र नंदिनी कुचाग्र चित्र पत्रक प्रकल्प नैक शिल्पनि त्रिलोचने रतिर्मम।। 

अनुवाद – जिन्होंने अपने विकराल भाल पट्ट पर धक जलती हुई अग्नि में प्रचण्ड कामदेव की आहूति दे दी थी, गिरिराज किशोरी के हृदय पर पत्र भंग रचना करने वाले एक मात्र शिल्पकार भगवान शिव में मेरी धारणा लगी रहे।  

*८.नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धर स्फुरत् कुहू निशीथिनी तम प्रबंध बद्ध कन्धरः। निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरन्धरः।। 

*अनुवाद-जिनके कण्ड में नवीन मेघमाला से घिरी हुई अमावस्या की आधी रात के समय फैलाते हुवे अंधकार के समान श्यामता अंकित है,जो गज चर्म लपेटे हुए है। संसार भार को धारण करने वाले चन्द्रमा के संपर्क से मनोहर कान्ति वाले भगवान मेरी सम्पति का विस्तार करे।

*९.प्रफुल नील पंकज प्रपंच कालिम प्रभा वलम्बि कण्ठ कन्दली रूचि प्रबद्ध कन्धरम्। स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दान्ध कच्छिदं तमन्त कच्छिदं भजे।।

अनुवाद -जिनका कण्ठदेश खिले  हुए नील कमल समूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करनेवाली हरिणी सी छवि वाले चिन्ह से सुशोभित, जो कामदेव त्रिपुर भव ( संसार) दक्ष यग्य गजासुर अंधकासुर और यमराज को भी अच्छेदन करने वाले हैं, उनका मैं भजन करता हूँ। 

*१०. अखर्व सर्व मंगला कला कदम्ब मंजरी रस प्रवाह माधुरी विजृम्भणा मधुव्रतम्। स्मरानतक पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्तकं तमन्त कान्तकं बजे।। 

अनुवाद-जो अभिमान रहित पार्वती की कदम्ब मंजरी के मकरंदस्त्रोत की बढ़ती हुई माधुरी के पान करने वाले मधुप हैं तथा कामदेव त्रिपुर भव दक्ष यग्य गजासुर अंधकासुर और यमराज का भीअन्त करने वाले हैं, उनका मैं भजन करता हूँ। 

*११.जयत वदभ्र विभ्रम भ्रमद भुजंग मश्वस द्विनिर्गमत् क्रम स्फूरत् कराल भाल हव्य वाट् धिमिद् धिमिद् धिमिद् ध्वननन् मृदंग तुंग मंगल ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः।। 

अनुवाद -जिनके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घुमते हुए भुजंग के फुफकारने से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमशः धधकती हुई फैल रही है। धिमि धिमि बजते हुए मृदंग के गंभीर मंगल घोष के क्रमानुसार जिनका प्रचण्ड ताण्डव हो रहा है,उन भगवान शिव की जय हो। 

Shiv Tandav Strot Hindi Anubad Ke Saath

*१२.द्वषद् विचित्र तल्पयोर भुजंग मौक्ति कस्त्रजोर गरिष्ठ रत्न लोष्ठयोः सुहृद् विपक्ष पक्ष योः। तृणारविन्द चक्षुषोः श्रजा मही महेन्द्रयोः सम प्रवृत्ति कः कदा सदा शिव भजाम्यहम्।। 

 अनुवाद -पत्थर और सुन्दर विछौना में, सर्प और मोतियों की माला में, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के ढेले में, मित्र या शत्रु पक्ष में, तृण और कमल लोचना तरुणी में, प्रजा और पृथ्वी के सम्राट में, समान भाव रखता हुआ, मैं कब शिवजी को भजूँगा। 

*१३. कदा निलिम्प निर्झरी निकुंज कोटरे वसन् विमुक्त दुर्मतिःसदा शिरः स्थ मंजलिं वहन। विलोल लोल ललाम भाल लग्नकः  शिवेति मंत्र मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्।।

अनुवाद -सुन्दर ललाट वाले भगवान  चन्द्रशेखर में दत्त चित होकर अपने कुविचारों को त्याग कर गंगाजी तटवर्ती निकुंज के भीतर रहता हुआ, सिर पर हाथ जोड़कर डबडबाई विह्वल नेत्रों से शिव मंत्र का उच्चारण करता हुआ मैं कब सुखी होउंगा। 

*१४.निलिमप नाथ नागरी कदम्ब मौल माल्लिका, निगुम्फ निर्भक्षरन्म धूष्णिका मनोहरः। तनोतु नो मनो मुदं विनोदिनी महर्निशं परिश्रय परं पदं तदंग जत्विषां चयः।। 

अनुवाद -देवंगनाओं के शीश में गुथे पुष्पों की मालाओं से प्रवाहित सुगंध मय पराग से मनोहर परम शोभा के धाम श्री शिवजी के अंगों की सुन्दरता परमानंद युक्त हमारे मन की प्रसन्नता को सदा बढ़ाती रहे। 

*१५.प्रचंड वाड़वा नल प्रभा शुभ प्रचारणी महाष्ट सिद्धि कामिनी जनाव हूत जल्पना। विमुक्त वान लोचनों विवाह कालिक ध्वनिः शिवेति मंत्र भूषगो जगज् जयाय जायताम।। 

अनुवाद-प्रचंड वड़वानल (समुन्दर की अन्दर की अग्नि) की भाति पाप कर्मो को भस्म करने वाली कल्याणकारी आभा बिखेरनेवाली शक्तिस्वरूपिणी अणिमादिक अष्टमहासिद्धियां तथा चंचल नेत्रों वाली देव कन्याओं द्वारा शिव विवाह के समय की गई परम श्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित मंगल ध्वनि संसारिक दुःखों का नाश करके विजयी हो अर्थात् संसारिक दुःखों का नाश करें।

*१६. इयं हि नित्य मेव मुक्त मोत्तमं स्तवं पठन स्मरन् ब्रुवन नरो नरो विशुद्धि मेति संततम्। हरे गुरौ सुभक्ति माशु यातिं नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंग करस्य चिन्तनम्।। 

अनुवाद -जो मनुष्य इस उत्तमोत्तम स्त्रोत का नित्य पाठ स्मरण और वर्णन करता है, वह सदा शुद्ध रहता है। शीघ्र ही सुर गुरू श्रीशंकर जी की अच्छी भक्ति  प्राप्त कर लेता है। वह विरुद्ध गति को प्राप्त नहीं होता क्योंकि शिव जी का भलि भाति चिन्तन प्राणिवर्ग के मोह का नाश करने वाला है। 

*१७.पूजा वसान समये दशवकत्र गीतं यः शम्भु पूजन परं पठति प्रदोषे। तस्य स्थिरां रथ गजेन्दर्ं तुरंग युक्ततां लक्ष्मी सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः।। 

अनुवाद -सायंकालीन में पूजा समाप्त होने पर रावण द्वारा गाये हुए इस शम्भु पूजन सम्बन्धी स्त्रोत का जो पाठ करता है, भगवान शंकर उस मनुष्य को रथ हाथी घोड़ो से युक्त सदा स्थिर रहने वाली अनुकूल सम्पति प्रदान करते हैं। शिव ताण्डव फोटो

   *इति श्री रावण कृतं शिव ताण्डव स्त्रोत् सम्पूर्णम्।#इस प्रकार यह रावण कृत शिव ताण्डव स्त्रोत समाप्त हुआ। #

यह भी पढ़ें :

  1. भगवान शंकर की उत्पति कैसे हुई ?
  2. शिव के धनुष के विषय में 
  3. हनुमानजी के पाठ से कैसे मिलता है लाभ 
  4. भगवान शिव के आराध्य देव कौन 

    धन्यवाद पाठकों

संग्रहिता-कृष्णावती कुमारी

Read more: https://krishnaofficial.co.in

 

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