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Milkha Singh Ki Jivan Yatra

Milkha Singh Ki Jivan Yatra|Biography of Milkha Singh (Flying Singh):

Milkha Singh Ki Jivan Yatra- भारतीय खिलाड़ियों में  सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ एथलिस्ट्स  में  से  एक है मिल्खा सिंहउड़न सिख मिल्खा सिंह को दुनिया में कौन नहीं जनता है | अपने उड़न धावक से दुनिया में  भारत का मस्तक गर्व से ऊंच्चा करने वाला सिर्फ एक गिलास दूध के लिए आर्मी में भर्ती हुआ  था |

प्रारम्भि जीवन:

मिल्खा सिंह का जन्म  भारत के पंजाब राज्य के एक गाँव  में हुआ था | उस समय भारत का  विभाजन नहीं हुआ था |वे पंद्रह भाई बहनों में से एक थे | उनके कई भाई बहन का बाल्यकाल में ही निधन हो गया | भारत के विभाजन के सामय हुवे दंगों में अपने भाई बहन और माँ बाप को खो दिया था| उसके बाद वे शरणार्थी बनकर  ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से  दिल्ली आ गए | कुछ दिन शरणार्थी शिविर में रहने के बाद  अपनी बहन के घर पर दिल्ली में रहने लगे | 

इस भयानक हादसे से उनके  हृदय पर गहरा आघात पहुंचा| चोटिल इंसान ही अपने जीवन में कुछ कर गुजरने की ठानता है और अपनी मंजिल को प्राप्त करता है | इन्होंने वही किया | अपने भाई के सलाह  पर सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया |लगातार तीसरी बार सेना में भर्ती नहीं मिलने पर निराश नहीं हुवे | सन 1951 में चौथी कोशिश में  6ठे स्थान प्राप्त कर सभी अधिकारियों के दिलों में जगह बना लिया  | तभी तो सेना ने उन्हें खेल कूद में  स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था|

धावक के तौर पर मिल्खा सिंह का  करियर :

सेना में कड़ी मेहनत करने के बाद 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ को अपने नाम पर दर्ज किया |सन 1956 में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुवे मेलबोर्न ओलंपिक खेलों में 200 और 400 मीटर दौड़  में भाग लिया |परंतु अंतर राष्ट्रीय  स्तर पर अनुभव नहीं होने के कारण सफलता नहीं मिली |

लेकिन वे हार से कभी निराश नहीं होते थे| जब 400मीटर दौड़  प्रतियोगिता के विजेता  चार्ल्स जेंकिन्स  के साथ मुलाक़ात हुई तो उनहोने उन्हें काफी प्रेरित किया और ट्रेनिंग के नए तौर तरीकों से भी अवगत कराया |यानि मिल्खा सिंह जी को काफी सीखने को मिला | इसके बाद तो इन्होंने खूब ख्याति बटोरी |

मिल्खा सिंह की उपलब्धियाँ कौन कौन सी थी?
  •  सन  1958  में  कटक में आयोजित  राष्ट्रीय खेल में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुवे 200मीटर और 400 मीटर की दौड़ प्रतियोगिता में  एक नया कीर्तिमान स्थापित किया | एशियन खेलों में भी आपने   दोनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किया |
  • सन 1958 में ही आपको  एक और महत्वपूर्ण सफलता मिली जब आपने ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल खेलों में  400 मीटर दौड़ प्रतियोगिता  अपने नाम किया | इस प्रकार   आप राष्ट्र मण्डल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल करने वाले आजाद भारत के प्रथम खिलाड़ी बने | इस वर्ष आपने राष्ट्र मण्डल खेलों में विश्व रेकॉर्ड तोड़ा |
  • सन 1960 में पाकिस्तान के प्रशिद्ध धावक अब्दुल बसित को उन्ही के देश में आपने पछड़ा |इस रोमांचित दृश्य को देखकर पाकिस्तान के जनरलआयूब खान ने आपको उड़न सिख कह कर पुकारा | वहीं  से आपका नाम उड़न सिख पड़ा | ऐसा कहा जाता है कि आपको  दौड़ते  हुवे देखने के लिए वहाँ कि बुर्का धारण की हुई महिलाएं भी बुर्का उतार कर देखने लगी |
  • सन 1962 के आयोजित एशियन खेलों मे मिल्खा सिंह ने 400 मी और 4 x 400मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीता | यानि डबल गोल्ड मेडल प्राप्त किया |
  • 80 रेसों में  77 में सबसे आगे रहे  मिल्खा सिंह |
  • सन 1958 के एशियाई खेलों में सफलता  के बाद  सेना ने आपको  ‘जूनियर कमीशन  आफिसर’ के  तौर पर आपका प्रोमोशन कर सम्मानित किया और उसके बाद पंजाब सरकार ने आपको प्रांत  के शिक्षा विभाग में  खेल निदेशक के पद पर नियुक्त  किया
  • मिल्खा जी द्वारा रोम ओलंपिक में स्थापित कीर्तिमान को धावक परमजीत सिंह ने 40 साल बाद  सन 1998 में तोड़ा |

 

मिल्खा सिंह की संक्षिप्त जीवनी:
नाम  मिल्खा सिंह
उपनाम फलाइंग सिख
जन्मतिथि 20 नवंबर 1929
जन्म स्थान गोविंदपुरा, जनपद -मुजफरगढ़ शहर ,पंजाब राज्य ,ब्रिटिश भारत (अब मुजफरगढ़ जिला पाकिस्तान में हैं )
पत्नी का नाम निर्मल सैनी ,जो कि Volleyball प्लेयर (उप कप्तान ) थीं|
संतान दो
पुत्री का नाम सोनिया संवाल्का
पुत्र का नाम जीवन मिल्खा सिंह
निधन 18 जून 2021

 

वर्ष 2013 में मिल्खा सिंह ने अपनी बेटी सोनियासंवाल्का के साथ मिलकर अपनी आत्मा कथा लिखी| जिस पुस्तक का नाम ‘The  Race of My Life‘ है| इस पुस्तक से प्रेरित होकर  मशहूर फिल्म निदेशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने  भाग मिल्खा भाग नामक फिल्म बनाई | इस फिल्म में मिल्खा सिंह का किरदार फरहान खान ने निभाया | जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया |जब इनकी बायोग्राफ़ि के लिए निदेशक ने धनराशि देने  की  बात  कही तो आपने लेने से इंकार कर दिया |

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धन्यवाद पाठकों ,

संग्रहिता -कृष्णावाती कुमारी

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