पांडवों ने अपने पिता का मांस क्यों खाया था |Pandavon Ne Apne Pita ka Maans Kyon Khaya Tha
why did the pandav eat theirs fathers flesh ?
Pandavon Ne Apne Pita ka Maans Kyon Khaya Tha – पांडवों ने अपने पिता का मांस क्यों खाया था ? महाभारत के पन्नों को हम जितना खोलते है उनमें उतने ही रहस्य खुलते जाते है |उन्हीं पन्नों में हम जितना जानने की कोशिश करते हैं उतने ही नए रहस्य खुलते जाते है |
उन्हीं पन्नों में जुड़ा एक रहस्य पांडव पुत्रों से जुड़ा हुआ हमें मिलता है| जिसके अनुसार सहदेव ने मृत्यु के पश्चात अपने पिता पांडु का मांस खाया था |जी हा क्या इस तथ्य ने आपको भी हैरान कर दिया है न | मित्रों यह सत्य है कि सहदेव ने अपने ही पिता का मांस खाया था |अब हम जानेंगे कि आखिर किस कारण से सहदेव को अपने ही पिता का मांस खाना पड़ा|आप सभी जानते है कि महाभारत के एक बहूचर्चित पात्र पांडव भी थे |
जिनकी दो पत्नियाँ थीं |जिनका नाम कुंती और माधवी था|कुंती और माधवी से पाँच पुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव हुवे|जो बाद में जाकर पांडव कहलाए |परंतु क्या आप जानते हैं की पांचों पांडव क्या पांडुड के पुत्र थे ? जी नहीं ,पांचों पांडव पांडु के पुत्र नहीं थे |या आप ऐसे समझ सकते है की इनका जन्म पांडु के वीर्य से नहीं हुआ था |
किस कारण पांडु को संतान सुख नहीं प्राप्त हुआ ?
इसके पीछे भी एक कथा हैं |जिस कारणवश पांडु संतान का सुख नहीं प्राप्त कर सकते थे |दरअसल एक बार राजा पांडु अपनी दोनों पत्नी कुंती और माधवी के साथ शिकार पर गए थे |उन्होंने एक मृग को देखा जो कि अपनी मृगनी के साथ सहवास कर रहा था |लेकिन फिर भी पांडु ने सहवासरत मृग और मृगनी पर तीर चला दिया |
जिससे वह मृग और मृगनी दोनों अपने वास्तविक रूप में आ गए |यह देखकर राजा पांडु और उनकी पत्नियाँ घबरा गईं |वास्तव में मृग के जोड़े मृग थे हीं नहीं | बल्कि वह ऋषि किदम्ब थे | ऋषि किदम्ब को देख पांडु भयभीत होकर क्षमा याचना करने लगे |लेकिन ऋषि किदम्ब क्रोधित हो गए और बोले हें !पांडु जिस प्रकार सहवास की अवस्था में मृत्यु हमें प्राप्त हुआ, उसी प्रकार तुम भी सहवास के अवस्था में जब आओगे मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे |
उसके बाद पांडु भयभीत हो गए | यदि मैं किसी भी स्त्री के साथ संभोग करूंगा तो मृत्यु को प्राप्त हो जाऊंगा |तभी से पांडु का मन इसी चिंता में लीन रहता था |हमेशा सोचते रहते थे कि हमारे वंश का क्या होगा ? अब उनका वंश आगे कैसे बढ़ेगा |इसी दुख के कारण उन्होंने अपना सारा राज पाठ त्याग दिया और कुंती और माधवी के साथ वन में रहने लगे |
वन में जाने के बाद भी राजा पांडु खोये खोये रहते थे |उनकी इस स्थिति को देख कुंती और माधवी दोनो चिंतित हो गयी |पांडु की स्थिति को देख कुंती को अपना वरदान याद आया जो कि कुंती की सेवा भाव से प्रसन्न होकर महर्षि दुर्वासा ने उन्हें दिया था | यह तबकी बात है जब कुंती कुंवारी थी और महर्षि दुर्वासा उनके महल में अतिथि बनकर आए थे और काफी लंबे समय तक वहीं ठहरे थे |
उस समय कुंती उनका बहुत आदर भाव से सेवा सत्कार की थी |जिससे प्रसन्न होकर महर्षि दुर्वासा ने उन्हें वरदान स्वरूप एक मंत्र दिया था |जिसके उच्चारण मात्र से ही किसी भी देवता का अहवाहन कर उन्हें बुला सकती थीं और संतान प्राप्त कर सकती थीं |उसी समय जब वो कुँवारी थी तब उत्सुकतावश जांच करने के लिए सूर्य का आवाहन किया |जिसके फलस्वरूप कर्ण का जन्म हुआ |जिन्हें लोक लज्यावश नदी में बहा दी थीं |
कुंती को कौन सा वरदान मिला था –
इस वरदान के विषय में जब कुंती ने पांडु को बताया तो पांडु अति प्रसन्न हुवे और बोले अविलंब आप देवता का अवाहन करें |जिसके फलस्वरूप कुंती के 3 पुत्र युधिष्ठिर ,भीम और अर्जुन का जन्म हुआ |इसके बाद पांडु की आज्ञा पाकर कुंती ने इस मंत्र का ज्ञान माधवी को भी दिया |
जिसके फलस्वरूप माधवी ने देवताओं का अहवाहन कर 2पुत्र प्राप्त किया ,नकुल और सहदेव को जन्म दिया |समय बितते गया |बाल्या अवस्था और किशोरा अवस्था को पार कर पांचों भाई युवा अवस्था में प्रवेश कर गए |इन्हें पांडवों कि उपाधि मिली जो सही भी थी क्योंकि पांचों ही अलग अलग कलाओं में निपुण थे |जिनका मुक़ाबला करना आसान नहीं था |
युधिष्ठिर धर्मवीर थे ,तो भीम में100 हथियों का बल था |अर्जुन धनुर विद्या में निपुण थे तो नकुल सौंदर्य में सबसे श्रेष्ठ थे |इनमें सबसे छोटे सहदेव थे ,इनके लिए कहा जाता है कि द्वापर युग में सबसे बुद्धिमान कोई था, तो वो सहदेव थे|लेकिन इतने कुशल और योगी पुत्रों को पाने के बाद भी राजा पांडु का मन दुखी रहता था |
वास्तव में उनके दुख का असली वजह उनका पछतावा था जो उन्हें परेशान करता था |राजा पांडव के मन में हमेशा इसी बात का खेद रहता था कि उनके पांचों पुत्रों का जन्म उनके वीर्य से नहीं हुआ है |इसीलिए वे अपना ज्ञान और कौशल को अपने पुत्रों को नहीं दे सकते थे |ये दुख उन्हें अंदर हीं अंदर खाये जा रहा था |
महाराजा पांडु चाहते थे कि उनके संतानों में उनका गुण स्थानांतरित हो परंतु उनके पत्नियों के साथ संभोग के बिना यह संभव नहीं हो सकता था |यह ऋषि किदम्ब के श्राप से यह संभव नहीं हो सकता था |इसीलिए वे चाहते थे कि उनके मृत्यु के बाद उनके बच्चे उनका मांस खाएं |
पांडवों के मांस खाने के पीछे का कारण –
पांडवों के मांस खाने के पीछे का कारण कुछ और नहीं ,बल्कि पांडव की अंतिम इच्छा थी |आइये जानते है इसके पूरे वाकया:….एक दिन जंगल में बैठे एक पेड़ के नीचे पांडु ने पांडवों से कहा :पुत्रों मैं इन 16सालों में न सिर्फ तुम्हारी माताओं से दूर रहा हूँ |बल्कि ब्रह्म चारी की साधना करके मैंने बहुत सी आसधारण भीतरी शक्तियाँ और बहुत ज्यादा दूरदर्शिता बुद्धिमता हासिल कर लिया है |
परंतु मैं कोई गुरु नहीं हूँ |इसीलिए मुझे नहीं पता कि इन गुणों को तुम तक कैसे पहुचाऊँ|लेकिन यह सिद्ध करने के लिए मेरे पास एक उपाय है, तो सुनो जिस दिन मेरी मृत्यु होगी, तुम लोग बस एक काम करना |मेरे शरीर के मांस का एक टुकड़ा खा लेना |यदि तुम हमारे मांस के एक टुकड़ा को अपने शरीर का हिस्सा बना लोगे तो मेरी बुद्दिमता स्वयम् तुम्हारे पास पहुँच जाएगी |
समय वितता गया |एक दिन राजा पांडु माधवी के साथ वन में विचरण कर रहे थे |तब माधवी को देख वो स्वयम् पर नियंत्रण नहीं कर पाएँ |जैसे ही संभोग की स्थिति में पहुंचे श्राप के कारण उनकी मृत्यु हो गई |पिता के मृत्यु के बाद सभी इतने दुखी थे कि पिता कि मृत्यु के पश्चात पिता का मांस ही खाना भूल गए |
जब पिता के शरीर को जला रहे थे ,तब एक चींटी पांडु के शरीर से मांस लेकर जा रही थी |तभी उस छीटी पर सहदेव की नजर पड़ी और पिता कि कही हुई बात याद आ गई |तब सहदेव ने उस चींटी से पिता का मांस छिनकर खा लिया | मित्रों इसी लिए कहा गया कि सहदेव से बड़ा ज्ञानी पूरे द्वापर युग में कोई नहीं हुआ |सहदेव को त्रिकाल दरशी भी कहा गया है |
सहदेव महाभारत का परिणाम जानते हुवे भी क्यों चुप थे –
दोस्तों इससे जुड़ी दो मान्यताएं और भी है |जिनमें से पहली मान्यता यह भी है कि पांचों पांडवों ने मांस खाया था |परंतु सबसे ज्यादे हिस्सा सहदेव को मिला जिसके कारण सहदेव को पिता कि सबसे अधिक गुनवाता और बुद्धिमता आई |दूसरी मान्यता यह है कि पिता के आज्ञा का पालन करते हुवे सहदेव ने अपने पिता का मांस खाया था |
जिसमें वे पिता के मशतिष्क के तीनों भागो को खाया था |इसके फलस्वरूप मशतिष्क के पहले टुकड़े को खाते ही सहदेव को इतिहास का ज्ञान हो गया |दूसरा टुकड़ा खाते हीवर्तमान का ज्ञान ,तीसरा टुकड़ा यानि मशतिष्क के तीसरे हिस्से को खाते ही भविष्य का पूरा ज्ञान हो गया था| कहा जाता है कि कृष्ण के बाद एक सहदेव ही ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें महाभारत युद्ध के बारे में और आगे की सारी घटनाओं के बारे में ज्ञात था |
सहदेव को महाभारत का परिणाम और किसका बद्धकिसके हाथों होगा ,पूरे घटनाक्रम की जानकारी पहले से थी |परंतु सबकुछ जानते हुवे भी सहदेव किसी को कुछ बता नहीं सकते |कारण की कृष्ण ने उन्हें श्राप दिया था की जब कभी वो अपने त्रिकाल दर्शिता का प्रयोग करके उनका सिर 3 भागो में कट जाएगा अर्थात उनकी उसी समय मृत्यु हो जाएगी |जिस कारण सहदेव सब कुछ जानते हुवे भी अंजान बने रहे थे | साथियों अगर आपको अच्छा लगे तो अपना प्यार व अशिवद बनाएँ रखें और ज्यादे से ज्यादे share करें |
धन्यवाद |
नोट- सभी जानकारियाँ बड़े बूजोरगोन के मौखिक श्रवण से आप तक पहुंचा रही हूँ |
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