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Kashmir Ka Kadwa Sach -Kashmir Genocide 1990

Kashmir Ka Kadwa Sach|370 आर्टिकल क्या है

Kashmir Ka Kadwa Sach- कश्मीर की सच्चाई से सारी दुनिया वाकिफ़ है| यह सर्व विदित है कि भारत की आजादी के बाद 1948 में जुनागढ़ और हैदराबाद का विलय हुआ | उससे पहले सन 1947 में जंबू कश्मीर का विलय हो चुका था|

जम्बू कश्मीर की विलय की भी कहानी बहुत ही दिलचप्स है |24 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया था |महाराजा हरी सिंह को कश्मीर छिन जाने का डर सताने लगा |पाकिस्तान के हमलावर श्रीनगर तक आ गए थे |उसके बाद राजा महाराजा हरी सिंह सरदार पटेल के शरण में आ गए |

बल्लभ भाई पटेल ने कहा :कश्मीर को हम बचायेंगे और जरूर बचायेंगे|लेकिन शर्त ये है कि पहले इसे हिंदुस्तान में मिलायेंगे |राजाजी ने पटेलजी की शर्त मान ली और भारत में जम्बू कश्मीर का विलय हो गया |वो  तारीख थी 26 अक्तूबर 1947 दिन रविवार|

विलय  के बाद भारतीय सेनानियों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेढ़ना शुरू कर दिया |जय हिन्द की सेना आगे बढ़ती जा रही थी|दो तिहाई हिस्सा खाली हो चुका था| बस एक तिहाई हिस्सा बाकी था |तभी भारत से एक बहुत बड़ी भूल हो गई|

कश्मीर की दर्दनाक कहानी |Kashmir Ka Kadwa Sach

ये जब्र भी देखा है तारीख की नज़रों ने, लम्हों ने खाता की थी सदियों ने सजा पाई है ” 

भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपनी तरफ से संघर्ष विराम की घोषणा कर दी | यह घोषणा तब हुई जब भारत एकदम जीत के करीब पहुँच चुका था |संघर्ष विराम की घोषणा के  बाद जो जहां था वहीं रुक गया |कश्मीर के एक तिहाई भाग पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया |

कश्मीर के उपर एक लाइन खींच गई जिसे Line of Control यानि एल ओ सी का नाम दिया गया |एल ओ सी के उस पार का हिस्सा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर हो गया जिसे POK कहते है |अगर तत्कालीन प्रधानमंत्री संघर्ष विराम का एलान नहीं किए होते, तो आज POK जैसा नाम अस्तित्व में ना होता |

POK की ये कशक आज हर हिंदुस्तानी के दिल में है |लेकिन उससे पहले भी तत्कालीन प्रधानमंत्री ने दो ऐसे फैसले लिए जो भारत के लिए आत्मघाती साबित हुआ|

1.पहला फैसला  2.11.1947 को ऑल इंडिया रेडियो पर प्रधानमंत्री ने कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र के निगरानी में जनमत संग्रह करने की घोषणा कर दी |

2.दूसरा फैसला 1.1.1948 को यूएन सेक्रेटरी काउन्सलिन्ग में भारत के प्रतिनिधि पीपी पिलई ने कवाइलू का हमले का मुद्दा उठाया और इस तरह भारत ने कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र के मंच पर लेकर चला गया| घर की बात बाहर चली गई |फिर तो भारत के अभिन्न अंग जंबू कश्मीर को अंतर राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की साज़िश शुरू हो गई |

आज दुनिया के कई देश कश्मीर के मामले पर हमे ज्ञान देने की कोशिश करते हैं और हमें ये बार-बार याद दिलाना पड़ता है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है |इसे सुलझाने के लिए हमें किसे तीसरे की जरूरत नहीं है |लेकिन ये भी सच है कि ये मुद्दा हमारे गले कि हड्डी बना हुआ है |

 नेहरू के इस भूल के पीछे दिमाग किसका था | Kashmir Ka Kadwa Sach

आज़ाद भारत के  प्रथम गवर्नर जेनरल लॉर्ड माउन्ड बेटन का |वही बेटन जिन्होंने भारत के  बटवारे की  योजना तैयार की  थी |इतना ही नहीं नेहरू को संघर्ष विराम करने और कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र संघ जाने की सलाह दी थी |कहा जाता है कि जंबू कश्मीर पर  यह फैसला लेने से पहले नेहरू ने नहीं तो कैबिनेट मीटिंग बुलाई, और नहीं तत्कालीन गृह मंत्री बल्लभ भाई पटेल से कोई सलाह ली |

खुद विचार करें कि जिस कश्मीर को पटेलजी ने अपनी सूझ बुझ से भारत में विलय करा दिया उसी कश्मीर को नेहरू ने हमेशा के लिए विवादित बना दिया |इन्हीं वजहों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी कहा था कि अगर सरदार बल्लभ भाई पटेल देश के प्रधानमंत्री होते तो देश की  तशवीर कुछ और होती |ये मत समझिए कि कश्मीर पर गलतियों का सिलसिला यहीं थम गया |

दुष्यंत कुमार की चार पंक्तियाँ बहुत फिट बैठती है…

“वो आदमी नहीं है मुकम्मल व्यान है 

माथे पर उसके चोट का गहरा निशान है

वो  कर रहे हैं इश्क पे संजीदा गुफ़्तगू

मैं क्या बताऊँ मेरा कहीं और ध्यान है |” 

कई इतिहासकार कहते हैं कि उस वक्त नेहरु का ध्यान अपनी छवि बनाने में था |वो खुद को आदर्शवादी ,शांतिप्रिय और निर्विवादित  विश्व नेता के रूप में अपने को स्थापित करना चाहते थे |इस कोशिश में उनसे एक के बाद एक भूलें होती रहीं |ऐसे हीं एक भूल थी अनुछेद 370 | जंबू कश्मीर को नेहरू ने अनुछेद 370 का वरदान दे दिया |

“दिल के फफोले जल उठे सीने के दाग से,

इस घर को आग लग गई घर के चराग से |”

दावा किया जाता है कि यह वरदान नेहरू ने दोस्ती कि खातिर दिया था |जंबू कश्मीर में एक बहुत बड़े नेता हुआ करते थे शेख अब्दुला | इस नेता को महाराजा हरि सिंह ने जंबू कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था |उन दिनों नेहरू और शेख की दोस्ती के बड़े चर्चे थे | जंबू कश्मीर में शेख को पंडित जी का आदमी कहा जाता था |लोग दशकों से पूछते रहे विलय के साथ जब जंबू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया तो फिर नेहरू ने कश्मीर को विशेष दर्जा दिया ,जरूरत क्या थी ?

370 Article के बारे में जानें |Kashmir Ka Kadwa Sach

बात 1948 की है ,भारत के संविधान का ड्राफ्ट बन रहा था |शेख अब्दुला चाहते थे कि  उन्हें संविधान सभा में जगह मिले और वो जगह क्यो मिले वह क्यो चाहते थे?

इसलिए ताकि जंबू कश्मीर को अनुछेद 370 मिले | अनुछेद 370 का मतलब क्या था ? अनुछेद 370 का मतलब था, एक देश दो झण्डा दो विधान ,अनुछेद 370 का मतलब था, एक देश दोहरी नागरिकता,अनुछेद 370 का मतलब था,तिरंगे के अपमान की आजादी |अनुछेद 370 का मतलब था, कश्मीर में शेष भारतियों पर पाबंदी |

आप वहाँ के नाहीं नागरिक हो सकते थे नाहीं वहाँ जमीन खरीद सकते थे |रक्षा, संचार, वितीय और विदेश मामलों को छोड़कर, भारत का कोई कानून जंबू कश्मीर मे लागू नहीं हो सकता था |इस प्रावधान में एक और विवादित पहलू यह था कि अगर जंबू कश्मीर की  महिला किसी पाकिस्तानी पुरुष से विवाह करती है , तो उस पाकिस्तानी नागरिक को भारत की  नागरिकता मिल जाती थी |

लेकिन जंबू कश्मीर की  लड़की भारत के किसी डसरे स्टेट के लड़के से शादी करती है तो कश्मीर में मिलने वाले सभी अधिकार उस लड़की से छीन लिए जाते है | क्या डबल स्टैंडर्ड हैं ! “हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं वदनाम वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता |

“अब नेहरू के सामने दोस्ती का इम्तहान था , संविधान तैयार हो रहे थे ,नेहरू की पैरवी हुई ,शेख अब्दुला को संविधान सभा में जगह मिल गई |संविधान सभा में जब बात कश्मीर की आई तो शेख अब्दुला ने कहा: जंबू कश्मीर को विशेष दर्जा चाहिए |अनुछेद 370 चाहिए अलग झण्डा और अलग विधान चाहिए |बाबा साहब अंबेडकर ने कहा: एक देश और दो विधान यह नहीं चलेगा |

पटेल जी भी यही चाहते थे,जो बाबा साहब चाहते थे |लेकिन नेहरू ने ना डॉ अंबेडकर की सुनी नहीं सरदार पटेल की |दोनों की बात खारिज कर दी और अपने दोस्त शेख अब्दुला को 370 का वरदान दे दिया |

इतना ही नहीं कुछ ही समय बाद धारा-35A जोड़कर रही सही कसर भी पूरी कर दी |परिणाम क्या हुआ |परिणाम यह हुआ की परिवारवाद और अलगाव वाद हावी हो गए |कुछ दशकों के बाद आतंकवाद भी पैर पसारने लगा |आतंकवाद पनपने लगा |

लहू से खेलते थे सब फ़रिस्ते सियासत फातिहा पर चल रही थी |धरती का स्वर्ग होकर भी हमारा कश्मीर पिछड़ता चला गया |सूफि परंपरा ख़ाक हो गई |पंडितों के हस्ती खेलती वस्तियाँ राख हो गई |जहां सन्नाटे सर फोड़ के सो जाते हैं उन मकानों में अजब लोग रहा करते थे |आज़ादी के 70 साल हो चुके थे |लेकिन ना वो बदले ना हम बदले किसे पता था की आज़ादी का 73वां अगस्त इतिहास बादल देगा |

चाचा नेहरू के 370 वाले उस फैसले को एक चाय वाला सुधार देगा ,5अगस्त 2019 की सुबह आई 370 से आज़ादी लाई |370 भी हट गया| अलगावाद का अंधेरा भी छट गया | कश्मीर के भटके हुवे नौजवानों को सद्बुद्धि मिल गई| डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के संकल्प को सिद्धि मिल गई |Kashmir Ka Kadwa Sachइसे भी पढ़ सकते हैं |

जहां बलिदान हुए मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है और कश्मीर सारा का सारा हमारा है |अब नया कश्मीर है नया सवेरा है वो आपका भी उतना है जितना हमारा है | द्वारा- मनोज मुंतशीर Kashmir Ka Kadwa Sach

दो पंक्तियाँ मेरी भी कविता के रूप में 

मोदी के सीने में छुपे दर्द

कविता 

दशकों से मेरे सीने में दर्द छुपा था यारों |
इंतजार था उस पल का कब हाथ आएगा म्हारों |

कितने अपने प्राण गवाए कितने वतन को छोड़े ,
कितने अपनी बहू बेटियों संघ साँसों को तोड़े |

अब चाय वाला नहीं हूँ मैं, राजा हूँ मैं देश का,
370 हटाके रहूँगा नक्सा बदलूँगा कश्मीर का |

कर दिखाया 370 हटाया सभी देखते रह गए ,
अमन चमन का बिगुल बजाया विरोधी तड़पते रह गए |

पहले हाथ बधे थे मेरे, अब हम खुला शेर हैं
घर भी दूंगा वापस भी लाऊँगा, बस थोड़ी-सी देर है |

वो सब करूंगा, जो कश्मीरी पंडितों के हक़ में है ,
फिर से स्वर्ग होगा कश्मीर बचा अब POK मन में है |

रचना -कृष्णावाती कुमारी 

  यह भी पढ़ें :

Note-अब सरकार से निवेदन है कि शीघ्र अति शीघ्र कश्मीर के पीड़ितों को उनका अधिकार उनके वंशजों को प्रदान करने की  कृपा करें |

निम्नवत मनोज मुंतशीर शुक्लाजी जी कि आवाज में सुनें  

 

 

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