Maharana Pratap Ki Jivani | वीर महाराणा प्रताप की कहानी,महारणा प्रताप के हाथी की अद्भुत कहानी,चेटक की बहादुरी,वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष राणा प्रताप से प्रभावित थे ,रण में राणा प्रताप से भागता है
Maharana Pratap Ki Jivani– हल्दी घाटी के युद्ध में बिना किसी सैनिक के महाराणा प्रताप अपने पराक्रमी चेतक पर सवार होकर निकल पड़े | उनके पीछे दो मुगल सैनिक लगे हुवे थे | परंतु चेतक ने अपना प्राक्रम दिखाते हुवे ,रास्ते में एक पहाड़ी बहते हुवे नाले को लांघकर राणाप्रताप को बचाया |जिसे मुगल सैनिक पार नहीं कर पाये |
चेतक द्वारा लगाई गई यह छलांग इतिहास में अमर हो गया |इस छलांग को विश्व इतिहास में नायाब माना जाता है | चेतक ने नाला तो लांघ दिया पर उसकी गति धीरे- धीरे कम होने लगी|
पीछे से मूंगलो की घोड़ों की टापें भी सुनाई दे रही थी |उसी समय राणाजी को अपनी मातृभाषा में सुनाई पड़ी, ‘नीला घोडा रा असवार’ | राणाजी ने पीछे पलटकर देखा :तो उन्हें एक ही अश्वरोही और वह था उनका सगा भाई शक्ति सिंह |
महाराणा प्रताप जी के साथ व्यक्तिगत मतभेद ने उसे देश द्रोही बना दिया था |जिसके कारण अकबर का सेवक बन गया था | जब भी किसी से युद्ध होता था तो वह अकबर की ओर से युद्ध लड़ता था |
जब उसने नीले घोड़े को बिना किसी सेवक के पहाड़ के तरफ जाते हुए देखा तो,वह भी उसके पीछे चुपचाप चल पड़ा |परंतु दोनों मुगलों को यमलोक पहुंचाने के लिए |जीवन में पहली बार दोनों भाई प्रेम से गले मिले थे |
इस बीच चेतक इमली के एक पेड़ के नीचे गिर पड़ा यहीं से शक्ति सिंह ने राणाजी को अपने घोड़े पर भेजा और और वे चेतक के पास रुके |चेतक लंगड़ा(खोड़ा) हो गया| इसीलिए पेड़ का नाम भी खोड़ी इमली पड़ गया |कहते हैं इमली के पेड़ का यह ठूँठ आज भी हल्दी घाट में उपस्थित है |
चेतक की बहादुरी
महारणा प्रताप के इतिहास के अनुसार माना जाता है कि उनका भाला 81 किलो वजन का था |और उनके छाती का कवच 72किलो का था |उनके कवच, ढाल,भाला और दो तलवारों को मिलाकर कुल वजन 208 किलो था |महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और उनकी लंबाई 7 फिट 5 इंच थी |
चेतक की बहादुरी का पता इस बात से चलता था कि हल्दीघाटी का युद्ध शुरू हुआ तो चेतक ने अकबर के सेनापति मान सिंह के हाथी के सिर पर पाँव रख दिये और प्रताप ने मान सिंह पर सीधे वार कर दिया |आपको बतादे दें कि चेतक के मुंह के आगे हाथी का सूंड लगाया जाता था |इसलिए की दुश्मन के हथियों को गुमराह किया जा सके |
वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष महाराणा प्रताप से प्रभावित थे
वियतनाम विश्व का एक छोटा सा देश है |जिसने अमेरिका जैसे बड़े बलशाली देश को झुका दिया |लगभग 20 वर्ष तक चले युद्ध में अमेरिका को पराजित कर दिया| अमेरिका को हराने के बाद एक पत्रकार ने वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष से एक सवाल पूछा …
जाहिर सी बात है प्रश्न यहीं होगा कि आप युद्ध कैसे जीते… ? या अमेरिका को कैसे झुका दिया.. ? पर उस प्रश्न का उत्तर सुनकर आप हैरान हो जाएंगे और आपका भी सीना गर्व से भर जाएगा |मेरे तो खुशी से आँसू निकल आए |ऐसे वीर को कोटि- कोटि नमन! जिन्हें देश तो क्या विदेश में भी लोग अपना आदर्श मानते है |
सभी देशों में बलशाली देश अमेरिका को हराने के लिए मैंने एक महान व श्रेष्ठ भारतीय राजा का चरित्र पढ़ा और उस जीवनी से मिली प्रेरणा व युद्ध नीति का प्रयोग कर हमने सरलता से विजय प्राप्त कर ली |
आगे पत्रकार ने पूछा…
कौन थे वो महाराजा ? साथियों जब मैंने पढ़ा मैं फुले नहीं समा रही हूँ |धन्य थे वे लोग जो उनके जमाने में पैदा हुए थे ,ऐसे महान महाराजा का दर्शन किए| काश हम भी होते ….. कोटि कोटि नमन …!!
वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष ने खड़े होकर जवाब दिया ….!! “वो थे भारत के राजस्थान में मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप सिंह !!” जब महारणा प्रताप का नाम लिया तो उनके आंखो में एक अलग सी वीरता भरी चमक थी |आगे उन्होंने कहा …”अगर ऐसे राजा ने हमारे देश में जन्म लिया होता तो, हमने सारे विश्व पर राज किया होता |”
कुछ वर्षों बाद उस राष्ट्राध्यक्ष की मृत्यु हो गयी |जानते हैं, अपनी समाधि पर उस राष्ट्राध्यक्ष ने क्या लिखवाया ….!! यह महाराणा प्रताप के एक शिष्य की समाधि है ….!!
वियतनाम के विदेशमंत्री जब भारत के दौरे पर आए तो क्या कहे …..
कालांतर में वियतनाम के विदेशमंत्री भारत के दौरे पर आए थे |पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार पहले लालकिला व बाद में गांधीजी की समाधि दिखलाई गई…. |यह सब देखते हुए उन्होने पूछा ….” महाराणा प्रताप जी की समाधि कहाँ है …?
तब भारत सरकार के अधिकारी चकित रह गए और उन्होंने वहाँ उदयपुर का उल्लेख किया…!! वियतनाम के विदेशमंत्री उदयपुर गए |वहाँ उन्हों ने समाधि के दर्शन करने के बाद समाधि के पास की मिट्टी उठाई और अपने बैग में भर लिया ,,
यह देखकर पत्रकार ने मिट्टी रखने का कारण पूछा …..!! जानते है विदेशमंत्रीजी ने क्या कहा “ये मिट्टी सुर वीरों की है ,,इस मिट्टी में एक माहन राजा ने जन्म लिया ,,इस मिट्टी को मैं अपने देश की मिट्टी में मिला दूंगा | …!!ताकि मेरे देश में भी ऐसे सुरवीर पैदा हों |
Biography Of Maharana Pratap Singh
नाम | कुँवर प्रताप जी (श्री महाराणा प्रताप जी ) |
जन्म | 9 मई 1540 ई . |
जन्म भूमि | कुंभलगढ़, राजस्थान |
पुण्य तिथि | 29 जनवरी 1597 ई. |
पिता | श्री महारणा उदय सिंह जी |
माता | राणी जीवत कंवर जी |
राज्य | मेवाड़ |
शासन काल | 1568- 1597 ई . |
शासन अवधि | 29 वर्ष |
वंश | सुर्यवंश |
राजवंश | सिसौदिया |
राजघराना | राजपूतना |
धार्मिक मान्यता | हिन्दू धर्म |
युद्ध | हल्दी घाटी |
राजधानी | उदयपुर |
पूर्वाधिकारी | महाराणा उदय सिंह |
उत्तराधिकारी | राणा अमर सिंह |
राणाजी के बारे में कुछ रोचक जानकारियाँ
- महाराणा प्रताप एक ही झटके में दुश्मन सैनिक को काट डालते थे |
- जब इब्रहीम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे तो ,तब अपनी माँ से पुछे कि माँ माँ हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आऊँगा ? माँ का जवाब था …उस महान देश की वीरभूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी मिट्टी लेकर आना ,जहां का राजा अपनी प्रजा के लिए इतना वफादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना …..!!लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था |“बूक ऑफ प्रेसिडेंट यू एस ए” किताब में आप पढ़ सकते हैं |
- आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित है |
- अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप हमारे सामने झुकते हैं तो आधा हिंदुस्तान के वारिश होंगे | परंतु बादशाहत अकबर कि होगी |लेकिन राणा जी ने अधीनता स्वीकार करने से माना कर दिया |
- हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे जबकि अकबर कि ओर से 85000 सैनिक सम्मिलित हुए |
- प्रताप जी के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है |
- प्रताप जी ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हाजरों लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात प्रताप जी के फौज के लिए तलवारें बनाई |इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गढ़िया लोहार कहा जाता है |मैं नमन करती हूँ ऐसे लोगों को !!
- हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ ज़मीनों में तलवारें पाई जाती रही |आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था |
- महाराणा प्रताप को शस्त्रों (हथियार ) की शिक्षा श्री जैमल मेड़तिया जी ने दी थी |जिन्होने 8000 राजपूत वीरों को लेकर 60000 मुगलों से लड़े थे |जिसमें 48000हजार मुगल मारे गए थे |
- महाराणा के मृत्यु पर अकबर भी रो पड़ा था |
- मेवाड़ के आदिवासी भील सामज ने अकबर के सेना को अपने तीरों से रौद डाला था |वो राणा जी को अपना बेटा मानते थे |राणा जी बिना भेद भाव के उनके साथ रहते थे |आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत तो दूसरी तरफ भील हैं |
- चेतक राणाजी को 26 फिट की दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ |उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया |
- मरने से पहले महारणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85% मेवाड़ जीत लिया |सोने चाँदी और महलों को छोड़कर वो 20साल मेवाड़ के जंगलों में रहे |
महाराणा प्रताप के हाथी की अद्भुत कहानी
साथियों इनके चेतक की वीरता की कहानी आपने पढ़ ही लिया| अब इनकी अद्भुत हाथी की कहानी भी आप पढ़ें : राणा जी के हाथी का नाम रामप्रसाद था| राम प्रसादजी के बारे में कुछ रोचक बातें निम्नवत पढ़ें …
राम प्रसाद हाथी का उल्लेख ‘अल -बदायुनी ‘ जो मुगलों की ओर से हल्दी घाटी के युद्ध में लड़ा था ने अपने एक ग्रंथ में लिखा है कि जब प्रताप पर अकबर ने चढ़ाई किया था तब उसने दो चीजों को ही बंदी बनाने कि मांग की थी |एक तो खुद महाराणा प्रताप को और दूसरा उनका रामप्रसाद नाम का हाथी |
आगे अल-बदायुनी लिखता है, कि वो हाथी इतना समझदार व ताकतवर था कि उसने हल्दी घाटी के युद्ध में अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था |फिर लिखते हैं कि उस हाथी को पकड़ने के लिए हमने 7 सात बड़े हथियों का एक चक्रव्यूहु बनाया और उसपर 14 महावतों को बैठाया |तब कहीं जाकर उसे बंदी बना पाए |
रामप्रसाद हाथी की स्वामी भक्ति पढ़िये :
अब उस हाथी को अकबर के पास पेश किया गया तब अकबर ने उसका नाम पीर प्रसाद रखा |रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने और पानी दिया |पर स्वामी भक्त हाथी ने नहीं तो गन्ने खाये और नाही पानी पिया |18 दिन तक मुगलों का नहीं दाना खाया नाही पानी पिया और रामप्रसाद शहीद हो गया |
तब अकबर ने कहा था कि जिसके हाथी को मैं नहीं झुका पाया तो महारणा प्रताप को क्या झुका पाऊँगा |ऐसे ऐसे देश भक्त चेतक और रामप्रसाद जैसे जानवर थे |ऐसे देश में जन्म लेने पर हमें गर्व है |आपको भी न !
FAQ:
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