Shani Chalisa Lyrics In Hindi| शनि के साढ़े साति में करें ये काम
Shani Chalisa Lyrics In Hindi – यदि आप शनि देव के प्रकोप साढ़े साती से ग्रसित हैं तो प्रति दिन शनि चालीसा का पाठ पीपल के पेड़ के निचे बैठ कर करें |
शनिदेव की उपासना से आपको आपको विशेष लाभा मिलेगा और आप के ग्रह दोष का असर कम हो जाता हैं |शनि देव को झूठ बिलकुल पसंद नहीं |शनिदेव न्याय के देवता हैं |यह अन्याय बिलकुल पसंद नहीं करते |इसलिए आप इस समय किसी का अहित ना सोचें न करें| जितना हो सके आप लोगों का भला करें सहयोग करें |असाहाय की मदद करें |
पौराणिक मान्यता के अनुसार शनिदेव अपने भक्त को उसके कर्म के अनुसार फल देते हैं |अब आइये शनि के साढ़े साती से निजात पाने के लिए यह शनि चालीसा का पाठ प्रति दिन पीपल के पेड़ की निचे करें | निम्नवत शनि चालीसा शुद्ध शुद्ध लिखा गया है :-
शनि चालीसा लिरिक्स :Shani Chalisa Lyrics
||दोहा ||
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल कारन कृपाल |
दिनन के दुःख दूर करी, कीजे नाथ निहाल ||
जय जय श्री शनिदेव प्रभु , सुनहूँ विनय महाराज |
करहूँ कृपा हे रवि तनय, रखाहूँ जन की लाज ||
जयति जयति शनिदेव दयाला,करत सदा भक्तन प्रति पाला ||
चारी भुजा तनु श्याम विराजे माथे रतन मुकुट छवि सजे ||
परम विशाल मनोहर भाला ,टेढ़ी दृष्टि भृकुटी विकराला ||
कुंडल श्रवण चमचम चमके, हिये माल मुक्तन मणि दमके ||
कर में गदा त्रिशूल कुठारा ,पल बिच करें अरिहीं संहारा||
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन ,यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन ||
सौरी मंद शनि दस नामा,भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ||
जापर प्रभु प्रसन्न हवें जाहीं ,रंकहूँ राव करैं क्षण माहीं ||
पर्वत हूँ त्रिण होई निहारत ,त्रिनहू को पर्वत डारत ||
राज मिळत बन राम हिन् दीन्हयो,कैकेहूँ की मति हरि लिन्हयों||
बनहूँ में मृग कपट दिखाई ,मातु जानकी गई चुराई ||
लखनहीं शक्ति विकल करी डारा,माचिका दल में हाहाकारा ||
रावण की गति मति बौराई,राम चन्द्र सों बैर बढाई||
दियो किट करी कंचन लंका ,बजी बजरंग वीर को डंका ||
नृप विक्रम पर तुहिन पगु धारा,चित्र मयूर निगली गे हारा ||
हार नौलखा लगियो चोरी ,हाथ पैर डरवायों तोंरी ||
भरी दशा निकृष्ट दिखायो ,तेलहिं घर कोल्हूँ चलवायो ||
विनय राग दीपक महँ कीन्हयों ,तब प्रसन्न प्रभु ह्वौ सुख दीन्हयों ||
हरिश्चान्द्र्हूँ नृप नारी बिकानी, आपहुं भरे डोम घर पानी ||
तैसे नल पर दशा सिरानी, भूंजी मीन कूद गई पानी ||
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई,पार्वती को सती कराई ||
तनिक विलोकत हिं करी रिसा,नभ उड़ी गयो गौरी सूत सीसा ||
पांडव पर भई दशा तुम्हारी , बची द्रौपदी हॉट उघारी ||
कौरव की भी गति मति मारी ,युद्ध महाभारत की करि डारी||
रवि कहँ मुख महं धरी ततकाला,लेकर कुड़ी परयो पताला||
शेष देव-लखी विनती लाई,रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ||
वहां प्रभु के सात सुजाना ,जग दिग्गजगर्दभ मृग स्वाना ||
जम्बुक सिंह आदि नख धारी,सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ||
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवें ,हय ते सुख सम्पति उपजावें ||
गर्दभ हानि करे बहु काजा,सिंह सिद्ध कर राज समाजा ||
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारे,मृग दें कष्ट प्राण संघारे ||
जब आवही परभू स्वान सवारी,चोरी आदि होय डर भारी ||
तैसहि चारी चरण यह नामा,स्वर्ण लौह चंडी और तामा||
लौह चरण पर जब पभु आवें,धन जन सम्पति नष्ट करावें||
समता ताम्र रजत शुभकारी ,स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी ||
जो यह शनि चरित्र नित गावे ,कबहूँ न दशा निकृष्ट सातवें ||
अद्भुत नाथ दिखावें लीला, करैं शत्रु के नशी बलि ढीला ||
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई, विविध शनि ग्रह शांति कराई||
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत,दीप दान दें बहु सुख पावत ||
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा , शनि सुमिरत सुख हॉट प्रकाशा ||
यह भी पढ़ें
||दोहा ||
पाठ शनिश्चर देव को ,जो हों भक्त तैयार ||
करत पाठ चालीस दिन , हों भवसागर पार ||
आरती श्री शनिदेव जी की|shanidev ki aarti
जय जय श्री शनिदेव भक्तन के हितकारी |
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ||जय जय ….
श्याम अंक बक्र दृष्टि चतुर्भुजा धारी |
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ||जय जय ….
कृट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी |
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ||जय जय …
मोदक मिष्ठान पान चढत है सुपारी |
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ||जय जय …
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरिन नर नारी
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण है तुम्हारी ||जय जय ….
शनि aarti सुनने के लिए aarti पर क्लिक करे
शनि भगवान के १०८/108 नाम| Shani dev ke108naam
ॐ शनैश्चराय नम: ॐ सुर लोक विहारिने नम:
ॐ शान्ताय नम: ॐ सुखासनोपविष्ॐटाय नम:
ॐ सर्वाभीष्टप्रदायिने नम : ॐसुन्दराय नम:
ॐ शरण्याय नम: ॐ घनाय नम:
ॐ वरेण्याय नम: ॐ घनरुपाय नम:
ॐ सर्वेशाय नम: ॐ घनाभारण धरिने नम:
ॐ सौम्याय नम: ॐ घनसारविलेपनाय नम:
ॐ सुरवन्द्द्याय नम: ॐ खद्योताय नम:
ॐ मन्दाय नम: ॐ नीलवर्णाय नम:
ॐ मन्दचेष्टाय नम: ॐ नित्याय नम:
ॐ महनीय गुणात्मने नम: ॐ नीलांजननिभाय नम:
ॐ मर्त्यपावनपादय नम: ॐ नीलाम्बर विभुशाय नम:
ॐ महेशाय नम: ॐ निश्चलाय नम:
ॐ छाया पुत्राय नम: ॐ विधि रूपाय नम:
ॐ शर्वाय नम: ॐ वेद्दयाय नम:
ॐ शरतूणिरधरीधारीने नम: ॐ विरोधाधारभुमये नम:
ॐ चरस्थिरस्वभावाय नम: ॐ वेदास्पद स्वभावाय नम:
ॐ चंचलाय नम: ॐ वज्र देहाय नम:
ॐ वैराग्यदाय नम: ॐ गुणाध्याय नम:
ॐ वीराय नम: ॐ गोचराय नम:
ॐ वितरोगभयाय नम: ॐ अविद्द्यामूलनाशनाय नम:
ॐ विपत्परंपरेशाय नम: ॐ विद्याsविद्द्यास्व्रुपिने नम:
ॐ विश्ववन्द्द्याय नम: ॐ आयुष्यकारणाय नम:
ॐ गृध्रवाहनाय नम: ॐ आपदुध्द्त्रेनम:
ॐ गूढाय नम: ॐ विष्णुभक्ताय नम:
ॐ कूर्मान्गाय नम: ॐ वशिने नम:
ॐ कुरुपिने नम: ॐ विविधागमवेदिने नम:
ॐ कुत्सिताय नम: ॐ विधिस्तुत्याय नम:
ॐ वन्द्द्याय नम: ॐ मितभाषिने नम:
ॐ विरुपाक्षाय नम: ॐ अष्टौघनाशनाय नम:
ॐ वरिष्ठाय नम: ॐ आर्यपुष्टिदाय नम:
ॐ गरिष्ठाय नम: ॐ स्तुत्याय नम:
ॐ वज्रांकुशधराय नम: ॐ स्तोत्रगम्याय नम:
ॐ वरदाय नम: ॐ भक्ति वश्याय नम:
ॐ अभय हस्ताय नम: ॐ भानवे नम:
ॐ वामनाय नम: ॐ भानु पुत्राय नम:
ॐ ज्येष्ठापत्नीसमेताय नम: ॐ भव्याय नम:
ॐ श्रेष्ठाय नम: ॐ पावनाय नम:
ॐ धनुर्मंडलसंस्थाय नम: ॐ घन निलाम्बराय नम:
ॐ धनदाय नम: ॐ काठिन्यमानसाय नम:
ॐ धनुषमते नम: ॐ आर्यगणस्तुत्याय नम:
ॐ तनुप्रकाशदेहाय नम: ॐ नीलाछ्त्राय नम:
ॐ तामसाय नम: ॐ नित्याय नम:
ॐ अशेषजनवन्द्ध्याय नम: ॐ निर्गुणाय नम:
ॐ विशेष फलदयिने नम: ॐ गुणात्मने नम:
ॐ वशीकृत जनेशाय नम: ॐ निरामयाय नम:
ॐ पशूनान्पतये नम: ॐ निन्द्द्याय नम:
ॐ खेचराय नम: ॐ वन्दनीययाय नम:
ॐ धीराय नम: ॐ कामक्रोधाकराय नम:
ॐ दिव्य देहाय नम: ॐ कलत्रपुत्रशत्रुत्व कारणाय नम:
ॐ दीनार्तिहरणाय नम: ॐ परिपोषित भक्ताय नम:
ॐ दैन्यनाशनाय नम: ॐ परभीतिहराय नम:
ॐ आर्यजनगण्याय नम: ॐ भक्तसंघमनो भीष्ट फलदाय नम:
ॐ क्रूराय नम: ॐ क्रुर्चेष्टाय नम:
FAQ: