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Mata Rani Ki Utpati Kaise Hui

Mata Rani Ki Utpati Kaise Hui|माता  की उत्पति

Mata Rani ki Utpati Kaise Hui – सहस्त्रों वर्ष पुर्व जब देव लोक और पृथ्वी लोक पर राक्षसों का पूर्ण अधिकार हो गाय था |तब देवता और समस्त मानस जन उनके अत्याचारों से दुखी थे |चारों ओर त्राहि -त्राहि मची हुई थी |राक्षस मांस मदिरा का सेवन कर ऋषि मुनियों की तपस्या को भंग कर रहे थे |समस्त भू लोक पर मानव का जीवन दुश्वार हो गया था |

उन्हीं दिनों दो और राक्षस उत्पन्न हो गए |जिनका नाम रंभ और कर्म था |इन दोनों में राक्षस प्रवृति  कम थी |ये दोनों भाई तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य जमाना चाहते थे |यानि कि अपना राज्य स्थापित करना चाहते थे | राज्य स्थापित करने हेतु दोनों भाई दिन रात तपस्या में लीन रहते थे |उनकी घोर तपस्या से ब्रहमाजी का सिंहासन डोलने लगा |राक्षस कितना भी सत्यकाय प्रवृति वाला क्यों न  हो, वह अपनी राक्षस प्रवृति छोड़ नहीं सकता |यह विचार कर ब्रहमाजी ने राजा इन्द्र को रंभ और कर्म की तपस्या को भंग करने के लिए भेजा |

राजा इन्द्र एक ब्राहमन का रूप धरण कर रंभ और कर्म की तपस्या स्थल के पास पहुंचे |वहाँ उन्होंने देखा की चारों तरफ मांस मदिरा लिए राक्षसों का समूह बैठा हुआ है |कई जगह तो राक्षस मनुष्यों को फाड़कर उनका रक्त पी रहे थे |अचानक महाराज इन्द्र ने सुना की आज राक्षस लोग बहुत खुश हैं क्योंकि कल रंभ और कर्म की तपस्या पूर्ण हो जाएगी |तथा स्वयं ब्रहमाजी को उन्हें वरदान देने के लिए आना पड़ेगा | उस समय रंभ और कर्म तीनों लोकों का राज्य वरदान में मांग लेंगे |हमारी जीत होगी ,देवता जंगलों में छुपते फिरेंगे |मांस मदिरा की कोई कमी नहीं होगी |

यह सुनकर महाराज इन्द्र अत्यंत क्रोधित हो गए |जिससे समस्त संसार में ऐसा लगा जैसे भयंकर भूचाल आ गया |नदियों के रास्ते बादल गए |अनेकों वृक्ष गिर गए व समस्त दिशाओं में त्राहि- त्राहि मच गया |इन्द्र रंभ और कर्म को देख आश्चर्य चकित हो गए क्योंकि रंभ और कर्म अपनी तपस्या में लीन थे |यह देखकर इन्द्र्देव घबरा उठे तत्पश्चात उन्होंने ब्रहमा जी को स्मरण कर अपना सुदर्शन चक्र तपस्या स्थल की ओर छोड़ दिया | सुदर्शन चक्र ने तपस्या स्थल का 3 चकर लिए तथा चौथे चकर के प्रारंभ में ही कर्म का सिर धड़ से अलग कर दिया |वह तपस्या स्थल पर हवन कुंड में जा गिरा |

इन्द्र के अंतर्ध्यान  होने से पूर्व मांस की सड़न से रंभ की तपस्या भंग हो गयी तथा उसने अंतर्ध्यान होते हुवे इन्द्र को देख लिया था |रंभ  राक्षस होते हुवे भी शांत प्रवृति का था |परंतु कर्म ठीक उसके विपरित राक्षस प्रवृति का था |रंभ अपने भाई कर्म की मृत्यु से अत्यंत दुखी हो गया था |तब उसने उसी यज्ञ कुंड में जान देने की ठान ली |अग्नि देव ने यह देखकर सोचा कि एक अनर्थ तो हो चुका |वह पापी अनजाने में ही स्वर्ग पहुँच गया |वहाँ न जाने देवताओं पर कितने जुल्म करेगा |यदि रंभ ने भी यज्ञ कुंड में अपना शीश चढा दिया तो यह दूसरा अनर्थ हो जाएगा |इसीलिए अग्निदेव रंभ के समुख प्रकट होकर बोले :रे मूर्ख आत्महत्या करना घोर पाप होता है |

वह बोला- प्रभु  ! आपसे क्या छुपा है |मेरे भाई की स्वयं इन्द्र ने  हत्या कर लोप हो चुके हैं |मेरी कोई संतान नहीं है |मेरा जीवन बेकार है |आप मेरे इस कष्ट का कोई उपाय बताएं |अग्निदेव ने उसे वरदान दिया और कहा :ठीक 9वे महीने तुम्हें पुत्र की  प्राप्ति होगी |यह वरदान सुनकर रंभ अपने भाई की मृत्यु को भूल गया |उसने इस यज्ञ की समाप्ति की घोषणा कर दी| इस प्रकार सभी देवतागण इस संकट से राहत की सांस ली |ठीक 9महीने बाद अग्निदेव के वरदान के अनुसार रंभ को एक पुत्र की प्राप्ति हुई |जिसका नाम उसने महिषासुर रखा |

महिषासुर वध-

महिषासुर समय के साथ बड़ा होता गया |चूंकि राक्षस प्रवृति के कारण क्रूरता और अमनुष्यता उसमे कूट कूट कर भरा हुआ था |लेकिन इन बातों के विपरित वह अत्यंत भक्तिवान भी था |उसके मन में भी अपने पिता के जैसे यह इच्छा थी की वह तीनों लोकों पर राज करें |अपनी इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए वह अनेकों वर्षों तक तपस्या में लीन रहा | इस घोर तपस्या के पीछे उसकी यहीं भावना थी कि ब्रहमाजी को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त करें और समस्त लोकों में अपना समराज्य साथपित कररें |ताकि देवताओं का सर्वनाश कर सके |

उसकी घोर तपस्या से ब्रहमाजी अत्यंत प्रसन्न हुवे और एक दिन उसके सामने प्रकट हो गए | फिर क्या, उससे वरदान मांगने के लिए कहा – वरदान की  बात सुनकर महिषासुर खुशी से झूमने लगा |उसने पूर्ण सूझ बूझ के साथ ब्रहमाजी से हाथ जोड़कर कहा -हे भगवान !आप मुझे यह शक्ति दें कि मैं अपना सारा शरीर इच्छानुसार विस्तार ,फैलाव ,सूक्ष्म व रूप बदल सकूँ और मुझे कोई नहीं मार सके |राक्षस चाहें कितना भी धार्मिक प्रवृति वाला क्यों न हो ,उसकी आत्मा कभी शुद्ध नहीं हो सकती |

अब ब्रहमाजी को यह अहसास हुआ कि मैंने इसे वरदान मांगने की  अनुमति देकर कितना अनुचित किया | परंतु ब्रहमा जी का वरदान अटल था |इसीलिए ब्रहमजी ने कहा -मूर्ख जो प्राणी संसार में जन्म लिया है |उसे एक दिन मृत्यु को प्राप्त होना ही है |अतः कुछ और वरदान मांग |तब उसने ब्रहमजी से दूसरी वरदान यह मांगा की  मेरी मृत्यु किसी कुँवारी कन्या के हाथों हो | तथास्तु कहकर ब्रहमाजी अंतर्ध्यान हो गए |

अब इस वरदान को  पाकर महिषासुर अति प्रसन्न हो गया |जब समस्त देवताओं में इतनी शक्ति नहीं रहेगी की मुझसे लोहा लें तो ,कुँवारी कन्या में इतनी शक्ति कहाँ से आएंगी |हा हा हा हा |महिषासुर ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया |भू लोक वासियों तथा समस्त देवताओं पर अत्याचार करने लगा |देवता पराजित होने लगे |स्वयं महाराज इन्द्र की  सेना जिसमें करोणों हाथी ,लाखों रथ ,करोणों योद्धा थे |इतना हीं नहीं देवतागण भी शामिल थे |100वर्षों तक महिषासुर और इन्द्र में युद्ध चलता रहा |जिसमें समस्त राक्षस मौत के गोद में सों गए |परंतु महिषासुर की  मृत्यु नहीं हो सकी क्योंकि वह कई रूप धारण कर लेता था |

Durgaji ki utpati kaise hui|दुर्गाजी जी की उत्पति कैसे हुई

अपनी सेना की  इस तरह संघार और परास्त देख इन्द्र भगवान अपनी पराजय स्वीकार कर लोप हो गए |महिषासुर उनके सिंहासन पर विराजमान हो गया |हार कर सभी देवगण ब्रहमाजी के पास गए |महिषासुर के इस विनाशकारी लीला के अंत के लिए प्रार्थना की|परंतु ब्रहमाजी ने कहा : मैं आप सबकी इसमें  कोई सहायता नहीं कर सकता |आइए हमारे साथ चलते हैं शंकर जी के पास |वही हमारी सहायता कर सकते हैं |सारे देवता शंकरजी का ध्यान कर प्रार्थना करने लगे
देवताओं की करुणा गाथा से शंकरजी के मस्तक से बिजली कड़कने लगी |सभी देवताओं का तेज एकत्रित हो गया जिस तेज से महा शक्ति का जन्म हुआ |

जिन देवताओं के तेज से देवी  के प्रत्येक अंग का निर्माण हुआ ,उन देवताओं का नाम निमन्वत है –

देवताओं के नाम

शंकरजी

यमराज

विष्णु

चंद्रमा

वरुण

पृथ्वी

ब्रहमा

सूर्य

वसु

प्रजापति

अग्नि

संध्या

वायु

देवी के अंग

मुख

केश

भुजाएँ

स्तन

जंघा

नितम्ब

चरण

दोनों पैरों की अंगुलियाँ

दोनों हाथों की अंगुलियाँ

दांत

दोनों नेत्र

भौहें

कान

 

तब जाकर महा शक्ति के विभिन्न अंग बने |सभी देवता महाशक्ति के दर्शन मात्र से आत्म विभोर हो गए |उनके लिए निम्न प्रकार के आभूषण और अनेक शोभायुक्त साज -सज्जा प्रदान किए |

अस्त्र शस्त्र –

शिव ने त्रिशूल ,विष्णु ने चक्र,वरुण ने दिव्य शंख और पाश ,अग्नि ने शक्ति व बाण से भरे तरकश ,इन्द्र ने बज्र,यमराज ने काल दंड , प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला ,ब्रहमाजी ने कमंडल ,सूर्य ने रोम कूपो में किरणें,समुन्द्र ने उज्ज्वल हार ,कभी न फटनेवाले वस्त्र ,चूड़ामणि ,दो कुंडल ,हाथों के कंगन ,दोनों भुजाओं के मयूर ,पैरों के नूपूर,गले की हसली और दसों अंगुलियों के लिए रत्न जड़ित अंगूठियाँ दिया | इस प्रकार सभी देवता गण माता रानी  को सुसज्जित किए और महिषासुर के बद्ध के लिए गुहार लगाई |

जब महा शक्ति शेर पर सवार होकर  महिषासुर के बद्ध हेतु प्रस्थान कीं तो, सभी देवता उन्हें प्रणाम किए और महाशक्ति की जय कारा लगाई |माता रानी के भयंकर गर्जना से धरती आसमान डोल उठा |यह देखकर महिषासुर अत्यंत आश्चर्य में  पड़ गया |परंतु देखा की एक स्त्री शेर पर सवार होकर उसे मारने के लिए आ रही है,तो वह अटहास करने लगा |माता रानी महिषासुर के पास जाकर बोलीं -हे ! मूर्ख तेरा अंत आ गया है |अभी से भी दुस्ट कर्म छोडकर नर्क भागी बन जा |इसी में तेरा कल्याण है |महिषासुर  माता की यह बात सुनकर क्रोधित होकर बोला -जब सारे देवता मुझे नहीं मार पाये तो ,तुम अबला क्या मारेगी |तब माता क्रोधित होकर विकराल रूप धारण की और सारा भू मण्डल डोल उठा | महाशक्ति ने महिषासुर के सभी महाबलियों को चिक्षुर ,चामर  उसके  करोणों सेना और रथों के साथ मार गिराया |

महिषासुर बद्ध –

अंत में महिषासुर भैसा का रूप धरण कर माता के सामने प्रकट हो गया |माता उसका यह रूप देख अति क्रोधित हो गयी और बोलीं -अब तेरा अंत समय आ गया |महिषासुर हंसकर बोला – मैं तो अमर  हूँ |मुझे कोई नहीं मर सकता | माता रानी ने कहा -यादकर मूर्ख ब्रहमाजी के दिये हुवे वरदान को जो तुम्हें उन्होंने  दिया था |तुम्हारी मृत्यु एक कुँवारी स्त्री के हाथों  होगी |मैं वहीं कुँवारी स्त्री हूँ|महा शक्ति के मुख से यह सुनकर घबराहट के साथ इधर उधर भागने लगा |माता रानी क्रोधित होकर उस पर पाश फेंकी|पाश से बचते हुवे जैसे ही महा दैत्य का रूप लेने वाला था, तभी माता ने उसके कंठ पर अपना एक पैर रख दिया और त्रिशूल से प्रहार किया |अभी आधा ही रूप बदला था की देवी ने उसका शीश तलवार से अलग कर दिया |सभी देवताओं में खुशी की लहर दौड़ पड़ी चारों तरफ महा शक्ति की जय घोष होने लगा |

देवताओं ने महाशक्ति के आगे हाथ जोड़कर नतमस्तक हो बोले कि, हे माते! हम जब भी हम आपका  स्मरण करें ,आप हमें दर्शन देकर कृतार्थ करें |माता शक्ति ने देवताओं को अस्वस्थ करते हुवे कहा कि ,आप सभी जब भी  मुझे  याद करेंगें पलभर में प्रकट होकर आप सभी के संकटों का  निवारण करूंगी | और माता अंतर्ध्यान हो गईं | प्रेम से  बोलिए महा शक्ति माता रानी की  जय |

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इस सुंदर भजन को सुनें और भरपूर आनद उठावें:

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