मैं आज की नारी हूँ I Am Moderna Lady.
मैं आज की नारी हूं I( I am modern women .)
मैं आज की नारी हूँI-मेरे आवास से कुछ ही कदम पर पार्क है I पार्क में पूरे समय आवा जाही लगा रहता है I उस पार्क में शाम को मैं भी प्रतिदिन टहलने जाती हूँ I टहलने के समय साथ में मेरी पड़ोसन भी जाती हैं I टहलते हुए जैसे ही एक कोने में पहुंचे कि अचानक एक महिला की जोर से आवाज आई I
मैं कोई शकुन्तला नहीं हूं |
तुमको यहां का पता कैसे मिला ? मोहन चुपचाप शीला की बातें सुन रहा था I शीला बोले जा रही थी, बोले जा रही थी I तब कुछ देर बाद मोहन बोलता है I कुछ मैं भी बोलू, अगर तुम चाहो तो I तुम्हें याद होगा, मेरा एक दोस्त था राजन, उसने तुम्हें यहां रोज शाम को टहलने के समय देखा करता है I
उसी ने मुझे बताया कि, शीला श्याम पार्क में मुझे प्रति दिन शाम को टहलते अक्सर दिखती है I क्या बात है तुम दोनों अलग रहते हो क्या ? उसी ने तुम्हारा पता बताया I शीला खामोश रही क्या वहीं मोहन है, जो विपत्ति में डाल कर मुह मोड़ लिया! कुछ देर खामोश रहती है……..I फिर, बोली कि मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ I अब तुम्हें मेरे बच्चे को सबके सामने स्वीकार करना होगा I
तुम य़ह क्या कह रही हो ऐसा नहीं होना चाहिए…………..I अब मोहन गहन चिंतन में डूब जाता है……कुछ देर मौन रहने के बाद, मोहन शीला से कहता है: अभी यह सम्भव नहीं है I तुम जाकर किसी अस्पताल में………………..I शीला……क्या, क्या? तुम पागल हो गए हो I मैं तुम्हारी पत्नी हूं I मंदिर में विधिवत विवाह किए हो I हाँ ये सही है I परंतु अभी मुझे कुछ वक़्त दो I शीला कहती है, समय ही तो नहीं है I देखो परिवार के लिए भी कुछ जिम्मेदारियां होती है….. I
शिला कहती हैं- तुम्हारा कहने का मतलब क्या है? अब मैं सबको बताऊंगी , कि हमने विधिवत विवाह की है I परंतु हमारे और एक दोस्त के अलावा कौन जानता है?यह कहकर मोहन कुछ देर खामोश रहता है और वहां से चला जाता है I शीला खामोश आँखों में आंसू लिए मौन खड़ी रहती है …………I शीला उस दिन भी शादी के लिए मजबूर थी और आज भी मजबूर है I
अपने कोख में पलते बच्चे की हत्या……….I फुट फुट कर रोने लगती है I अपने को मोहन की पत्नी साबित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी I लेकिन शीला अपने आप को ही दोषी समझने लगी……..! बचपन मे ही माँ बाप को खो देने वाली शीला अपने चाचा चाचीजी को क्या बताएगी…. I मन ही मन कहीं दूर जाकर बच्चे के साथ नई जिंदगी शुरु करने की सोचने लगी…. तभी वक़्त ने साथ दिया और मनाली से शिमला में शीला को एक स्कूल में शिक्षिका की नौकरी मिल जाती है I
शीला मनाली में रहने लगती है I अब चार साल बाद……….l फिर चार साल बाद एक दिन अचानक मोहन आता है और बोलता है I शीला मुझे माफ कर दो! मोहन की आवाज़ शीला को वर्तमान में लौटा दिया I ” आखिर तुम्हें चार साल बाद मेरी याद कैसे और क्यों आई? मोहन कहता है… मेरी गलती की सजा मुझे परमात्मा ने दे दिया है I शादी के बाद ही हम सपरिवार दुर्घटना ग्रस्त हो गए I
मैंने सबकुछ खो दिया है I मैं ही एक आधे अधूरा बचा हूँ I अब मैं प्रायश्चित करना चाहता हूं….. I शीला! आधे अधूरे ? हां शीला मैं कभी बाप नहीं बन सकता I मोहन ने शीला से सहानुभूति की उम्मीद रखी I शीला को अब एक और झटका लगा और उसने समझने में तनिक भी देर नहीं की , कि मोहन यहां क्यों आया है I
शीला का स्वाभिमान और प्रबल हो उठा I उसने संभालते हुए उसने कहा- मोहन मैं आज की शीला हूँ I ऋषि पुत्री शकुंतला नहीं I तुम कौन हो?मैं तुम्हें नहीं जानती और एक झटके से वापस मुड़ गई I “इसी को कहते है जैसा को तैसा ” अब इस से संबंधित कुछ पंक्तियां आप सभी के सामने प्रस्तुत है-
कविता
प्रीत की अजब कहानी यारों-2
प्रीत की अजब कहानी
ज्यों संघ प्रीत करें ठग लीन्हो,
बीच भँवर में तज मोहे दीन्हो
अब झूठी प्रीति दिखानी यारों I
प्रीत की अजब कहानी यारों I
ऐसी प्रीत में डूब गई थी
लोक लाज सब त्याग दई थी ।
जन्म मरण का वचन लियो संघ ,
पल में मिथ्या हो जानी यारों I
प्रीत की अजब कहानी यारों I
निष्कर्ष –
मेरा मानना है, कि पुरुष हो या महिला प्रेम में एक दूसरे के प्रति, समर्पण होना चाहिए, नही तो उस संबंध का टूटना निश्चित होता है I जिन रिस्तों में एक दुसरे के प्रति समर्पण होता है , वह रिश्ता अटूट बंधन में समाहित रहता है I उम्मीद है आप सभी को पसंद आए।
धन्यवाद मित्रों
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