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Rani Laxmi Bai jivan parichay- Rani Laxmi Bai History 1857

Rani Laxmi Bai jivan parichay | रानी लक्ष्मी बाई जीवन परिचय और मणिकर्णिका, द क़्विन ऑफ झाँसी,झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी ,कविता [Rani Lakshmi Bai biography and Manikarnika, 

Rani Laxmi Bai Jivan Parichay-भारत की प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की विरांगना रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर1828 को काशी में एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण परिवार में हुआ था | जिन्हें प्यार से मन्नू भी कहा जाता था 

भारत की कई ऐसी नारियां जो हाथ में लेखनी लें तो वेदों के रचाएँ रच दें और हाथ में तलवार लें तो धरती का मानचित्र बदल दे| उन सभी में से एक थीं,महारानी रानी लक्ष्मी बाई |महाराजा गंगाधर राव के निधन के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार दत्तक पुत्र को झाँसी का वारिस मानने से इंकार कर दिया |

7 मार्च 1854 को झाँसी पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया |रानी ने अंग्रेजों द्वारा देने वाले पेंशन को अस्वीकार कर दिया | यहीं से स्वतन्त्रता की बीज प्रस्फुटित हुई |मेजर जेनरल Sir Hugh Rose अपनी हजारों की संख्या में आर्मी लेकर झाँसी पहुंचे |

रानी लक्ष्मी बाई और उनकी सेना ने खूब डट कर ब्रिटिस आर्मी का सामना किया |पूरे पाँच दिन तक उनको झाँसी के किले में घुसने नहीं दिया |रानी लक्ष्मी बाई को लड़ते हुए देख ब्रिटिस सेना स्तब्ध (आश्चर्य चकित) रह गई थी|उन्होंने कभी भी किसी लड़की को इस तरह लड़ते हुए नहीं देखा था |

रानी लक्ष्मी बाई अपने घोड़े की रस्सी दांतों के बीच दबाई हुई अपने दोनों हाथों से तलवार चला रही थी |एक साथ दोनों तरफ वार कर रही थी |लड़ाई दो हफ्तों तक चली और ब्रिटिस सरकार को पीछे हटना पड़ा |

ब्रिटिस आर्मी बार बार दोगुनी ताकत के साथ आ जाती थी | एक वक्त ऐसा आया कि अंग्रेज़ उन पर हाबी होने लगे |तब लक्ष्मी बाई कुछ अपने विश्वसनीय लोगों को साथ लेकर निकल गईं और ब्रिटिस आर्मी उनका पीछा करने लगी|

झाँसी की सेना लड़ते लड़ते थक गई थी |आखिकर अप्रैल 1858 में  अंग्रेजों ने झाँसी पर कब्जा कर लिया |रानी अपने कुछ भरोशेमंद साथियों के साथ फिरंगियों को चकमा देकर किले से निकलने में कामयाब हो गईं |

रानी और उनकी सेना काल्पी पहुंची और उनके द्वारा ग्वालियर के किले पर कब्जा करने की योजना बनाई गई |वहाँ ग्वालियर के राजा किसी भी हमले की तैयारी में नहीं थे |30 मई 1858 के दिन अचानक अपने सैनिकों के साथ ग्वालियर पर टूट पड़ी और 1 जून 1858 को रानी का ग्वालियर के किले पर कब्जा हो गया |

ग्वालियर अङ्ग्रेज़ी हुकूमत के लिए बहुत महत्वपूर्ण था |ग्वालियर के किले पर रानी लक्ष्मी बाई का अधिकार होना अंग्रेजों की बहुत बड़ी हार थी |अंग्रेजों ने ग्वालियर के किल्ले पर हमला कर दिया| रानी ने भीषण मार काट मचाई |बिजली की भाँति रानी अंग्रेजों का सफाया करती जा रही थीं |

ग्वालियर की लड़ाई का दूसरा दिन था| रानी लड़ते लड़ते अंग्रेजों से चारों तरफ से घिर गईं |वे एक नाले के पास आ पहुंची जहाँ से आगे जाने का कोई रास्ता नहीं था |जिसके कारण उनका घोड़ा नाले को पार नहीं कर पा रहा था |

रानी अकेली थीं और सैकड़ों अंग्रेज़ सैनिकों ने मिलकर रानी पर वार करना शुरू कर दिया| रानी घायल होकर गिर पड़ी |लेकिन उन्होंने  अंग्रेज़ सैनिकों को जाने नहीं दिया| मरते मरते भी उन्होंने उन सभी को मार गिराया |

रानी लक्ष्मी बही कतई नहीं चाहती थीं कि उनके मरने के बाद अंग्रेज़ उनके शरीर को स्पर्श करें |वहीं पास में एक साधू बाबा की कुटिया थी| रानी लक्ष्मी बाई ने साधू बाबा से विनती कीं कि उन्हें शीघ्र जला दीजिये |ताकि मेरे शरीर को फिरंगी हाथ नहीं  लगा सकें | इस तरह 18 जून 1858 को रानी वीर गति को प्राप्त हो गईं | 

रानी लक्ष्मी बाई का  जीवन परिचय (Rani Laxmi Bai Jivan Parichay )

नाम मणिकर्णिका तांबे   [विवाह के बाद लक्ष्मी बाई नेवलेकर ]
उपनाम मनु, छबीली
जन्म दिन 19 नवंबर 1828
जन्म स्थान काशी ( वाराणसी )
पिता का नाम मोरोपंत तांबे
माता का नाम भागिरथी सापरे
पति का नाम झाँसी नरेश महाराजा गंगाधर राव नेवलेकर
पुत्र दामोदर राव, आनंद राव [द्तक पुत्र ]
बिवाह सन 1842
निधन 17- 18 जून 1858 (उम्र 29 वर्ष ) कोटा की सराय , ग्वालियर

 

झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय:(Rani Laxmi Bai Jivan Parichay )

रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1928 को वाराणसी में महाराष्ट्रीयन कराडे ब्राह्मण परिवार में हुआ था |उनके पिता का नाम मोरोपन्त तांबे और माता का नाम भागीरथी बाई था | भागीरथी बाई बहुत ही चतुर,विद्वान और सुशील महिला थीं |

माता पिता ने बचपन में लक्ष्मी बाई का नाम मणिकर्णिका रखा था| लेकिन उन्हें प्यार से “मनु” के नाम से पुकारते थे| मनु जब 4 माह की थीं |तभी उनकी माता भागीरथी बाई का निधन हो गया|रानी लक्ष्मी बाई का बालपन  उनके नाना के घर में बिता |

लक्ष्मी बाई के पिता मोरोपंत तांबे मराठा बाजीराव की सेवा में थे |माता के निधन के बाद उनके पिता ने ही उनकी परवरिस की | मनु बहुत ही परंपरागत तरीके से पली बढ़ीं | मनु की देखभाल करने के लिए घर में कोई नहीं था| इसलिए उनके पिता मोरोपंत मनु को भी अपने साथ वजीराव के दरबार में ले जाते थे |

मनु काफी सुंदर और चुलबुली थी |उन्होने सबका मन मोह लिया था | वजीराव मनु को प्यार से छबीली के नाम से बुलाते थे| मनु की शिक्षा भी वही पर पेशवा वजीराव के बच्चों के साथ हुई |पेशवा वजीराव के बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक आते थे|

मनु भी उन्हीं लोगों के साथ पढ़ती थी | पिता मनु को हाथियों और घोड़ों की सवारी के साथ साथ तलवारबाजी एवं और भी हथियारों का प्रभावी ढंग से उपयोग करना सिखाया |मनु मात्र सात सालों में हीं घुड़सवारी में निपुण हो गयी थी|यह भी पढ़ें:महाराणा प्रताप की जीवनी 

विवाह :

मणिकर्णिका का विवाह सन 1842 में झाँसी के महाराज गंगाधर राव नेवालेकर से हो गया |तब वह झाँसी की रानी बन गईं| विवाह  के पश्चात हीं उनका नाम मनिकणिका से लक्ष्मी बाई हो गया |तब से वह रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जानी जाने लगीं |

शादी के कुछ सालों बाद सन 1851 में  रानी लक्ष्मी बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया| पर कुछ हीं महीनों में उनके पुत्र की मृत्यु हो गयी  |पुत्र के मृत्यु के पाश्चात् उनके पति महाराज गंगाधर राव पुत्र वियोग के कारण अस्वस्थ रहने लगे|

ऐसी स्थिति  देखकर उन्हें झाँसी राज्य के वारिस के लिए किसी बच्चे को गोद लेने की सलाह दी गयी| जिसे महाराज गंगाधर राव ने मान लिया और उन्होंने अपने ही परिवार से आनंद नामक एक बालक को अपना दत्तक पुत्र बनाया |

जिसका नाम  दामोदर राव रखा गया|परंतु गंगाधर राव पुत्र बियोग को सहन नहीं कर सके और 21 नवम्बर 1853 को उनकी मृत्यु हो गयी| |पूरा राज्य शोक में डूब गया |यह भी पढ़ें गुरु शंकराचार्य की जीवनी 

संघर्ष का प्रारंभ:
 मेरी  झाँसी  नहीं  दूंगी- 7  मार्च,  1854  को  ब्रिटिश  सरकार  ने  एक  सरकारी  गजट  जारी  किया और उसमें  झाँसी  को  ब्रिटिश  साम्राज्य  में  मिलाने का हुकुम दिया |लेकिन रानी लक्ष्मीबाई को ब्रिटिश अफसर  एलिस  द्वारा  यह हुकुम  मिलने  पर उन्हें स्वीकार नहीं हुआ |
 उन्होंने उसके हुक्म को अस्वीकार कर दिया और कहा: ‘ मेरी  झाँसी  नहीं  दूंगी’और  अब  झाँसी  विद्रोह  का मुख्य केन्द्र  बन  गया| रानी  लक्ष्मीबाई ने  कुछ  अन्य  राज्यों के सहयोग  से  एक  सेना  तैयार  की|जिसमें  महिला और पुरुष दोनों शामिल थे |
सभी को  युध्द  में  लड़ने  के  लिए  प्रशिक्षण  दिया  गया  था|  उनकी  सेना  में  अनेक   महारथी  भी  थे:  जैसे :  गुलाम  खान,  दोस्त  खान,  खुदा  बक्श, हजरत महल , सुन्दर – मुन्दर,  काशी  बाई,  लाला  भाऊ  बक्शी,  मोतीबाई,  दीवान  रघुनाथ  सिंह,  दीवान  जवाहर  सिंह,  आदि.  उनकी  सेना  में  लगभग  14,000  सैनिक  थे |
 मार्च, 1858  में  अंग्रेजों  ने सर  ह्यू  रोज  के  नेतृत्व  में झाँसी  पर  हमला  कर  दिया  और  तब  झाँसी  की  ओर  से  तात्या  टोपे  के  नेतृत्व  में  20,000  सैनिकों  के  साथ अङ्ग्रेज़ी सैनिक के साथ  लड़ाई  लड़ी  गयी,  जो  लगभग  2  सप्ताह  तक  चली|
अंग्रेजी  सेना  किले  की  दीवार  को  तोड़ने  लगी और तोड़ने में  सफल भी हो गई |इस तरह ब्रिटिस सैनिक  नगर  पर  कब्ज़ा  कर  लिया|तत्पश्चात ब्रिटिश सरकार झाँसी पर कब्जा करने में कामयाब हो गई|
ब्रिटिश सैनिकों ने नगर  में  लूट-पाट मचाई | फिर  भी  रानी  लक्ष्मीबाई  किसी तरह अपने  पुत्र  दामोदर  राव  को  बचाने  में  सफल  रही|कुछ विश्वास पात्र सैनिकों के साथ किला से सुरक्षित दामोदर को लेकर बाहर निकाल गईं |

काल्पी  की  लड़ाई : इस युध्द में रानी हार के कारण उन्होंने 24 घंटों में 102 मील का सफ़र तय किया और अपनी सेना   के  साथ  काल्पी  पहुंची| कुछ  समय काल्पी  में वक्त गुजारीं, जहाँ वे ‘तात्या टोपे’ के साथ थी|तब वहाँ के  पेशवा ने परिस्थिति  को  समझ  कर  उन्हें  शरण दी और अपना सैन्य बल भी दिये |यह भी पढ़ें: योगी आदित्य नाथ की जीवनी 

लेकिन ब्रिटिश सरकार से ,22  मई,  1858  को  सर ह्यू रोज  ने  अपनी सेना के साथ  काल्पी पर आक्रमण  कर  दिया|  तब  रानी  लक्ष्मीबाई ने  वीरता  और  रणनीति  पूर्वक  उन्हें  परास्त  किया |अंग्रेजों  को  पीछे  हटना  पड़ा|  कुछ  समय  पश्चात्  सर  ह्यू  रोज  ने  काल्पी  पर  फिर  से  हमला  किया  और  इस  बार  रानी  को  हार  का  सामना  करना  पड़ा|

युद्ध  में हारने  के  पश्चात्  राव  साहेब  पेशवा,  बन्दा  के  नवाब,  तात्या  टोपे,  रानी  लक्ष्मीबाई और  अन्य सभी  मुख्य  योध्दा  गोपालपुर में  एकत्र  हुए| रानी  ने  ग्वालियर  पर  अधिकार  प्राप्त  करने  का मसौरा दिया |

ताकि, वे अपने  लक्ष्य को पाने में  सफल  हो  सकें  और  वही  रानी  लक्ष्मीबाई और  तात्या  टोपे  ने  इस  प्रकार  गठित  एक  विद्रोही  सेना  के  साथ  मिलकर  ग्वालियर  पर  चढ़ाई  कर  दी|

वहाँ  इन्होंने  ग्वालियर  के  महाराजा  को  परास्त  किया और रणनीतिक  तरीके से ग्वालियर के किले पर जीत हासिल  की  और  ग्वालियर  का  राज्य  पेशवा  को  सौप  दिया |

रानी लक्ष्मीबाई की उपलब्धिया – Achievements of Rani Lakshmi Bai

  • पति गंगाधर राव  की मृत्यु के बाद रानी ने अपने राज्य झांसी की कमान अपने हाथ में लेने का निर्णय लीं | जिसमें  उन्हें अँग्रेजी सरकार  से और नजदीकी संस्थानों के राजाओं से बहुत बार विरोध और युध्द जैसे परिस्थिति का भी सामना करना पड़ा । परन्तु वो अंतिम समय तक थकी नहीं दुश्मनों से  डट कर सामना कीं और अंग्रेजों को अपना शासन मरते दम तक नहीं सौपीं|
  • सितम्बर 1857 में रानी के राज्य झांसी पर पड़ोसी राज्य ओरछा और दतिया के राजाओं ने आक्रमण किया था और उन्हें रानी के  सामने घुटने टेकना  पड़ा | परिणामतः दतिया और ओरछा के राजा को रानी का लोहा मानना पड़ा |
  • भारतीय इतिहास मे रानी लक्ष्मीबाई को शहीद वीरांगना के रूप मे पहचाना जाता है और क्यों नहीं, वीरांगना  के रूप में माना जाय ,जहां सभी मर्द सो रहे थे वहाँ एक नारी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ रही थी, जो साहस, शुर वीरता और नारी शक्ति के रूप में  आदर्श मानी जाती हैं ।
  • रानी लक्ष्मीबाई के अंग्रेजो के खिलाफ सशस्त्र लड़ाई के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नई ऊर्जा पैदा हुई |इतना हीं नहीं  सभी को बल देने का कार्य किया और यहाँ से जन जन के रगो में आजादी की लहर दौड़ पड़ी | बच्चा -बच्चा जान देने के लिए तैयार हो गया|जिसका परिणाम आज हम आजाद हैं |
  • रानी ने अपने राज्य में  सेना को तैयार करने पर और उसे मजबूत करने पर बहुत ज्यादा कार्य किया | जिसमें उन्होंने महिलाओं को भी सेना में शामिल किया था। अंग्रेज कैप्टन ह्यु रोज ने रानी लक्ष्मीबाई के बारे में गौरव भरे  शब्द कहे थे कि,”1857 के विद्रोह की रानी लक्ष्मीबाई सबसे खतरनाक विद्रोही के रूप मे सामने आयी थी| जिसने अपने सुझ बुझ, साहस और निडरता का परिचय देकर अंग्रेजों को जबर्दस्त टक्कर दिया था |” यह भी पढ़ें:राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की जीवनी 

रानी लक्ष्मी बाई की विशेषताएं – Features about Rani Laxmi Bai in Hindi

  • लक्ष्मी बाई प्रति दिन  योगाभ्यास करती थी |रानी लक्ष्मी बाई के दिनचर्या में योगाभ्यास शामिल था।
  • रानी लक्ष्मी बाई अपनी प्रजा से बेहद प्रेम करती थी और अपनी प्रजा का बेहद खयाल रखती थीं।
  • रानी लक्ष्मी बाई गुनहगारों को उचित सजा देने की हिम्मत रखती थी।
  • सैन्य कार्यों के लिए रानी लक्ष्मी बाई हमेशा उत्साहित रहती थी इसके साथ ही वे इन कार्यों में निपुण भी थीं ।
  • रानी लक्ष्मी बाई को घोडो़ं की भी अच्छी परख थी |उनकी घुड़सवारी की प्रशंसा बड़े-बड़े राजा भी करते थे।
  • लक्ष्मी बाई एक विरासत के रूप में रहेंगी जिनको भूलना नामुमकिन हैं |
  • एक सच्चा वीर कभी आपत्तियों से नही घबराता। उसका लक्ष्य हमेशा उदार और उच्च होता है। वह सदैव आत्मविश्वासी, स्वाभिमानी और धर्मनिष्ट होता है। ऐसी हमारी  वीरांगना झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई थीं |यह भी पढ़ें:कौन है इंडिया का युवा जज 

आज भी हमें याद  है वो बचपन की कविता, जिसे सुभाद्रा कुमारी चौहान ने अपने कर कमलों से लिखा हैं | रानी लक्ष्मी बाई का नाम आते ही हम सभी गुनगुना उठते हैं :

“सिहासन डोल उठा राजवंशो ने भृकुटी तानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी |”

इस महान विरांगना की कहानी को लिखते वक्त मेरी लेखनी मुझे इनके चरणों में समर्पित कुछ पंक्तियाँ लिखने के लिए विह्वल हो उठी क्योंकि जब रानी फिरंगियों से घिरी होंगी और उस समय उनके अन्तर्मन में क्या चल होगा… !! उसी भाव को कुछ पंक्तियों में पिरोया है | इनकी यादों में मेरी तरफ से यह कविता,उमीद है आपलोगों को पसंद आएगी जो निम्नवत है:-

कविता

झाँसी की रानी 

उम्र थी छोटी मेरी पर,ज़िम्मेदारी बहुत बड़ी थी |
इसीलिए तो इतनी बड़ी लड़ाई हमने लड़ी थी ||
अपनी भला कभी न सोचा, जन जन मेरा अपना था  |
रानी भले थी झाँसी की,पर आजाद भारत का सपना था ||

काश! उस वक्त भारत की,जनता नीद से जग जाती |
ले बरछी तीर कट्टार भाल, मेरे पीच्छे-पीच्छे आती ||
गर एक हो जाते तो,गोरों की बैंड बजाते पलभर में |
सब कुत्तों जैसे दुम दबाके, रण छोड़ भागते पल भर में ||

तब निश्चित सन् सैतालिस नहीं, संतावन में आजाद होते |
तब रानी बीच हमारे होतीं ,जन जन उनके दुलारे होते ||
तब सोचो अपना भारत, कितना समृद्ध बना होता |
सिरमौर भारत अपना होता, घर -घर खुशियों से सज जाता ||

रचना-कृष्णावाती कुमारी

FAQ:

निष्कर्ष -साथियों इस जीवन परिचय को लिखते हुए मेरा हृदय अत्यधिक व्यथित हुआ….!!!आप सभी को कैसा लगा जरूर लिखें और ज्यादे से ज्यादे इनके जन्म दिवस को सेलिब्रेट करें |

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