माँ तू है आधर जीवन का कविता|Mother is Base Life
माँ तू है आधर जीवन का कविता – बात कुछ यू ही सत्तर 70 के दशक की है। 5 या 6साल की उमर रही होगी। उस समय सारा गांव अन्न के लिए बारिश पर निर्भर हुआ करता था। पुरूष खेत से जो अन्नो पार्जन करते थे। घर की महिलायें उसे कूट पीस कर तैयार करती थी।
आपको बता दूं, कि उस समय धान से चावल ओखल मूसल और गेंहू से आटा चक्की द्वारा हाथ से महिलाएं तैयार करती थीं। यह कोई सुनी सुनाई कहानी नहीं है, मैं उसी मां की बेटी हूँ जो ये सारा काम करती थी।वे लोग बहूत ही भाग्यशाली हैं जिनके सिर पर माँ बाप की शाया हो |दुनिया में सभी रिस्ते झूठें हो सकते हैं |
पर माँ झूठी नहीं हो सकती |ऐसे कलियुग में यह शत प्रतिशत सत्य नहीं है |परंतु 99% निश्चित रूप से ऐसी माँ हैं जो अपने औलाद को दुखी नहीं देख सकतीं | बड़े किस्मत वाले होते हैं जिनकी माँ जीवित होती हैं |आज भी हम नहीं भले ॥वो तेरा जल्दी-जल्दी मिट्टी के चूल्हे पर रोटी बनाना !!
हाथ जलने के बाद भी तू जल्दी -जल्दी सबको बना के खिला देती |फिर अगले दिन की तैयारी में जुट जाती |कुछ भी तो नहीं भूले हम ! बरसात की रातें कितनी भयावनी होती जब छप्पर से एक भी बूंद बाहर नहीं जाता ….सभी बही बहनों को अपने आँचल में लेकर छुपा लेती थी…..|सुबह होते ही कभी इधर तो कभी उधर …..|
क्या-क्या बताऊँ… बड़े दुख झेलने के बाद किस्मत बदली| लेकिन जब सुख के दिन आए तो तुम दुनियाँ से चल बसी |आज किसे अपनी कविता सुनाऊँ ? कौन मेरी तारीफ करेगा ?किसे मुझपर गुरूर होगा |कौन मुझे रानी बिटिया कहेगा ? तेरे दुख के दिन तो अनगिनत हैं |लज्जा आती है, लोग क्या कहेंगे ? प्रश्न चिन्ह है ?
लेकिन आज मैं सभी प्रश्न चिन्ह को हटा कर दुनियाँ को बताना चाहती हूँ, कि मेरी माँ उन सभी माओं मे है जो अपने औलाद के आगे अपने दर्द को भूल कर ख्याल रखती थी |कभी उफ़ तक नहीं की|सुबह से शाम हो जाती ………दुनिया माँ के अलावा अपने बच्चों का ख्याल कोई नहीं रख सकता ……
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कविता
माँ तू है आधर जीवन का, माँ तू है आधर 2
तू प्रतीक है प्यार की मैया ,तू संगीत जीवन का I
तू है रूप धरा की मैया, तू है रूप नारी शक्ति का I
जिसकी नहीं कोई परिभाषा , तू ही निराशा में है आशा ।
तेरे डांट में प्यार ही प्यार है,यह है अपनेपन का परिभाषा ।
तू सृजन है तू बलिदान है, तू स्नेह और प्यार की मूरत ।
तू प्रकृति की अमर धरोहर, तेरी भोली भाली सूरत।
तू निर्मल नदिया की धारा,तू शीतल ममता की छाया।
तू अखंड प्रज्वलित ज्वाला है,तूने जीवन जन्नत बनाया।
तू अनमोल है मोती जैसे,तू है चेतना की ज्योति।
जब स्पर्श वदन पर करती, पल में सब पीड़ा हर लेती।
तेरे आंचल में सुख पाया, मानो जग सारा हो समाया ।
तुम बिन सुनी बगिया मैया, तुम बिन सारा जग है पराया।
बिन बोले सब समझ लेती हो, अपनी बाहों में भरती हो।
तेरा प्यार तनिक ना बिसरे,हिया बीच सदा रहती हो।
ब्रह्म वेला से ही मैया तेरी ,दिनचर्या जब शुरू हो जाती।
पेट भरन को सूत काटती,सूत बेच रूपैया पाती।
रोटी खातीर चक्की चलाती, अपने पीठ पर हमें झुलाती।
उफ तक नहीं करत है मैया, झूलो राजा, झूलो बेटा, मीट्ठी मीट्ठी बातें करती।
फिर क्या, आसन बासन माज, रसोइया सबके लिए बनाती।
मां मां जब तेरी याद सताये , अश्रु से अंखिया सदा भर जाती।
व्यथित हिया गुहार लगावे, मां तू अब फिर लौट के आजा।
दर्द को दर्ज होने ना दूंगी,तेरी करेगा चाकरी सुख का राजा।
तू जग में सबसे महान हो, तुझपर सबको सदा नाज हो।
कोटि कोटि नमन चरणो में,तेरे लिए सदा सम्मान हो।
तेरे लिए सदा सम्मान हो।
तेरे लिए सदा सम्मान हो!!!
मां के चरणों में कोटि – कोटि नमन ।
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धन्यवाद पाठकों
रचनाकार- कृृष्णावती कुमारी